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मछली क्यों हँसी

machhli kyon hansi

एक दिन एक मछुवाइन मछलियाँ बेचने के लिए निकली। सर पर मछलियों की टोकरी लिए हुए वह आवाज़ लगाती जा रही थी, “मच्छी, ताज़ा मच्छी! मच्छी ले लो, मच्छी!” आवाज़ लगाते हुए वह राजमहल के पास से गुज़री तो रानी खिड़की पर आई, उसे इशारे से पास बुलाया और मछलियाँ दिखाने को कहा। उसी समय एक बड़ी मछली टोकरी के पेंदे में उछली।

रानी ने पूछा, “यह नर है या मादा? मैं मादा मछली लूँगी।”

यह सुनकर बड़ी मछली ज़ोर से हँसी।

मछुवाइन ने कहा, “यह नर है।” और आगे बढ़ गई।

रानी ग़ुस्से से भरी हुई अपने कमरे में आई। शाम को राजा उसके पास आया तो उसे कुछ गड़बड़ लगी। पूछा, “क्या बात है? तबीयत तो ठीक है?”

रानी ने कहा, “आप की कृपा से मैं बिलकुल ठीक हूँ। लेकिन मैं एक मछली के अजीब बरताव से परेशान हूँ। मछुवाइन से मैंने पूछा कि यह मछली नर है या मादा। यह सुनकर मछली बहुत ढीढता से हँसी।”

“मछली हँसी? नामुमकिन! तुमने सपना देखा होगा।”

“मैं बेवक़ूफ़ नहीं हूँ। मैंने उसे अपनी आँखों से देखा और अपने कानों से उसे हँसते हुए सुना।”

“अजीब बात है! ठीक है, मैं पता करवाऊँगा।”

अगले दिन सवेरे राजा ने वज़ीर को पूरी बात बताई और तफ़तीश करने का हुक्म दिया। अगर छह महीने में वह मामले की तह तक पहुँच पाया तो मरने के लिए तैयार रहे।

वज़ीर ने वादा किया कि वह पूरी कोशिश करेगा। वज़ीर ने वादा तो कर लिया, पर उसे कुछ पता नहीं था कि शुरुआत कहाँ से करे। मछली की हँसी की वजह जानने के लिए उसने अथक मेहनत की। इसके लिए वह कहाँ-कहाँ नही भटका! किस-किस से नहीं मिला! ज्ञानी, अनुभवी, जादूगर, तांत्रिक किसी को नहीं छोड़ा। पर कोई भी उसे मछली के हँसने का रहस्य बता सका। हताश वह घर लौट आया और मौत निश्चित जानकर अपनी जायदाद और घर-गृहस्थी के मामले निपटाने लगा। अपने राजा को वह ख़ूब जानता था। वह अपनी धमकी ज़रूर पूरी करेगा। उसने अपने बेटे को कहा कि वह कुछ समय के लिए यात्रा पर चला जाए और तभी वापस आए जब राजा का ग़ुस्सा ठंडा हो जाए।

वज़ीर का चतुर सजीला बेटा घर से निकल पड़ा और उधर चल पड़ा जिधर उसके पाँव और क़िस्मत ले जाए। कुछ दिनों बाद उसे एक बूढ़ा किसान मिला। बूढ़ा किसान यात्रा से अपने गाँव लौट रहा था। वज़ीर के बेटे को किसान भला और ख़ुशमिज़ाज लगा। उसने किसान से पूछा कि क्या वह उसके साथ सफ़र कर सकता है। बूढ़ा मान गया। वे साथ-साथ आगे बढ़े। उस दिन बहुत गर्मी थी और रास्ता लंबा और उबाऊ।

वज़ीर के बेटे ने कहा, “क्या बेहतर होगा कि हम एक-दूसरे को उठाकर चलें ?”

बूढ़े ने सोचा, “कैसा मूर्ख है!”

