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राक्षसी रानी

rakshsi rani

लोग एक राजा की कहानी कहते हैं जिसके सात रानियाँ थीं फिर भी वह आस-औलाद का मुँह देखने के लिए तरस गया। पहली शादी के बाद उसने सोचा कि उसे बेटा होगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। बेटे की आस में उसने दूसरी शादी की, पर दूसरी रानी भी बाँझ निकली। एक के बाद एक उसने पाँच और शादियाँ कीं, पर उसे सिंहासन का वारिस नहीं मिला।

व्यथित हृदय लिए वह एक दिन जंगल में भटक रहा था। वहाँ उसने अलौकिक सौंदर्यशाली एक स्त्री देखी।

“तुम कहाँ जा रहे हो?” स्त्री ने पूछा।

राजा ने कहा, “मेरा हृदय बहुत व्याकुल है। मेरे सात रानियाँ हैं, पर एक भी बेटा पैदा नहीं हुआ जो मेरे बाद यह राज संभाल सके। मैं जंगल में इस आशा से आया हूँ कि यहाँ संभवतः मुझे कोई साधु-संन्यासी मिल जाए जिसके आशीर्वाद से मैं बेटे का मुँह देख सकूँ।”

स्त्री हँसी, “यहाँ मेरे अलावा कोई नहीं रहता। लेकिन मैं आपकी मदद कर सकती हूँ। अगर मैं आपकी इच्छा पूरी कर दूँ तो आप मुझे क्या देंगे?”

“मुझे एक बेटा दे दो, बदले में चाहे मेरा आधा राज्य ले लो।”

“मुझे राज्य या सोना-चाँदी नहीं चाहिए। मैं आपको पाना चाहती हूँ। मुझसे ब्याह कर लो, आपको वारिस मिल जाएगा।”

वह राज़ी हो गया। उस बला की ख़ूबसूरत औरत को वह राजमहल ले आया और उसी हफ़्ते उससे विवाह कर लिया।

कुछ ही दिनों में पहले की सातों रानियाँ गर्भवती हो गईं। पर राजा की ख़ुशी अधिक समय तक नहीं टिकी। आठवीं रानी दरअसल राक्षसी थी। राजा की आँखों धूल झोंकने के लिए वह सुंदर स्त्री के रूप में उसके सामने आई, ताकि वह महल में आराम से शिकार पा सके। रात को जब महल में सब सो जाते तो वह उठती और अस्तबल या बाड़े में जाकर एकाध हाथी, दो एक घोड़े, कुछ भेड़ें या एकाध ऊँट खा जाती। जी भरकर कच्चा माँस खाने और ख़ून पीने के बाद वह वापस अपने कमरे में आकर सो जाती। राजा के डर से शुरू में उसके नौकरों ने पशुओं के ग़ायब होने के बारे में उसे कुछ नहीं बताया। लेकिन यह सिलसिला चलता रहा और जानवरों की संख्या घटने लगी तो मजबूरन उन्हें राजा को बताना पड़ा। राजा के आदेश से महल के परकोटे का पहरा और सख़्त कर दिया गया। चप्पे-चप्पे पर पहरेदार तैनात कर दिए गए। मगर जानवरों का ग़ायब होना बंद नहीं हुआ। कोई नहीं जानता था कि आख़िर जानवर जाते कहाँ हैं।

एक रात राजा बेचैनी से अपने कक्ष में टहल रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे और क्या करे। तभी आठवीं और सबसे सुंदर रानी उसके पास आई और कहा, “अगर मैं चोर का पता लगा लूँ तो मुझे क्या देंगे?”

“कुछ भी, जो तुम कहो!”

