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राजा और बेल-कन्या

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किसी राज्य में एक था राजा। प्रजापालक राजा था,इसलिए उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। किंतु राजा दुखी था। उसका एक भारी दुख यह था कि उसके पत्नी-बच्चे नहीं थे। वह जिस किसी भी युवती से विवाह करता,उसकी असामयिक मृत्यु हो जाती थी। किसी-न-किसी बहाने उसकी मृत्यु हो ही जाती थी। या तो किसी रोग से ग्रसित होकर या फिर गर्भवती होकर। इसी कारण राजा बहुत दुखी रहता था। उससे अपनी बेटी ब्याहने को कोई भी व्यक्ति राज़ी नहीं होता था। राजा इस बात को लेकर एक प्रकार से बदनाम हो गया था। राजा को चिंता होने लगी कि उसका वंश कैसे चलेगा? उसके बाद राज्य को कौन देखेगा?

कन्या तलाशने के लिए राजा के लोग जगह-जगह घूमते रहे परंतु उसके लिए कन्या नहीं मिली। किसी तरह चिंता-ही-चिंता में राजा के दिन कटते रहे। फिर अंततः एक दिन भगवान ने उसकी गुहार सुन ली। किसी परिवार के लोग राजा को अपनी बेटी देने के लिए तैयार हो गए। राजा ने उस लड़की से विवाह कर लिया। लड़की रानी बन गई। राजा उसे प्यार करने लगा। वह उसकी हर सुविधा का ध्यान रखता था। रानी भी राजा की भरसक सेवा करती थी। दोनों एक-दूसरे को समर्पित थे। समय सुख में बीतता गया। समय पर रानी गर्भवती हुई। राजा को आशंका तो थी ही,कारण,उसने भोगा था। इसलिए वैद्य तो पहले से लगा हुआ था। दाइयाँ अलग से देख-रेख और सेवा-टहल में लगी थीं। प्रसव के दिन निकट आते गए। और जब प्रसूति का समय आया तब गर्भवती पीड़ा से बेचैन होने लगी। पेट का बच्चा पेट में ही मर गया। रानी भी मर गई।

इस घटना से राजा इतना दुखी हुआ कि उसमें वैराग्य की मानसिकता बन गई। मंत्री को राज्य सौंप कर वह साधु-वेश में महल छोड़ कर वन की ओर निकल चला। जाते-जाते रास्ते में उसे कहीं एक बड़ा-सा बेल का पेड़ दिखाई दे गया। उसने वहीं पेड़ के नीचे डेरा बनाने का निश्चय किया और साफ़-सफ़ाई की। उसी बेल की छाँव में वह तप करने बैठ गया। उसे तप करते कई साल बीत गए। उसने वहाँ बैठ कर ऐसा कठोर तप किया कि उसके ऊपर दीमकों ने बमीठा बना लिया। अंत में भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसके सामने प्रकट हुए। उससे पूछा कि उसे क्या चाहिए?

राजा ने भगवान से विनती की कि उसे पत्नी-बच्चे का सुख मिले। इतने में भगवान बोले कि इस पेड़ से वह कोई एक फल तोड़ ले और उसे कहीं भी फोड़ ले। इससे उसकी मनोकामना पूरी हो जाएगी। इतना बता कर भगवान उसकी आँखों से ओझल हो गए। राजा ने वैसा ही किया। बेल का एक फल तोड़ लिया और अपने राज्य की ओर चल दिया। राज्य की सीमा के पास एक कुआँ था। वह वहीं रुक गया। उसे प्यास लगी थी। उसने हाथ-मुँह धो कर प्यास बुझा ली और बड़ी उत्सुकता के साथ बेल के फल को फोड़ा। फल के फूटते ही एक चमत्कार हो गया! बेल के उस फल में से एक सुंदर कन्या प्रगट हुई। राजा ने मन-ही-मन भगवान को प्रणाम किया। दोनों एक-दूसरे की ओर आकर्षित हुए। फिर राजा ने उससे कहा,मैं विवाह की तैयारी कराने जा रहा हूँ। विवाह की रस्म के साथ बाजा-मोहरी सहित मैं यहाँ शीघ्र लौटूँगा और तुम्हें रानी बना कर अपने महल में ले जाऊँगा। तुम यहीं बैठ कर मेरी प्रतीक्षा करो।

यह सुन कर बेल-कन्या ने लाज से अपना सिर नीचे कर लिया। राजा प्रसन्नतापूर्वक अपने महलों की ओर चल पड़ा।

राजा के जाने के कुछ ही देर बाद जमादारिन नाम की एक धूर्त स्त्री की दृष्टि बेल-कन्या पर पड़ी। वह उसके पास गई और बातचीत से उसे प्रभावित कर लिया। उसे फुसला कर उसका सारा भेद जान लिया। फिर बेल-कन्या के सारे गहने और कपड़े उतरवा कर हँसी-ही-हँसी में स्वयं पहन लिए और अपने फटे-पुराने कपड़े उसे पहना दिए। यह सब करने के बाद उसने बेल-कन्या को उसी कुएँ में धकेल दिया और उसकी जगह स्वयं रानी बनने की उत्सुकता लिए राजा की प्रतीक्षा करने लगी। कुछ समय बाद राजा विवाह की पूरी तैयारी के साथ वहाँ पहुँचा उसकी दृष्टि जब जमादारिन पर पड़ी तो वह सोचने लगा कि यह तो गोरी थी, अभी-अभी यह काली कैसे हो गई? उसने जमादारिन से पूछा तो वह कहने लगी कि अधिक देर तक धूप में बैठने के कारण उसकी देह का रंग कुछ काला पड़ गया है। राजा ने जमादारिन को ही बेल-कन्या समझ कर उससे विवाह कर लिया और उसे अपनी रानी बना कर अपने महलों में ले गया। जमादारिन ठाट से महलों में रहने लगी। समय बीतता गया,बीतता गया किंतु राजा की संतान की लालसा पूरी नहीं हुई।