थोड़ा आगे वे गेहूँ के खेत के पास से गुज़रे। दाना पक गया था और फसल कटने के लिए तैयार थी। हवा के झोंकों से गेहूँ के फूटे झुकते तो ऐसा लगता जैसे सोने का समंदर लहरा रहा हो।

वज़ीर के बेटे ने पूछा, “यह खाया जा चुका है या नहीं?”

बूढ़े को समझ नहीं पड़ा कि वह क्या जवाब दे। वह इतना ही कह पाया, “पता नहीं।”

थोड़ा आगे एक बड़ा गाँव आया। वज़ीर के बेटे ने अपने सहयात्री को जेबी चाकू देते हुए कहा, “बाबा, यह चाकू लो और दो घोड़े लेकर आओ। और हाँ, इसे वापस ज़रूर लाना। यह बहुत क़ीमती है।”

बूढ़े को ताज्जुब हुआ और ग़ुस्सा भी आया। वह बुदबुदाया कि या तो यह लड़का पागल है या उसे बेवक़ूफ़ बना रहा है। वज़ीर के बेटे ने ऐसा ज़ाहिर किया जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं और चुप लगा गया। वह तब तक चुप रहा जब तक वे बूढ़े किसान के गाँव से कुछ पहले एक शहर में नहीं पहुँच गए। शहर के बाज़ार से होते हुए वे एक मस्जिद में गए। शहर में तो उनसे किसी ने दुआ-सलाम की और ही किसी ने उन्हें आराम करने का न्यौता दिया।

वज़ीर का बेटा चिल्लाया, “कितना बड़ा क़ब्रिस्तान है!” बूढ़े किसान ने सोचा, “यह कहना क्या चाहता है? अच्छे-भले शहर को क़ब्रिस्तान बता रहा है!”

शहर से बाहर निकलते हुए वे एक क़ब्रिस्तान के पास से गुज़रे। वहाँ कुछ लोग एक क़ब्र के पास इबादत कर रहे थे और राहगीरों को चपातियाँ बाँट रहे थे। बूढ़े किसान और वज़ीर के बेटे को भी उन्होंने कुछ चपातियाँ दीं। उनसे दोनों का पेट भर गया।

वज़ीर के बेटे ने कहा, “कैसा शानदार शहर है!”

बूढ़े किसान ने सोचा, “यह ज़रूर पागल है। मैं बता सकता हूँ कि यह आगे क्या कहेगा। यह ज़मीन को पानी कहेगा और पानी को ज़मीन। अँधेरा होगा तो रोशनी की बात करेगा और रोशनी होगी तो अँधेरे की।” पर अपने विचार उसने मन में ही रखे।

थोड़ा आगे उन्हें एक नदी को तैर कर पार करना पड़ा। पानी कुछ गहरा था। बूढ़े किसान ने अपना पजामा और जूते उतार दिए। पर वज़ीर के बेटे ने पजामा और जूते पहने हुए ही नदी पार की।

बूढ़े ने मन ही मन कहा, “इससे बड़ा बेवक़ूफ़ मैंने आज तक नहीं देखा। इसकी बातों और काम का सर-पैर ही समझ में नहीं आता।”

इस पर भी बूढ़ा उसे पसंद करता था। वह तहज़ीबदार और ख़ानदानी लगता था। इससे मिलकर उसकी बीवी और बेटी ख़ुश होंगी यह सोचकर उसने उसे अपने घर चलने का न्यौता दिया।

वज़ीर के बेटे ने इसके लिए उसका शुक्रिया अदा किया और पूछा, “बुरा मानें तो एक बात पूछूँ? क्या आप के घर के शहतीर मज़बूत हैं?”