“अच्छी बात है। अब आप आराम करें। सुबह आपका अपराधी आपके सामने होगा।”

शीघ्र ही राजा अगाढ़ नींद में डूब गया। उसे नींद आते ही धूर्त रानी शयनकक्ष से निकली और दबे पाँव भेड़ के बाड़े मे गई। उसने एक भेड़ मारकर उसके ख़ून से हंड़िया भरी, एक-एक कर सातों रानियों के कमरों में गई और उनके मुँह और कपड़ों पर ख़ून चुपड़ दिया। इसके बाद वह वापस आकर राजा की बग़ल में सो गई। सवेरे उसने राजा को जगाया और कहा, “आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होगा, पर आपकी सातों रानियाँ ही असली अपराधी हैं। वे जानवरों को ज़िंदा खा जाती हैं। वे मानवी नहीं, राक्षसनियाँ हैं। उनसे सावधान रहना, आपके प्राण संकट में हैं। मेरी बात ग़लत हो तो चलिए, अपनी आँखों से देख लीजिए!”

राजा गया और उसने सात रानियों के मुँह और कपड़ों पर लगा ख़ून देखा। वह अपने प्राणों के लिए भयभीत हो गया। उसने आदेश दिया कि सातों की आँखें निकाल ली जाएँ और शहर के बाहर सूखे कुएँ में पटक दिया जाए। वहाँ वे ख़ुद ही भूख से तड़प-तड़प कर मर जाएँगी। राजा के आदेश का तुरंत पालन किया गया।

अगले हफ़्ते उनमें से एक रानी ने बेटे को जन्म दिया। भूख से उनकी जान निकली जा रही थी। वे अपने को रोक सकीं और नवजात शिशु को खा गईं। दूसरी रानी के बच्चा हुआ तो वे उसे भी खा गईं। इस तरह छह बच्चे जन्मते ही भूख ही ज्वाला में भस्म हो गए। सातवीं रानी, जिसके प्रसव सबसे अंत में हुआ छह बच्चों का अपना हिस्सा बचाकर रखती रही थी। जब उसके प्रसव हुआ तो उसने बाक़ी रानियों से अनुरोध किया वे उसके बच्चे को छोड़ दें। इसके बदले उसने उन्हें अपना बचाकर रखा हुआ हिस्सा दे दिया। इस तरह आख़िर बच्चे का जीवन बच गया।

धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होने लगा। जब वह छह बरस का हो गया तो रानियों ने सोचा कि उसे बाहर की दुनिया भी देखनी चाहिए। पर कैसे? कुआँ गहरा था और उसकी दीवार एकदम सीधी थी। पर अंततः उनमें से एक ने उपाय ढूँढ़ निकाला। सब एक के ऊपर एक खड़ी हो गईं और सबसे ऊपर वाली ने बच्चे को कुएँ की जगत तक पहुँचा दिया। बच्चा यहाँ-वहाँ दौड़ता-कूदता संयोग से राजमहल पहुँच गया। राजमहल कुएँ से ज़्यादा दूर नहीं था। महल में इधर-उधर डोलता वह रसोई में गया और कुछ खाने को माँगा। वहाँ उसे बचा-खुचा बहुत-सा खाना मिला। उसमें से कुछ उसने खाया और बाक़ी माँ और दूसरी रानियों के लिए ले गया।

बहुत समय तक ऐसा चलता रहा। वह काफ़ी लंबा-तगड़ा हो गया! एक सुबह रसोइए ने उससे राजा का खाना बनाने को कहा। रसोइए की माँ का निधन हो गया था और उसे उसके दाह संस्कार के लिए जाना था। लड़के ने उसे आश्वस्त किया कि वह राजा के खाने की फ़िक्र करे। रसोइया चला गया। उस दिन के खाने से राजा बहुत प्रसन्न हुआ। हर चीज़ बढ़िया पकी हुई थी। उनमें छौंक, मसाला वग़ैरा सब सही मात्रा में था और उन्हें अच्छी तरह से परोसा गया था। शाम को रसोइया लौट आया। राजा ने उसे बुलवाया और कहा कि दुपहर का खाना बहुत अच्छा था। ऐसा खाना वह रोज़ क्यों नहीं बनाता? रसोइया ईमानदार था। उसने कहा कि उसकी माँ के देहांत के कारण आज दिन का खाना उसकी एवज में एक छोरे ने बनाया था। राजा को आश्चर्य हुआ। उसने रसोइए को कहा कि वह छोरे को रसोई में नौकरी पर रख ले। उस दिन से राजा के खाने के स्वाद और परोसगारी में बहुत अंतर गया। दिनों दिन राजा उस पर अधिक मेहरबान होता चला गया। समय-समय पर उसने उसे कई पुरस्कार दिए। साथ ही वह माँ और बाक़ी रानियों के लिए ढेरों खाना ले जाता था।

