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राजा की छोटी रानी

raja ki chhoti rani

एक राजा था जिसकी छ: रानियाँ थीं। छहों रानियों से उसके एक-एक पुत्र थे किंतु सभी पुत्र नकारे थें उनमें से कोई भी राजा के बाद राजगद्दी संभालने योग्य नहीं था। राजा इसी चिंता में रहता कि उसके बाद उसके राज्य का क्या होगा?

एक बार राजा शिकार खेलने गया। लौटते समय उसे एक परी मिली। राजा और परी ने एक-दूसरे को पसंद कर लिया और राजा उसे अपनी सबसे छोटी रानी बनाकर अपने महल में ले आया। कुछ समय बाद छोटी रानी गर्भवती हुई। राजा यह सोचकर बहुत प्रसन्न हुआ कि अब उसे एक योग्य वारिस मिल जाएगा।

समय पूरा होने पर छोटी रानी का प्रसव हुआ। किंतु राजा यह देखकर बहुत निराश हुआ कि छोटी रानी ने किसी शिशु को नहीं बल्कि एक अंडे को जन्म दिया है। शेष छहों रानियों ने राजा के कान भरे कि छोटी रानी राक्षसी है अत: उसे महल से निकाल दीजिए। राजा भी उनकी बातों में गया और उसने छोटी रानी को महल से निकाल दिया।

बेचारी छोटी रानी अपना अंडा लेकर जंगल में चली गई। वहाँ वह अपने अंडे को एक सुरक्षित स्थान पर रखकर कंद-मूल-फल एकत्र करने जाती और लौटकर अपने अंडे को अपनी गोद में लेकर बैठ जाती। एक दिन छोटी रानी को कहीं से एक मुट्ठी अनाज मिल गया। उसने अनाज लाकर अपनी झोपड़ी में रख दिया। उसके पास अनाज को पकाने का कोई बरतन नहीं था। इसलिए वह उसे पका नहीं सकती थी।

छोटी रानी जब कंद-मूल-फल लेने गई तो अंडे से उसका पुत्र निकला और उसने अनाज पकाकर रख दिया। छोटी रानी जब लौटकर आई तो अनाज को पका हुआ पाकर चकित रह गई।

‘जिसने यह अनाज पकाया है वह मेरे सामने आए, तभी मैं इसे खाऊँगी। नहीं तो यह ऐसा ही पड़ा रहेगा और ख़राब हो जाएगा तथा मैं भी भूखी रह जाऊँगी।’ छोटी रानी ने कहा।

अपनी माँ की बात सुनकर अंडे से उसका पुत्र निकल आया। छोटी रानी ने को देखा तो वह भावविभोर हो उठी। उसने अपने पुत्र को अपने गले से अपने पुत्र लगा दिया और ख़ूब दुलार किया। इसके बाद माँ-बेटे ने पका हुआ अनाज खाया।

छोटी रानी ने अपने पुत्र का नाम रखा दिमाश्रोन। दिमाश्रोन धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। एक दिन एक राजकुमारी अपना घोड़ा दौड़ाती हुई उधर निकल आई जिधर दिमाश्रोन शेर से खेल रहा था। राजकुमारी ने उसे देखा तो उसकी बहादुरी पर वह मुग्ध हो गई। राजकुमारी का नाम था पाटलश्री। दिमाश्रोन ने भी पाटलश्री को देखा तो वह भी आकर्षित हुआ।

पाटलश्री ने महल लौटकर अपने पिता को दिमाश्रोन के बारे में बताया। पाटलश्री के पिता ने दिमाश्रोन को बुलवाया। उसकी कुछ परीक्षाएँ लीं जिसमें वह खरा उतरा। पाटलश्री का पिता प्रसन्न हो गया। उसने अपनी पुत्री का विवाह दिमाश्रोन से कर दिया।

कुछ समय बाद पाटलश्री के पिता के राज्य पर पड़ोसी राजा ने आक्रमण कर दिया। छोटी रानी को यह सूचना मिली तो उसने अपने बेटे को आदेश दिया कि वह जाकर अपने ससुर की सहायता करे। पाटलश्री के पिता की ओर से दिमाश्रोन ने युद्ध किया। दिमाश्रोन के पास साहस के साथ-साथ अद्भुत शक्तियाँ थीं। उसने चुटकी बजाते शत्रुसेना को पराजित कर दिया और शत्रुराजा को बंदी बना लिया।

पाटलश्री के पिता ने शत्रुराजा के राज्य को उपहारस्वरूप छोटी रानी को दे दिया। जब छोटी रानी उस राज्य में पहुँची तो उसने शत्रुराजा को देखने की इच्छा प्रकट की। शत्रुराजा को बंदीगृह से लाकर छोटी रानी के सामने खड़ा किया गया। छोटी रानी और शत्रुराजा एक-दूसरे को देखकर चकित हो गए। वह शत्रुराजा और कोई नहीं दिमाश्रोन का पिता था जिसने उसकी माँ का परित्याग कर दिया था।

जब दिमाश्रोन को इस बात का पता चला तो उसने माँ के कहने पर जीता हुआ राज्य अपने पिता को लौटा दिया किंतु उसके पिता ने राज्य अपने बेटे को सौंपते हुए अपनी छहों पत्नियों सहित वनगमन करने का निर्णय लिया। छोटी रानी भी अपने पति के साथ वन में जाना चाहती थी किंतु बेटे बहू और स्वयं उसके पति ने उससे कहा कि उसने अब तक के जीवन में जो दुख उठाए हैं उनके बदले उसे महल में निवास करना चाहिए, वन में नहीं। दिमाश्रोन और पाटलश्री के आग्रह पर छोटी रानी अपने बेटे-बहू के साथ रहने लगी।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 329)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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