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वन-कन्या

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एक राज्य में एक बूढ़ा और बुढ़िया रहते थे। उनके सात बेटियाँ थीं। सातों बहनों को कोई भी चीज़ हिस्से में बराबर नहीं मिल पाती थी। वे आपस में लड़-झगड़ कर खाती थीं। यह देख कर बूढ़े और बुढ़िया चिंतित रहा करते। बूढ़े-बुढ़िया को भी भरपेट खाना नसीब नहीं हो पाता था। तब एक दिन बूढ़े ने बुढ़िया से कहा,आज तुम चुपके से उड़द की दाल भिगाना। रात में लड़कियों के सोने के बाद बड़ा बना कर हम दोनों खाएँगे।

उनकी यह बातचीत सबसे छोटी लड़की सुन रही थी। उसने बड़ी बहनों से कहा,मैं तुम्हें एक बात बताऊँगी और उसने वह बात उन सबको बता दी। तब उन सभी ने मिल कर सलाह-मशविरा किया और एक योजना बनाई। योजना के अनुसार कोई सिल तो कोई बट्टा और कोई कड़ाही आदि अपने सिरहाने लेकर सो गईं। उन्हें सोया जान कर बुढ़िया चुपचाप दाल निकाल कर पीसने की तैयारी करने लगी तो देखा,सिल-बट्टा नहीं है। बूढ़े से पूछा तो उसने अनभिज्ञता प्रकट की। तभी छोटी और बड़ी लड़कियाँ सिल-बट्टा लेकर उठ बैठीं। यह देख कर बूढ़े ने उनसे कहा कि वे चुपचाप रहें। अब चारों मिल-बाँट कर खाएँगे। इसके बाद वे कड़ाही ढूँढने लगे। तभी एक लड़की कड़ाही लेकर उठ बैठी। इस तरह बारी-बारी से सभी लड़कियाँ उठ गईं। फिर सब के लिए बड़े बनाएँ गए और सब ने मिल-बाँट कर खाया।

सुबह हुई तो बूढ़ा खीझ कर बुढ़िया से बोला,तुम एक तूंबे में पेज भर दो। मैं लड़कियों को छींद खिलाने ले जाऊँगा और वहाँ इन्हें भुलावा देकर वापस जाऊँगा,तब हम दोनों मज़े से रहेंगे।

उसके ऐसा कहने पर बुढ़िया ने पेज रांध कर तूंबे में भर दिया। तब योजना के अनुसार बूढ़ा पेज लेकर लड़कियों को घनघोर जंगल में ले गया। सातों बहनें छींद खाने में मगन हो गईं। बूढ़े ने पेज पी कर खाली तूंबा एक पेड़ पर टाँग दिया और घर वापस हो गया। सातों बहनें छींद खाते-खाते 'बाबा' कह कर अपने पिता को आवाज़ देतीं। उस समय हवा के झोंकों से खाली तूंबे से 'भुं-भुं' की आवाज़ निकलती। इससे वे समझतीं कि यह पिता की ही आवाज़ है और वे निश्चिंत होकर छींद खाने में मगन हो गईं। उनमें से पाँच बहनें अलग-अलग दिशाओं में चली गईं और सबसे बड़ी तथा सबसे छोटी बहन एक जगह रह गईं। तभी छोटी बहन को बहुत प्यास लगी। तब वह 'दीदी! मुझे प्यास लगी है' कहने लगी। उसे बहुत ज़ोरों की प्यास लगी थी सो वह हठ करने लगी। तब 'इस घनघोर जंगल में मैं तुम्हे कहाँ से पानी ला कर दूँ?' कहती बड़ी बहन एक पेड़ पर चढ़ गई। उसने वहाँ से पानी की तलाश में निगाह दौड़ाई तो उसे दूर एक सूखा तालाब दिखलाई पड़ा। तब वे दोनों बहनें उस तालाब में जा पहुँचीं। बड़ी बहन ने छोटी से कहा,तुम अपनी अँगूठी दे दो। उसे सूखे तालाब में फेंकने पर पानी निकल आएगा। तब तुम पानी पी लेना।

छोटी बहन प्यासी तो थी ही। उसकी बात सुन कर उसने अपनी अँगूठी उसे दे दी जिसे बड़ी बहन ने सूखे तालाब में फेंक दिया। अँगूठी फेंकते ही वह सूखा तालाब पानी से लबालब भर गया। छोटी बहन ने भरपेट पानी पीया। पानी पीने के बाद वह अपनी अँगूठी के लिए हठ करने लगी। परेशान होकर बड़ी बहन ने कहा,तुम्हें अपनी दीदी चाहिए या अँगूठी?