बूढ़ा होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाया और अपने सहयात्री के बारे में बीवी और बेटी को इत्तला करने के लिए घर चला गया। चलते हुए वह मन ही मन मुस्कुराता जाता था। घर पहुँचकर उसने बीवी और बेटी को बताया, “यह आदमी रास्ते में मेरे साथ हो गया था। मैंने इसे अपने घर रुकने का न्यौता दिया है। मगर यह ऐसा बेवक़ूफ़ है कि इसकी बातें और काम मेरी समझ में नहीं आते। बोला कि क्या इस मकान के शहतीर मज़बूत हैं। यह ज़रूर पागल है।”

बूढ़े किसान की बेटी बहुत होशियार थी। उसने कहा, “यह आदमी जो भी हो पागल नहीं है। वह यह जानना चाहता था कि क्या तुम उसकी मेज़बानी का भार उठा सकोगे।”

किसान ने कहा, “ओह ज़रूर! अच्छा, ऐसा है! शायद तुम उसकी दूसरी बातें भी समझ सको। जब हम साथ-साथ चल रहे थे तो उसने कहा कि क्यों हम बारी-बारी से एक-दूसरे को उठाकर चलें। उसका ख़याल था कि यों रास्ता ज़्यादा आराम से कटेगा।”

लड़की ने कहा, “बेशक! उसका मतलब था कि तुम दोनों में से कोई कहानी कहता चले तो सफ़र उबाऊ नहीं होगा।”

“ओह हाँ! उसके बाद हम गेहूँ के खेत के पास से निकले। उसने मुझसे पूछा कि यह खाया जा चुका है या नहीं।”

“बापू, तुम उसका मानी नहीं समझे? वह सिर्फ़ इतना जानना चाहता था कि खेत का मालिक कर्ज़दार तो नहीं। अगर वह कर्जदार है तो खेत की पैदावार खा ली गई समझो। तब सारी पैदावार सूदखोर हड़प जाएगा।”

“हाँ, हाँ, बेशक! फिर एक गाँव में घुसते समय उसने मुझे जेबी चाक़ू दिया और दो घोड़े लाने को कहा। और यह भी कि चाकू वापस लाऊँ।”

“राहगीर के लिए लाठी घोड़े के बराबर होती है, है न? उसने सिर्फ़ यह कहा कि तुम दो लाठियाँ काट लाओ और ध्यान रखो कि चाक़ू खो जाए।”

किसान ने कहा, “ओह, अच्छा! जब हम एक शहर से गुज़र रहे थे तो तो हमें कोई जान-पहचान वाला मिला और ही किसी ने हमें खाना खिलाया। शहर के बाहर हम एक क़ब्रिस्तान के सामने से गुज़र रहे थे तो कुछ लोगों ने हमें बुलाया और हमारे हाथों में जबरन चपातियाँ थमा दीं। तब उसने कहा कि यह शहर क़ब्रिस्तान है और यह क़ब्रिस्तान शहर है।”

“देखो बापू, जो आदमी मेहमान की ख़ातिरदारी कर सके वह मुर्दे से भी गया-बीता है। जिस शहर में सब लोग ऐसे हों वह मुर्दों की बस्ती है। लेकिन मुर्दों की बस्ती क़ब्रिस्तान में तुम्हें दयालु लोग मिले। उन्होंने तुम्हें रोटी दी।”

“ठीक, बिलकुल ठीक!” उसने हैरानी से कहा। “लेकिन फिर, अभी-अभी, हमने जब नदी पार की तो उसने जूते भी नहीं उतारे।”

“मैं उसकी अक़्लमंदी की दाद देती हूँ। मैं अक्सर सोचती हूँ कि लोग कैसे मूर्ख हैं जो तेज़ बहती नदी को पार करते समय जूते उतार देते हैं और नुकीले पत्थरों पर नंगे पाँव चलते हैं। ज़रा-सी ठोकर लगते ही वें गिर सकते हैं और सर से पाँव तक भीग सकते हैं। तुम्हारा दोस्त बहुत समझदार है। मैं उससे मिलना चाहती हूँ।”

“ठीक है, मैं उसे बुला लाता हूँ।”