उधर बेल-कन्या कुएँ में गिर कर एक सुंदर कमल के फूल के रूप में परिणत हो गई। एक दिन एक कोई लड़का उधर से चला जा रहा था। उसे प्यास लगी तो वह पानी पीने के लिए उसी कुएँ के पास गया। उसकी निगाह उस कमल-फूल पर गई। उसने उसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह कमल-फूल उसकी पकड़ में नहीं आया। उस विचित्र कमल-फूल को देखने के लिए वहाँ लोगों की अच्छी-खासी भीड़ इकट्ठी हो गई। उसी समय वही राजा अपने मंत्री के साथ उधर ही से कहीं जा रहा था। उसने भीड़ देखी तो वहाँ जा पहुँचा उसने भी उस कमल-फूल को आश्चर्य के साथ देखा। कुएँ में उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी थीं। राजा नीचे उतरा। उसने उस कमल-फूल को बड़े प्रेम से अपने हाथ में ले लिया। वह उसकी पकड़ में बड़ी ही आसानी से गया। यह देख कर लोग चकित रह गए। अब राजा उस फूल को लेकर मंत्री सहित अपने महलों की ओर वापस हो गया। घर पहुँच कर उसने उस फूल को सुरक्षित रख दिया और रात में सोते समय अपने सिरहाने रख लिया। फूल के विषय में जमादारिन को मालूम हो गया था। वह सतर्क हो गई। उसने सुबह राजा को शयन कक्ष से बाहर जाने दे कर उस फूल को चुपचाप उठा कर बाड़ी में फेंक दिया। राजा ने जब पूछा तो उसने कह दिया कि फूल तो कुम्हला गया था इसलिए मैंने उसे फेंक दिया। कमल के फूलों की भला क्या कमी है? तालाब से ताज़ा कमल के फूल मँगवा लीजिए। उसने कहा।

इस पर राजा चुप रह गया। क्या करता! बाड़ी में फेंक दिए जाने पर कमल का वह फूल लहलहाती भाजी में परिवर्तित हो गया। राजा जब एक दिन बाड़ी में गया तो उसकी दृष्टि उस लहलहाती भाजी पर पड़ी। वह उसे तोड़ लाया। जमादारिन को उसने उस भाजी को रांधने को कहा। जमादारिन को शंका हुई,उसने उस भाजी को भी फेंक दिया और दूसरी भाजी ख़रीद कर रांध दिया। फेंकी हुई वह भाजी बेल का पौधा बन गई। अब पौधा धीरे-धीरे बढ़ने लगा। बेल का एक बड़ा पेड़ खड़ा हो गया। उस पेड़ पर समय पर ख़ूब बेल-फल लगे। एक दिन राजा ने उस बेल के पेड़ से एक सुंदर-से फल को देख कर तोड़ लिया। बेल के उस पेड़ को देख कर उसे अपनी तपस्या के दिन याद आए। तोड़े हुए बेल-फल को जब उसने फोड़ा तब उसे यह देख कर भारी आश्चर्य हुआ कि कुएँ के पास वाली तद्रूप वही बेल-कन्या उसके सामने पुनः प्रगट हो गई है। इस घटना से वह अत्यंत प्रसन्न हुआ किंतु वह यह जानना चाहता था कि वह कौन है,जिसे उसने ब्याह कर अपनी रानी बना लिया है?

उसकी जिज्ञासा देख कर बेल-कन्या ने राजा को सब-कुछ साफ़-साफ़ बतला दिया कि वह जमादारिन नामक एक धूर्त स्त्री है,जिसने उसके गहने और पोशाक बातचीत के ज़रिए वस्तुस्थिति मालूम कर लेने के बाद पहन लिए और स्वयं रानी बन बैठने के लिए उसे कुएँ में धकेल दिया था। बेल-कन्या ने बतलाया,उस कुएँ में मैं कमल का फूल बन गई। फिर आप मुझे अपने साथ ले गए किंतु वह ताड़ गई और फूल को बाड़ी में फेंक दिया। बाड़ी में मैं भाजी बन गई। आपने भाजी ले जाकर जब उसे रांधने के लिए दी तब भी वह ताड़ गई और उसने भाजी को भी फेंक दिया। भाजी ने फिर बेल के पेड़ का रूप लिया। आपने बेल का फल तोड़ा, उसे फोड़ा तो तो मैं पुनः प्रगट हुई हूँ। हमारे-आपके भाग फिरे,ईश्वर ने फिर हम पर कृपा की।

इस तरह पूरी घटना मालूम होने के बाद राजा ने क्रोध मे कर जमादारिन को सामने बुलाया। वह काँप उठी और क्षमा माँगने लगी किंतु राजा ने उसे मृत्यु-दंड दिया और बेल-कन्या को अपनी रानी बना कर ईश्वर की कृपा से सुखपूर्वक राज करने लगा।

किए की सज़ा देर-सवेर मिल कर ही रहती है।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 131)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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