छोटी बहन ने कहा,मुझे अँगूठी चाहिए दीदी।

तब बड़ी बहन घुटनों तक पानी में गई और फिर से पूछा। छोटी ने फिर वही जवाब दिया। तब बड़ी बहन आगे बढ़ कर कमर तक पानी में गई और फिर से पूछा। छोटी ने तब भी वही उत्तर दिया। इस पर बड़ी बहन अब गले तक पानी में गई और फिर से पूछने लगी। छोटी अब भी अपनी जिद पर अड़ी थी। उसने अँगूठी की ही माँग की। तब बड़ी बहन गले से ऊपर सिर तक गहरे पानी में गई और अंतिम बार पूछा। छोटी बहन तो अँगूठी के लिए बावली हुई जा रही थी,सो उसने अँगूठी की ही रट लगा रखी थी। तब बड़ी बहन ने डुबकी लगा कर अँगूठी निकाली और बाहर फेंक दी। स्वयं वहीं डूब कर मर गई। अब अँगूठी छोटी बहन के हाथ में थी। वह अँगूठी पाने के बाद अपनी दीदी को पुकारने लगी किंतु वह कहाँ से वापस आती भला! वह तो वहीं डूब कर मर चुकी थी। वह काफ़ी देर तक उसे पुकारती रही फिर रोने लगी। रोते-रोते वह एक पेड़ पर चढ़ कर बैठ गई।

तभी उस राज्य का राजा आखेट के लिए अपने सैनिकों के साथ उसी रास्ते से जा रहा था। उसकी सात रानियाँ थीं। कुछ देर विश्राम करने के उद्देश्य से राजा और उसके सैनिकों ने उसी पेड़ के नीचे डेरा लगाया। राजा आराम कर रहा था कि तभी उस लड़की के आँसू उसके ऊपर टपके। राजा घबरा गया और यह क्या है,कहता हुआ उसने अपने सैनिकों को पेड़ पर देखने के लिए कहा। सारे-के-सारे सैनिक ऊपर देखने लगे किंतु किसी की भी निगाह उस लड़की पर नहीं पड़ी। तभी उनके साथ चल रहे एक काने व्यक्ति की निगाह उस पर जा पड़ी। उसने सबको बताया कि ऊपर एक लड़की बैठी है। सब उसकी बात पर हँसने लगे।

किंतु उसकी बात सच थी,तब राजा ने उस लड़की से नीचे उतर आने को कहा। लड़की डरते-डरते नीचे उतरी। सब लोग 'वन-कन्या' पा गए कहते बहुत प्रसन्न हो गए।

राजा आखेट पर जाने के बजाए उस लड़की को साथ लेकर अपने महल वापस हो गया। विवाह की तैयारियाँ की गईं। गाँव में ढिंढोरा पिटवाया गया कि सभी लोग साफ़-सुथरे होकर आएँ। सब लोग जुटे। फिर धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। राजा कुछ दिनों बाद आखेट पर गया। इधर वन-कन्या गर्भवती हो गई। फिर नौ महीने पूरे होने पर उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। तब सातों रानियों ने छलपूर्वक वन कन्या की आँखों में पट्टी बाँध दी। कानों में खूँटिया ठूँसीं और इस तरह प्रसव करवाया। सुंदर-से राजकुमार का जन्म हुआ किंतु सातों रानियों ने ईर्ष्या वश नवजात शिशु को नाल के साथ घूरे में फेंक दिया। वन-कन्या के सामने उन्होंने ईंट और पत्थर रख दिए और आँख की पट्टी,कानों की खूँटियाँ निकाल दीं। फिर वे वन-कन्या से बोलीं,यह देखो,तुमने नौ महीने गर्भ में रख कर ईंट और पत्थर को जन्म दिया।

ऐसा कहने पर वन-कन्या सिर पर हाथ धर कर रोने लगी। उधर बच्चे को एक घोड़े ने अपने मुँह से उठाया और ले जाकर तालाब में फेंक दिया। तालाब में वन-कन्या की बड़ी बहन मृत्यु के बाद जल-कन्या बनकर रह रही थी। उसने उस बच्चे को थाम लिया और उसका पालन-पोषण करने लगी।

उधर राजा आखेट से वापस लौटा तो सातों रानियों ने डाह से भर कर राजा से चुग़ली की, आपकी वन-रानी ने नौ महीने तक गर्भ धारण किया और अब ईंट-पत्थर को जन्म दिया है।

यह सुन कर राजा ने कहा कि वन-कन्या को सात गाँठों वाली साड़ी पहना कर उसे फुलवारी में पहुँचा दिया जाए। वह वहाँ रह कर कौवे भगाने का काम करेगी। राजा के आदेश का पालन किया गया। धन-कन्या रानी से चाकर बन गई। इसी तरह कुछ दिन बीते। एक दिन सातों रानियाँ तालाब में नहाने गईं। वहाँ कमल फूल खिले थे। एक सुंदर-सा बालक नाव पर खेल रहा था। यह देख कर रानियाँ उसे बुलाने और उससे फूल माँगने लगीं। यह वही बालक था जिसे जन्म लेते ही रानियों ने घूरे में फेंक दिया था और जिसे घूरे से उठा कर घोड़े ने इस तालाब में डाल दिया था। तब लड़का अपनी बड़ी माँ से पूछने लगा :