“बापू, उससे कहना कि हमारे शहतीर काफ़ी मज़बूत हैं, तभी वह आएगा। पहले मैं उसे कुछ उपहार भेजती हूँ। उससे उसे पता चल जाएगा कि हममें मेहमानदारी का बूता है।”

किसान की बेटी ने नौकर के साथ थोड़ा दलिया, बारह चपातियाँ और एक मर्तबान दूध भेजा और कहलवाया कि दोस्त, चाँद पूरा है, बारह महीनों का एक साल होता है और समंदर पानी से भरा है।”

नौकर को रास्ते में उसका छोटा बेटा मिला। टोकरी में खाने की चीज़ें देखकर वह लेने के लिए मचल गया। नासमझ बाप ने उसे काफ़ी दलिया, एक चपाती और थोड़ा दूध दे दिया।

बची हुई चीज़ें उसने मिलने पर मालिक के सहयात्री को दे दी और छोटी मालकिन का संदेशा दुहरा दिया।

बूढ़े किसान के सहयात्री ने कहा, “उन्हें मेरा सलाम कहना और कहना कि चाँद दूज का है, मुझे साल में ग्यारह महीने ही दिखे और समंदर भरा हुआ नहीं है।”

संदेशे का कोई सर-पैर नौकर के पल्ले नहीं पड़ा। उसने तोते की तरह संदेशा छोटी मालकिन के सामने दुहरा दिया। इस तरह उसकी चोरी पकड़ी गई और उसे सज़ा मिली। थोड़ी देर बाद सहयात्री बूढ़े किसान के साथ घर में दाख़िल हुआ। उसका राजसी स्वागत किया गया, मानो वह बहुत बड़े आदमी का बेटा हो। हालाँकि बूढ़ा किसान उसके ख़ानदान के बारे में कुछ नहीं जानता था। बातचीत के दौरान उसने सब कुछ बता दिया। मछली की हँसी, उसके पिता को दी गई मौत की धमकी और अपने शहर छोड़ने के बारे में भी। उसने उनसे राय माँगी कि उसे क्या करना चाहिए।

किसान की बेटी ने कहा, “मछली की हँसी सारी आफ़त की जड़ है। इससे यह लगता है कि राजमहल के जनानख़ाने में कोई आदमी है जिसके बारे में राजा कुछ नहीं जानता।”

वज़ीर का बेटा चिल्ला उठा, “वाह! बहुत ख़ूब! अब्बाजान को शर्मनाक और जलालत की मौत से बचाने के लिए अब भी वक़्त है। मुझे कल सवेरे ही चल देना होगा।”

सवेरे वह किसान की बेटी के साथ निकल पड़ा और सीधे राजधानी जा कर ही दम लिया। राजधानी पहुँचते ही वह अब्बाजान से मिला और उन्हें सारी बात बताई। मौत के अंदेशे से बेचारा वज़ीर अधमरा हो गया था। उसे तुरंत पालकी में बिठाकर राजा के पास ले जाया गया।

सुनकर राजा को विश्वास नहीं हुआ, “मेरे जनानख़ाने में आदमी? असंभव!”

वज़ीर ने कहा, “यह बात ग़लत नहीं हो सकती अन्नदाता! इसकी जाँच के लिए मैं एक इम्तहान की दरख़्वास्त करता हूँ। आप एक गड्ढा खुदवाइए और एक-एक कर राजमहल की सब दासियों से उस पर से कूदने के लिए कहिए। कूदने के तरीक़े से वह आदमी पकड़ा जाएगा।

राजा ने गड्ढा खुदवाया और राजमहल की तमाम दासियों को उसे कूदकर पार करने का आदेश दिया। सबने कोशिश की, पर सफलता एक को ही मिली और वह आदमी था।

इससे रानी को तसल्ली हो गई और वफ़ादार वज़ीर की जान बच गई।

जल्द ही वज़ीर के बेटे और किसान की बेटी की शादी हो गई। यह बहुत ही कामयाब शादी साबित हुई।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 41)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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