Font by Mehr Nastaliq Web

गप्प, गप्पुल्ली, गप्पी

gapp, gappulli, gappi

अन्य

अन्य

एक गाँव में दो मित्र रहते थे। एक का नाम था गप्प और दूसरे का गपुल्ली। दोनों अपने-अपने नाम के अनुरूप गप्पें हाँकने में माहिर थे। यदि गप्प कहता कि एक बार आसमान फट गया था तब मेरे दादा ने उसे सुई धागे से सिला था तो गपुल्ली कहता एक बार पहाड़ों को ठंड लग रही थी तो मेरे दादा ने अपना कंबल ले जाकर उन्हें ओढ़ा दिया था।

गप्प का एक बेटा था जिसका नाम था गप्पी। वह भी बढ़ा-चढ़ाकर बातें कहने में कम नहीं था लेकिन वह अपने पिता के सामने कम ही बोलता था अत: उसे अपने बेटे के इस गुण का ठीक-ठीक पता नहीं था।

एक दिन गपुल्ली गप्प के घर आया। गप्प उस समय घर पर नहीं था। उसका बेटा गप्पी मिला। गपुल्ली ने गप्पी से कहा कि जब तुम्हारे पिताजी आएँ तो उन्हें बता देना कि मैं आया था और मुझे तुम्हारे आँगन का यह खजूर का पेड़ चाहिए। इतना सुनना था कि गप्पी चिंता के भाव चेहरे पर लाकर बोला, ‘चाचा, आपको ये ताड़ का पेड़ चाहिए? मगर आपको पता नहीं है कि आज सुबह इस पेड़ को लेकर मेरे माता-पिता में बहुत झगड़ा हुआ है। पिता कह रहे थे कि मुझे इस पेड़ को कटवाकर अपनी चारपाई के एक टूटे पाए के स्थान पर लगाना है। जबकि माँ कह रही थीं कि नहीं, मुझे इस पेड़ की अपनी दंत-खोदनी बनानी है। अब आप ही बताइए कि यह पेड़ आपको पिता जी कैसे दे सकेंगे?’

गपुल्ली समझ तो गया कि गप्पी झूठ बोल रहा है लेकिन उसने कहा कुछ नहीं और वापस चला गया। थोड़ी देर बाद जब गप्प आया तो गप्पी ने उसे पूरा क़िस्सा सुना दिया किस तरह उसने गपुल्ली को गप्प सुना दी। गप्प ने अपने बेटे की बातें सुनी तो वह दंग रह गया कि वह तो अपने बाप से भी आगे निकला जा रहा है। उसी क्षण गप्प के मन में ईर्ष्या जागी और उसने अपने ही बेटे को अपने रास्ते से हटाने का प्रयास किया। वह एक कुएँ के पास गया और कहने लगा कि कुएँ में कितने सुंदर दृश्य दिख रहे हैं। जिज्ञासावश गप्पी भी कुएँ में झाँकने लगा। गप्प ने मौक़ा देखकर गप्पी को कुएँ में धकेल दिया। गप्पी कुएँ में गिरकर कुछ देर तो चुप रहा फिर कहने लगा कि मुझे जल्दी बाहर निकालो। मैंने यहाँ एक बहुत बड़ी मछली पकड़ रखी है।

गप्प ने मछली का नाम सुना तो उसके मुँह में पानी गया। उसने एक रस्सी कुएँ में लटका दी और लड़के से कहा कि वह बाहर निकल आए। लटका रस्सी पकड़कर कुएँ से बाहर गया।

‘मछली कहाँ है?’ गप्पी को खाली हाथ देखकर गप्प ने पूछा।

‘अब मछली कहाँ रखी? आपने कुएँ से निकलने को रस्सी दी थी इसलिए मुझे मछली कुएँ में वापस डाल देनी पड़ी वरना मैं रस्सी कैसे पकड़ता?’ गप्पी ने उत्तर दिया।

गप्प समझ गया कि उसके बेटे ने मछली के बारे में गप्प कहा था। मछली उसने पकड़ी ही नहीं थी। उसी समय गपुल्ली फिर से गया। उसे जब सारी बातें पता चलीं तो उसने गप्प को समझाया कि उसे तो अपने बेटे पर गर्व होना चाहिए कि वह उससे भी बड़ा गपोड़ी है। गप्प की आँखें खुल गईं और उसने अपने बेटे को अपने सीने से लगा लिया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 339)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए