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तेनालीराम का सपना

tenaliram ka sapna

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एक दिन राजा कृष्णचंद्र राय ने बताया कि उसने एक सपना देखा, “क्या देखता हूँ तेनालीराम कि तुम और मैं अनजान रास्ते में कहीं जा रहे हैं। थोड़ा आगे चले तो देखा कि रास्ते के दोनों ओर दो गड्ढे हैं। एक गड्ढे में शहद भरा था और दूसरे में मल-मूत्र और तमाम गंदगी। रास्ता संकरा था। हम पंजों के बल संभल-संभलकर आगे बढ़े, पर हम दोनों फिसलकर गिर गए। मैं शहद के गड्ढे में गिरा और तुम मल-मूत्र के गड्ढे में।”

दरबारी तालियाँ पीट-पीटकर हँसने लगे। सब ख़ुश थे कि ससुरे तेनालीराम की अच्छी दुर्गति हुई—चाहे सपने में ही हुई हो। राजा ने आगे कहा, “मैंने जी भरकर शहद पीया और जैसे-तैसे गड्ढे से बाहर गया। लेकिन तुम अब भी बाहर निकलने के लिए मल में हाथ-पैर मार रहे थे। ज्यों-त्यों करके तुम बाहर आए, पर ठीक से खड़े भी नहीं हुए थे कि फिर गड्ढे में गिर गए। इस बार तुम सर के बल गिरे, यानी सर नीचे और पाँव ऊपर। फिर मेरी आँख खुल गई।”

दरबारी पेट पकड़कर हँसने लगे। हँसते-हँसते उनकी आँखों में पानी गया। पूरे दरबार में केवल तेनालीराम नहीं हँसा।

पर अगले दिन सुबह तेनालीराम दरबार में आया तो उसके पास भी सुनाने के लिए एक सपना था, “अन्नदाता ने कल हमें एक सपना सुनाया। कल रात मैंने भी एक सपना देखा जो वहाँ से आगे चलता है जहाँ आपने छोड़ा था। आप शहद के गड्ढे से निकले। काफ़ी कोशिशों के बाद मैं भी बाहर गया। पर हम इस हाल में तो घर नहीं जा सकते थे या जी सकते थे? सो मैं आपको चाटने लगा और आप मुझे चाटने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 191)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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