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रानी बिंदुलिया

rani binduliya

अन्य

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एक राजा था जिसकी रानी का नाम था बिंदुलिया। रानी बिंदुलिया अपूर्व सुंदर ही नहीं अपितु व्यवहार में भी अत्यंत मधुर थी। राजा और रानी के बीच परस्पर अगाध प्रेम था। दोनों के परस्पर प्रेम के चर्चे दूर-दूर तक थे। दोनों आपस में विचार-विमर्श करके राजकाज चलाते थे। जिससे समूचे राज्य में सुख-शांति व्याप्त थी।

रानी बिंदुलिया के राज्य में एक बुढ़िया रहती थी। वह देखने में सीधी-सादी और भोली-भाली दिखाई पड़ती थी किंतु थी वह दुष्ट और चालाक प्रवृत्ति की। वह झाड़-फूँक, जादू-टोना तथा डायन कर्म करती थी। एक दिन बुढ़िया राजा के महल में पहुँची। बुढ़िया ने रानी से मिलने की इच्छा प्रकट की। उस समय रानी बिंदुलिया स्नान की तैयारी कर रही थी। अत: उसने उस समय मिलने से मनाकर दिया। बुढ़िया को लगा कि रानी जानबूझ कर उसकी अवहेलना कर रही है। वह दुष्ट प्रकृति की तो थी ही, उसने रानी से बदला लेने का निश्चय किया।

बुढ़िया ने अपने घर लौटकर मंत्र पढ़कर अपने पालतू साँप को रानी बिंदुलिया के पास भेजा ताकि साँप उसे डँस ले और वह साँप के विष के प्रभाव से बारह पहर तक गहरी नींद में सोती रहे। साँप रानी बिंदुलिया के महल में पहुँचा और उसने रानी को डँस लिया। विष का प्रभाव होते ही रानी को गहरी नींद आने लगी और वह बारह पहर के लिए सो गई। जब राजा, रानी बिंदुलिया से मिलने आया तब भी रानी नहीं जागी। राजा को क्या पता कि रानी को मंत्र पढ़े सर्प ने डँसा है, राजा ने समझा कि रानी यूँ ही सो रही है। वह अपने महल में लौट गया।

इधर साँप रानी बिंदुलिया को डँसकर वापस बुढ़िया के पास जा पहुँचा। बुढ़िया ने एक और मंत्र पढ़ा और इस बार उसे राजा को डँसने के लिए भेजा। साँप राजा के पास पहुँचा। उस समय वह अपने पलंग पर सो रहा था। साँप राजा के पलंग पर चढ़ गया और लहराता हुआ उसकी छाती पर सवार हो गया। राजा की नींद खुल पाती इसके पहले ही साँप ने राजा को डँस लिया। साँप के डँसने से राजा मर गया। बुढ़िया की यही योजना थी। उसने यही सोच रखा था कि वह पहले रानी को जिससे जब राजा को साँप काटे तो रानी उसके लिए वैद्य बुला सके। जब साँप के डँसने से राजा मर जाए तो रानी की नींद खुले। रानी बिंदुलिया जब राजा को मृत देखेगी तो उसे बहुत दुख होगा और वह विलाप करती हुई मर जाएगी। इसके बाद बुढ़िया राज्य पर अधिकार कर लेगी और स्वयं रानी बन जाएगी।

बुढ़िया की योजना के अनुसार राजा के मरने के बाद बारह पहर पूरे होने पर रानी बिंदुलिया की नींद खुली। उसे लगा कि वह बहुत देर तक सोती रही और इस बीच राजा आकर चले गए होंगे। वह भागी-भागी राजा के महल में पहुँची। वहाँ जाकर उसने देखा कि राजा सो रहा है। पहले तो रानी बिंदुलिया ने सोचा कि राजा को जगाया जाए किंतु फिर सोचा कि जगाकर पूछ लेना चाहिए कि राजा उससे मिलने आया था या नहीं। रानी बिंदुलिया ने राजा को जगाने का प्रयास किया किंतु राजा नहीं जगा—

उठ भी जाओ, ऐसे रूठो

हम जो सोए, तुम क्यों खोए

देखो, तुम्हारे बिन ये हमरे दोनों नैना रोए...