माता कहूँ,हे बड़ी माँ! पापिन रानियाँ माँगतीं फूल।

उसकी बात सुन कर उसकी बड़ी माँ कहने लगी :

बेटा कहूँ मैं हीरा बेटा! तुम हो ईंट और पत्थर।

देना बेटा उन्हें फूल।

इस तरह उसने किसी को भी फूल नहीं दिया। तब रानियाँ माँग-माँग कर थक गईं और तालाब से वापस हो रूठ कर सो गईं। इतने में राजा आया,देखा तो सभी सातों रानियाँ रूठी हुई हैं। उसने पूछा,क्या बात है,तुम लोग क्यों रूठी हुई हो?

रानियाँ बोलीं,आपके तालाब में एक सुंदर-सा कमल का फूल खिला है। वहीं एक राजकुमार-सा सुंदर बालक भी है। हम उस बालक से फूल माँग कर थक गईं किंतु वह बालक हमें फूल नहीं देता।

यह सुन कर राजा ने कहा,इतनी-सी बात पर तुम लोग रूठी हुई हो। मैं अभी जाकर माँग लाता हूँ। तुम लोग भोजन कर लो। और ऐसा कह कर राजा गया फूल माँगने। बालक से फूल माँगने लगा तो बालक फिर अपनी बड़ी माँ से पूछने लगा :

माता कहूँ,हे बड़ी माँ! पिताजी माँगते फूल।

उसकी बात सुन कर उसकी बड़ी माँ कहने लगी :

बेटा कहूँ मैं हीरा बेटा! तुम हो खाद और कचरा।

देना बेटा उन्हें फूल।

राजा बारंबार बालक से फूल माँगता और वह बालक बारंबार उसे मना कर देता। इस तरह काफ़ी समय हो गया किंतु बालक ने राजा को वह फूल नहीं दिया। वह फूल भी तालाब में अपनी जगह से काफ़ी दूरी पर चला गया। यह देख-सुन कर राजा हताश हो गया और वापस चला गया। फिर उसने गाँव के सारे लोगों को बुलाया और सबसे फूल माँगने को कहा। उसके आदेश से सब लोग उस बालक से फूल माँगने लगे किंतु बालक ने किसी को भी फूल नहीं दिया। तब राजा को कौवा भगाने वाली की याद आई। उसने उसे भी बुला भेजा। लोग उसे बुलाने गए तो वह कहने लगी,मेरे पास तो पहनने को कपड़े हैं और शरीर पर चुपड़ने को तेल। ऐसी हालत में राजा को मैं अपना चेहरा कैसे दिखाऊँगी? नहीं,मैं नहीं आऊँगी। राजा मुझ पर नाराज़ होंगे।

यह सुन कर राजा के दूत राजा के पास गए और उसकी कही बातें कह सुनाईं। यह सुन कर राजा ने कपड़े-लत्ते आदि सारी सामग्री उसके लिए भिजवाई तब वह उन्हें पहन कर वहाँ आई और रोती हुई बालक से फूल माँगने लगी। इस पर बालक ने फिर अपनी बड़ी माँ से पूछा :

माता कहूँ,हे बड़ी माँ! माँ माँगती फूल।

उसकी बात सुन कर उसकी बड़ी माँ कहने लगी :

बेटा कहूँ मैं हीरा बेटा! तुम हो उसके बेटे

जा बेटा पी ले दूध।

यह सुन कर बालक नाव से उतर कर दौड़ता हुआ उस कौवे भगाने वाली के पास पहुँचा और उसकी गोद में बैठ कर दूध पीने लगा। यह देख कर सभी विस्मित हो गए। तरह-तरह की बातें करते सब अपने-अपने घर वापस चले गए।

इस सारे घटनाक्रम से राजा ने वन-कन्या और बालक को पहचान लिया। सारी बातें उसकी समझ में गईं। तब राजा मे सातों रानियों को उनके किए का दंड देने के लिए एक बड़ा-सा गड्ढा ख़ुदवाया। धूप को उबाल कर उस गड्ढे में डलवा दिया और सातों रानियों से कहा कि एक नई बावली ख़ुदवायी गई है,जिसे देखने चलना है। यह सुन कर सातों रानियाँ वहाँ गईं। तब राजा और उसके सेवकों ने उन सातों रानियों को उसी गड्ढे में धकेल दिया। वे उस गड्ढे में जा गिरीं और वहाँ डाले गए उबले धूप में जल कर मर गईं। फिर राजा वन-कन्या और अपने बेटे को महल में ले आया।

उनके दिन सुख से कटने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 138)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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