राजमहल से कुएँ पर लौटते हुए उसे रोज एक फ़क़ीर के सामने से होकर जाना होता था। फ़क़ीर रोज़ उसे दुआ देता था और भिक्षा माँगता था। लड़का हमेशा कुछ कुछ देता था। इस तरह कुछ बरस और गुज़र गए। लड़का बाँका नौजवान बन गया। एक दिन दुष्ट रानी की उस पर नज़र पड़ी। उसके चेहरे-मोहरे और तेज़ से वह दंग रह गई। रानी ने उससे पूछा कि वह कौन है और कहाँ रहता है। लड़के को कुछ पता नहीं था कि वह किससे बात कर रहा है। उसने उसे अपने बारे में और अपनी माँ, बाक़ी छह रानियों और कुएँ के बारे में सब-कुछ बता दिया। उसी पल से राक्षसी रानी उसे जान से मारने की साज़िश करने लगी। कुछ दिन बाद रानी ने बीमार होने का ढोंग किया। हकीम को घूस देकर उसने राजा को कहलवाया कि उसे जान लेवा बीमारी है, लेकिन बाघिन के दूध से वह ठीक हो सकती है।

समाचार मिलते ही राजा भागा आया। बोला, “प्रिय, यह तुम्हें क्या हो गया? हकीम कह रहा था कि तुम बहुत बीमार हो और तुम्हें बाघिन का दूध पीना चाहिए। पर बाघिन का दूध कहाँ मिलेगा? बाघिन का दूध दूह सके इतना कलेजा किसका है!”

“है, एक आदमी है जो बाघिन को दूहने की हिम्मत रखता है—वह छोकरा जो रसोई में खाना बनाता है। वह बहादुर और वफ़ादार है। आपने क्या उसके लिए कुछ कम किया है? वह आपके उपकारों तले इतना दबा है कि वह आप के हर आदेश का पालन करेगा।”

राजा ने लड़के को बाघिन का दूध लाने को कहा तो वह तुरंत तैयार हो गया। अगले दिन वह बाघिन का दूध लाने के लिए रवाना हुआ तो सातों रानियाँ बहुत रोईं, गिड़गिड़ाईं, पर उसने अपना इरादा नहीं बदला। रास्ते में उसे वह फ़क़ीर मिला यह जानकर कि वह कहाँ और क्यों जा रहा है फ़क़ीर ने कहा, “मत जाओ। ऐसे ख़तरनाक काम का बीड़ा उठाने के लिए क्या तुम्हीं रह गए थे!” पर वह जैसे भी राजा का मन जीतना चाहता था। और ख़तरों से खेलने में उसे मज़ा भी आता था। आख़िर फ़क़ीर ने कहा, “तो ठीक है, जाओ! पर मेरी बात ध्यान से सुनो! अगर मेरी सलाह पर चलोगे तो तुम्हें ज़रूर कामयाबी मिलेगी। मैं तुम्हें बताता हूँ कि कहाँ जाना है। जब तुम्हें बाघिन मिले तो उसकी एक चूची पर छोटा तीर मारना। बाघिन तुम से पूछेगी कि तुमने उसे तीर क्यों मारा तो कहना कि तुम उसे मारना नहीं चाहते। तुम तो सिर्फ़ उसकी चूची का छेद बड़ा करना चाहते हो ताकि उसके शावक आराम से और तेज़ी से दूध पी सके। उससे कहना कि तुम्हें उसके शावकों पर तरस आता है जो कमज़ोर और बीमार लगते हैं। मानो उन्हें पूरा दूध नहीं मिलता।” फ़क़ीर की दुआ लेकर वह बाघिन की खोज में जंगल की ओर चल पड़ा।