रानी के गीत गाकर जगाने पर भी राजा नहीं जागा। तब रानी को संदेह हुआ। उसने राजा की नाड़ी देखी और चीख़ मारकर गिर पड़ी। राजा मर चुका था। मूर्छित अवस्था में रानी बिंदुलिया को एक स्वप्न दिखा। स्वप्न में उसने देखा कि एक बुढ़िया मंत्र पढ़कर एक साँप को भेज रही है। साँप आता है और पहले रानी बिंदुलिया को डँस लेता है फिर राजा को डँस लेता है। स्वप्न पूरा होते ही रानी बिंदुलिया की मूर्छा टूट गई। चैतन्य होते ही रानी बिंदुलिया ने सिपाहियों को बुलाया और स्वप्न में दिखी बुढ़िया की हुलिया बताकर उसे पकड़ लाने को भेजा। सिपाही चारों दिशाओं में दौड़े और बुढ़िया को ढूँढ़कर पकड़ लाए।

‘सुन बुढ़िया! यदि तूने राजा को अभी इसी सभय जीवित नहीं किया तो मैं तुझे भूमि में जीवित गड़वा दूँगी।’ रानी ने बुढ़िया को डाँटते हुए कहा।

बुढ़िया डर से थर-थर काँपने लगी। उसने तत्काल अपने सर्प को बुलाया। मंत्र को उल्टा पढ़ा और सर्प को आदेश दिया कि वह राजा के शरीर से सारा विष चूस ले। सर्प ने ऐसा ही किया। शरीर से सारा विष निकलते ही राजा जीवित हो उठा।

‘आज मैं बहुत देर तक सोया।’ राजा ने चैतन्य होते ही कहा।

‘नहीं महाराज, आप सोए नहीं थे, इस बुढ़िया ने आपको मार डाला था। यह बुढ़िया डायन है। इसने मुझे भी मारना चाहा।’ रानी बिंदुलिया ने राजा को बताया।

‘मेरे राज्य में किसी डायन के लिए कोई जगह नहीं है। तुमने मुझे और रानी को मारना चाहा अत: तुम्हें मृत्युदंड मिलेगा।’ राजा क्रोधित होकर बोला।

‘नहीं महाराज, मुझे क्षमा करें! अब मैं कभी डायन-कर्म नहीं करूँगी।’ बुढ़िया रोने-गिड़गिड़ाने लगी।

‘जब यह कह रही है कि अब ये कभी डायन-कर्म नहीं करेगी तो इसे क्षमा कर दीजिए, महाराज! यह तो वैसे भी बूढ़ी है, यूँ भी इसके जीवन के दिन कम ही बचे हैं

अत: आप इसे मृत्यु-दंड दें।’ रानी बिंदुलिया ने उदरतापूर्वक कहा।

‘ठीक है। तुम कहती हो तो इसे क्षमा कर देता हूँ लेकिन यदि इसने फिर कभी किसी के प्रति डायन-कर्म किया तो मैं इसे तत्काल जीवित जलवा दूँगा।’ राजा ने कहा।

‘मैं अब कभी कोई ग़लत काम नहीं करूँगी!’ बुढ़िया ने कहा और वह इस बात से लज्जित हो उठी कि वह जिस रानी बिंदुलिया को दुख पहुँचाकर मार डालना चाहती थी उसी रानी ने उसे जीवनदान दिया।

उस दिन के बाद बुढ़िया ने कभी कोई डायन-कर्म नहीं किया और राजा तथा रानी बिंदुलिया के राज्य में सुख-शांति का वातावरण बना रहा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 6)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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