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सत्तन और मक्कन

sattan aur makkan

एक गाँव में दो मित्र रहते थे। एक का नाम था सत्तन और दूसरे का नाम था मक्कन। दोनों अव्वल दर्ज़े के ठग थे। फिर भी लोग मक्कन को सत्तन से बड़ा ठग मानते थे। यह बात सत्तन को अच्छी नहीं लगती थी। एक बार सत्तन ने तय किया कि वह स्वयं को मक्कन से बड़ा सिद्ध करके दिखाएगा।

मक्कन को छोटा साबित करने के उद्देश्य से सत्तन मक्कन के घर पहुँचा। मगर मक्कन अधिक चतुर था। वह ताड़ गया कि सत्तन के मन में कुछ है। उसने भी सत्तन को छकाने की योजना तत्काल बना डाली। उसने अपने पड़ोस से एक सोलह साल की लड़की को बुलाया और फिर अपनी पत्नी और उस लड़की को योजना समझा दी।

‘अब गए हो तो भोजन करके जाना।’ मक्कन ने सत्तन से कहा। सत्तन को भूख भी लग आई थी अत: उसने आमंत्रण स्वीकार कर लिया। अब मक्कन ने अपनी पत्नी को बुलाया, ‘जा हम दोनों के लिए भोजन पका।’

‘मैं नहीं पकाती। जो तुमको भोजन पकवाना हो तो कोई जवान लड़की बुला लो, वही करेगी तुम्हारी चाकरी।’ मक्कन की पत्नी ने मुँह बनाते हुए कहा।

‘कैसे नहीं बनाएगी तू? और जो तू जवान लड़की की बात कर रही है तो ठहर, तुझे अभी पीट-पीटकर जवान बनाए देता हूँ। अकल ठिकाने जाएगी।’ कहते हुए मक्कन ने छड़ी उठाई और अपनी पत्नी को पीटने लगा। उसकी पत्नी हाय-हाय करती हुई इधर-उधर भागने लगी। वह पिटती हुई पल भर को पर्दे की ओट में हुई और सत्तन जवान लड़की देखकर दंग रह गया कि वह सचमुच पिट-पिटकर सोलह साल की हो गई।

जबकि मक्कन अपनी पत्नी को पीटने का अभिनय मात्र कर रहा था, पीट नहीं रहा था और पर्दे के पीछे से वह पड़ोस की लड़की निकल आई थी और पत्नी वहीं छिपकर धीरे से खिसक गई थी।

सत्तन ने सोचा कि यह तो कमाल की छड़ी है। इससे पीटकर वह अपनी पत्नी को भी कम आयु की बना सकता है। सत्तन ने चलते समय मक्कन की नज़र बचाकर वह छड़ी चुरा ली। जबकि मक्कन ने जानबूझकर ऐसी जगह छड़ी रखी थी जिससे सत्तन उसे चुरा सके। हुआ भी यही।

घर आकर सत्तन ने छड़ी से अपनी पत्नी को पीटना शुरू किया। छड़ी में कोई चमत्कार तो था नहीं कि उसकी पत्नी भी षोडषी बन जाती। वरन पत्नी को अकारण पीटे जाने पर बहुत क्रोध आया और वह रुष्ट होकर अपने मायके चली गई। तब सत्तन को अहसास हुआ कि मक्कन ने उसके साथ ठगी कर दी है।

इसके बाद सत्तन अपनी पत्नी को मना लाया तथा उसने भी मक्कन को अपने से बड़ा ठग मान लिया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 308)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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