लड़के को जल्दी ही बाघिन मिल गई। उसने उसकी एक चूची पर निशाना साध कर तीर चलाया। बाघिन ने ग़ुस्से से पूछा कि उसने उस पर वार क्यों किया। लड़के ने वही जवाब दिया जो उससे फ़क़ीर ने कहा था। अंत में उसने यह भी जोड़ दिया कि रानी बहुत बीमार है और उसके इलाज के लिए बाघिन का दूध चाहिए। बाघिन ने कहा, “रानी? मरने दो उसे! तुम्हें मालूम नहीं वह राक्षसी है। उससे दूर रहो। वह तुम्हें भी मारकर खा जाएगी।”

लड़के ने कहा, “रानी साहिबा मेरी दुश्मन नहीं है। फिर मैं क्यों डरूँ!”

“अच्छी बात है, मैं तुम्हें अपना दूध दूँगी। पर रानी से होशियार रहना। ज़रा मेरे साथ आओ”, बाघिन ने कहा और उसे एक बड़ी चट्टान पर ले गई। “मैं चट्टान पर दूध की एक बूँद गिराती हूँ, तुम देखना क्या होता है।” उसके दूध की बूँद गिरते ही चट्टान के हज़ार टुकड़े हो गए। “देखी मेरे दूध की ताक़त! लेकिन तुम्हारी रानी मेरा सारा दूध पी जाए तब भी उस पर कोई असर नहीं होगा। क्योंकि वह राक्षसी है। भरोसा हो तो आज अपनी आँखों से देख लेना।”

लड़का जंगल से वापस आया और राजा को दूध दिया। राजा दूध को रानी के पास ले गया। वह उसे एक ही साँस में पी गई और रोगमुक्त होने का दिखावा किया। राजा लड़के से बहुत ख़ुश हुआ और उसका ओहदा बढ़ा दिया। पर रानी तो उसका खात्मा चाहती थी। वह कुचक्र रचती रही। कुछ दिन बाद उसने फिर बीमार होने का बहाना किया और राजा से कहा, “बीमारी मेरा पीछा ही नहीं छोड़ती। पर आप चिंता करें। मेरे दादा उसी जंगल में रहते हैं जहाँ से वह लड़का बाघिन का दूध लाया था। उनके पास एक ख़ास दवाई है, उससे मैं ठीक हो जाऊँगी। आप मेहरबानी करके उस लड़के से कहिए कि वह दादाजी से वह दवाई ले आए!”

सो वह लड़का फिर चल पड़ा। रास्ते में उसे वही फ़क़ीर मिला। उसने पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो?” लड़के ने उससे कुछ नहीं छुपाया।

फ़क़ीर ने कहा, “मत जाओ। वह राक्षस तुम्हें मारे बिना नहीं छोड़ेगा।” पर लड़का पीठ दिखाने को राजी नहीं हुआ। “तुम मानोगे नहीं? तो जाओ, पर मेरी बात सुनते जाओ! जब तुम राक्षस से मिलो तो उसे नाना कहकर पुकारना। वह तुम्हें अपनी पीठ खुजाने के लिए कहेगा। तुम उसकी पीठ खुजाना ज़रूर, पर बहुत उज्जड तरीक़े से।”

लड़के ने कहा कि वह ऐसा ही करेगा और चल पड़ा। जंगल बहुत घना और बीहड़ था। लड़के को लगा कि वह कभी राक्षस के मकान तक नहीं पहुँच पाएगा। पर आख़िर वह उस तक पहुँच ही गया। वह दूर से ही चिल्लाया, “नानाजी, मैं आप का नाती हूँ। माँ बहुत बीमार है। उसने कहा है कि आप के पास कोई अचूक दवा है। मैं उसी के लिए आया हूँ।”

