Font by Mehr Nastaliq Web

लड़की बनी मकड़ी

laDki bani makDi

अन्य

अन्य

एक लड़की थी जो बहुत सुंदर थी। उसका पिता धोतियाँ, चादरें और साड़ियाँ बुनने का काम करता था। वह बहुत संपन्न घर की थी। उसके पास अपार पैसा था। इस बात का उसे बहुत घमंड था। वह सभी को अपने से तुच्छ समझती थी। वह स्वयं को लक्ष्मीदेवी से अधिक धनवान, सरस्वती देवी से अधिक बुद्धिमान समझती थी।

जब उस लड़की के घमंड के बारे में सरस्वती देवी को पता चला तो उन्होंने उस लड़की को सबक सिखाने का विचार किया। वे वेश बदलकर उस लड़की के पास पहुँचीं।

‘मेरे लिए एक साड़ी बुन दो।’ सरस्वती ने लड़की से कहा।

‘मैं क्यों बुनूँ? मेरे नौकरों से कहो या मेरे पिता जी से कहो।’ लड़की ने मुँह बनाते हुए कहा।

‘इसका मतलब है कि तुम्हें साड़ी बुनना नहीं आता है।’ सरस्वती बोलीं।

‘क्यों नहीं आता है? मैं तो इतनी अच्छी साड़ी बुन लेती हूँ कि उस जैसी पूरी धरती में कोई नहीं बुन सकता है।’ लड़की घमंड से भरकर बोली।

‘तो ठीक है, बुनो! लेकिन यदि तुम नहीं बुन सकीं तो तुम्हें दंड भुगतना होगा।’ सरस्वती ने कहा।

लड़की ने सरस्वती की बात पर ध्यान नहीं दिया और साड़ी बुनने लगी। उससे बुनना तो आता नहीं था अतः उसने घर का सारा रेशम और सारा सूत उलझा दिया।

‘देख लो, तुमसे साड़ी बुनते नहीं बनता है। तुम कैसी पनिका हो?’ सरस्वती ने कहा और उसे दंडस्वरूप मकड़ी बना दिया।

‘अब तुम तब तक अपने पेट से धागे निकाल-निकाल कर बुनती रहोगी जब तक कि तुम्हें बुनना नहीं जाएगा। सरस्वती देवी ने कहा और वे वहाँ से चली गईं।

लड़की, मकड़ी बनकर जीवन भर जाले बुनती रही।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 279)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए