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टिपटिपवा

tipatipva

अन्य

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एक जंगल में एक बुढ़िया रहती थी। उसके पास एक घोड़ा था। उस घोड़े पर कइयों की नज़र थी। वे उसे भगा ले जाने की फ़िराक़ में थे। एक दिन की बात है। अँधेरा हो गया था। बिजुली चमक रही थी। वहाँ एक चोर और एक बाघ आए घोड़े को ले जाने के लिए। चोर सोच रहा था कि अबकी बिजुली चमके तो घोड़े को ले भागूँ। उधर बाघ भी सोच रहा था कि बिजुलिया चमके तो घोड़े को खा जाईं। टिप-टिप बारिश भी हो रही थी। इसी समय बुढ़िया ने बोला, “न डर है चोरवा के, है बघवा के। असली डर है टिपटिपवा के।”

चोर सोच में पड़ गया कि इस बुढ़िया को मुझसे ही डर है और बाघ से डर है। डर है तो टिपटिपवा से। आख़िर यह टिपटिपवा है कौन? बाघ भी सोच में पड़ गया कि इस बुढ़िया को मुझसे डर है, चोरवे से डर है, फिर यह टिपटिपवा है कौन? इसी बीच बिजुली चमकी तो बाघ मुँह फाड़कर घोड़े को पकड़ने दौड़ा और चोर लगाम लेकर घोड़े को पकड़ने दौड़ा। पर लगाम घोड़े के गले में पड़के बघवे के गर्दन में पड़ गया। चोर उसी पर चढ़ गया और बाघ लगा भागने। चोर और बाघ यही समझ रहे हैं कि हम फँस गए टिपटिपवा के फेर में। बिहान होने पर, सवेरा होने पर चोर ने देखा कि वह तो बाघ की सवारी कर रहा है। वह झट से कूद गया और एक पेड़ के खोढ़र में समा गया। बाघ तो भागता ही जा रहा था।

एक सियार यह सब करामात देख रहा था। उसने बाघ को रोककर पूछा, “बाघ मामू, तू कहाँ भागल जा रहे हो? वह आदमी उस पेड़ के खोढ़रवा में ढुंकल है।” बाघ बोला, “वह आदमी नहीं है, वह टिपटिपवा है।” सियार के ज़्यादा ज़ोर देने पर उस आदमी को देखने के लिए बाघ सियार के साथ चल दिया। सियार आगे-आगे और बाघ उसके पीछे-पीछे। सियार ने बाघ को खोढ़रवा में पूँछ समावे कहा, तो बाघ ने कहा कि पहले तुम अपना पूँछ समाओ। अंत में सियार ने पूँछ को खोढ़रवा में समाया तो चोर उसका पूँछ पकड़ कर ऊपर खींचने लगा। दोनों तरफ़ से बराबर ज़ोर लगने के कारण सियार का पूँछ कुबर गया। ऐसा होते ही सियार अपनी जान बचाकर भागा। बाघ भी टिपटिपवा समझकर भाग निकला। मौक़ा पाते ही चोर भी खोढ़रवा से निकल भागा। इस तरह से चोर और बाघ दोनों ने टिपटिपवा से अपनी जान बचाई। बुढ़िया का घोड़ा तो पहले ही बच गया था।

स्रोत :
  • पुस्तक : बिहार की लोककथाएँ (पृष्ठ 5)
  • संपादक : रणविजय राव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2019

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