राक्षस ने कहा, “अच्छी बात है, मैं तुम्हें दवाई दूँगा। लेकिन पहले इधर आओ और ज़रा मेरी पीठ खुजा दो। बहुत खाज चल रही है।” राक्षस ने झूठ बोला था। उसके खाज-वाज कुछ नहीं चल रही थी। वह तो यह परख करना चाहता था कि वह सचमुच राक्षसी का बेटा है या नहीं। लड़के ने उसकी पीठ में नाखून धंसा दिए और ऐसे हिंस्र तरीक़े से खुजाने लगा मानो माँस नोच लेगा। राक्षस ने उसे रोका और उसकी पीठ ठोंकी। फिर उसे दवाई देकर विदा किया। जब राजा ने रानी को दवाई दी तो उसका पित्ता सुलग उठा। पर राजा लड़के पर पहले से भी ज़्यादा ख़ुश हुआ और उसे इनामों से लाद दिया।

दुष्ट रानी रात-दिन इस उधेड़बुन में रहती कि इस छोकरे से कैसे निजात पाए। वह जैसे भी हो उसे रास्ते से हटाना चाहती थी, पर इस तरीक़े से कि राजा को पता चले। बाघिन और उसके दादा के चंगुल से वह सही-सलामत निकल आया। यह कैसे संभव हुआ? अब रानी क्या करे? आख़िर उसने उसे अपनी दादी के पास भेजने का निश्चय किया। इस राक्षसी का मकान उसी जंगल में था।” इस बार वह नहीं बच पाएगा,” उसने सोचा और राजा से कहा, “मेरी दादी के पास मेरा बेशक़ीमती कंधा है। उस लड़के को भेजकर उसे मँगवा नहीं देंगे? मैं उसे दादी के नाम चिट्ठी लिख दूँगी।” राजा मान गया। लड़का रवाना हुआ। हमेशा की तरह रास्ते में उसे वह फ़क़ीर मिला। लड़के ने उसे बताया कि वह कहाँ जा रहा है और वह चिट्ठी दिखाई। फ़क़ीर ने कहा, “चिट्ठी देना ज़रा!”

चिट्ठी पढ़कर उसने कहा, “वहाँ तुम मरने के लिए जा रहे हो। इसमें तुम्हारी मौत का फ़रमान है। लिखा है—‘ख़त लाने वाला मेरा दुश्मन है। जब तक यह ज़िंदा है मुझे चैन नहीं मिलेगा। ख़त पढ़ते ही इसे मार डालना।’

लड़के को धक्का लगा। फिर भी वह राजा को दिया वचन तोड़ना नहीं चाहता था, चाहे उसकी जान ही क्यों चली जाए। सो फ़क़ीर ने वह पत्र फाड़कर फेंक दिया और उसके स्थान पर दूसरा पत्र लिख दिया—‘यह मेरा बेटा है। मैं चाहती हूँ कि यह अपनी परनानी से मिले। इसे लाड़-दुलार से रखना।’

लड़का आगे बढ़ा और चलता रहा, चलता रहा जब तक कि बूढ़ी राक्षसी का घर नहीं गया। उसने उसे नानी कहकर पुकारा और उसे पत्र दिया। चुड़ैल बुढ़िया ने उसे गले लगाया, उसे चूमा और अपनी पोती दामाद का हालचाल पूछा। उसने उसकी ख़ूब ख़ातिरदारी की और क़ीमती उपहार दिए। और चीज़ों के साथ-साथ उसने उसे ऐसी साबुन की टिकिया दी जो ज़मीन पर पटकने पर विशाल पहाड़ बन जाती थी। सूइयों से भरा एक मर्तबान दिया। सूइयाँ ज़मीन पर बिखेरने पर काँटों का पहाड़ बन जाती थीं। और एक पानी का कलश दिया। वह पानी ज़मीन पर फैलाने से बड़ी झील बन जाता था। साथ ही बुढ़िया ने उसे कई गुप्त चीज़ें दिखाईं—सात बाँके मुर्ग़े, चरखे का पहिया, एक कबूतर, एक तेलियर चिड़िया और दवाई की शीशी।

इन चीज़ों का रहस्य भी समझाया, “इन मुर्ग़ों में मेरे बेटे यानी तुम्हारे सात नानाओं के प्राण बसते हैं। तुम्हारे सातों नाना दुनिया के अलग-अलग कोनों में रहते हैं। जब तक ये मुर्ग़े सलामत हैं कोई उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकता। इसीलिए मैं इन्हें यहाँ अपने पास रखती हूँ। मेरे प्राण चरखे के इस पहिए में हैं। इसके टूटते ही मेरे भी टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे। नहीं तो मैं अमर हूँ। इस कबूतर में तुम्हारे परनाना के प्राण हैं और तेलियर में तुम्हारी माँ के। जब तक ये ज़िंदा हैं तुम्हारे परनाना और माँ का कुछ नहीं बिगड़ सकता और इस दवाई से अंधे फिर देखने लगते हैं।”

जो चीज़ें राक्षसी ने उसे उपहार में दीं और जो उसे दिखाई उसके लिए उसने उसका बहुत आभार माना। सवेरे बुढ़िया नदी पर नहाने गई। मौक़ा देखकर लड़के ने सातों मुर्ग़ों और कबूतर को मार डाला और चरखे के पहिए को ज़मीन पर पटककर खंड-खंड कर दिया। इस तरह राक्षसी, राक्षस और उनके सातों बेटे मर गए। उनके मरने के साथ ही भयंकर आवाज़ हुई। फिर उसने तेलियर को पिंज़रे में डाला और उसे और अंधी आँखों को रोशनी देने वाली दवाई की शीशी उठाकर वापस चल पड़ा। सबसे पहले वह कुएँ पर गया। वहाँ माँ और बाक़ी रानियों की आँखों में दवाई डाली। वे अत्यधिक हर्ष और आश्चर्य से कभी इसे देखती कभी उसे। वे कुएँ से निकलीं और लड़के के साथ राजमहल गईं। लड़के ने उन्हें एक कमरे में बिठाकर इंतज़ार करने को कहा और राजा को उनके बारे में बताने गया।

लड़के ने राजा से कहा, “मुझे ऐसी बहुत-सी बातें पता चलीं हैं जो आप नहीं जानते। मेरी बात ध्यान से सुनिए! आपकी रानी राक्षसी है। उसने मुझे जान से मारने की साज़िश की, क्योंकि उसे पता है कि मैं आपका बेटा हूँ। आपको अपनी सात रानियों की याद है जिन्हें आपने इस राक्षसी के उकसावे पर कुएँ में फिंकवा दिया था? मैं आपकी सातवीं रानी का बेटा हूँ। आपकी आठवीं राक्षसी रानी को डर है कि एक दिन आप असलियत जान जाएँगे और मैं सिंहासन का उत्तराधिकारी होऊँगा। इसलिए वह मुझे ज़िंदा नहीं देखना चाहती। आज ही मैंने उसके दादा, दादी और सात चाचाओं का ख़ात्मा किया है और अब मैं उसे मारूँगा। उसके प्राण इस तेलियर में हैं।” यह कहकर उसने तेलियर की गर्दन मरोड़ दी। दुष्ट रानी जहाँ थी वहीं ठंडी हो गई। उसकी गर्दन एक ओर पड़ी थी। ज्यों ही वह मरी उसका मूल भद्दा राक्षसी चेहरा प्रकट हो गया। फिर उसने पिता से कहा, “अब मेरे साथ चलिए!” और उसे सात रानियों के पास ले गया। “ये आपकी सच्ची रानियाँ हैं। आपके सात बेटे हुए थे, पर उनमें से छह उस मौत के कुएँ में भूख की आग की भेंट चढ़ गए। सिर्फ मैं बचा।”

“ओह, यह मैंने क्या किया!” राजा चीख़ पड़ा। “मुझे धोखा दिया गया। मैं अंधा हो गया था। निर्दोष रानियों पर मैंने बहुत अत्याचार किया।” वह फूट-फूट कर रोने लगा।

राजा ने अपना सारा राज-काज अपने इकलौते बेटे को सौंप दिया। नए राजा बहुत बुद्धिमानी से राज चलाया। बूढ़ी राक्षसी के लिए जादुई साबुन, सूइयों और कलश के पानी की मदद से उसने आस-पास की रियासतों को अपने राज्य में मिला लिया। बूढ़े राजा ने सात पत्नियों के साथ शेष जीवन आनंद से बिताया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 77)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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