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पहचान का प्रश्न

pahchan ka parashn

अन्य

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उन दिनों कोरकू समाज में गोदना गोदवाने का चलन नहीं था। उन्हीं दिनों एक परिवार में दो भाई रहते थे। एक छोटा था और दूसरा बड़ा। संयोगवश दोनों एक समान दिखाई देते थे। उनका रंग-रूप और क़द-काठी एक जैसी थी। जो भी उनमें से एक को देखता, वह धोखा खा जाता कि उसके सामने बढ़ा भाई है या छोटा भाई।

एक दिन बड़े भाई को किसी काम से दूसरे गाँव जाना पड़ा। जब वह लौट रहा था तो एक राहगीर उसके साथ हो लिया। बड़े भाई को राहगीर का सामान पसंद गया और उसने उस राहगीर का सामान चुरा लिया। राहगीर ने उसे सामान चुराकर जाते हुए देख लिया।

राहगीर गाँव पहुँचा और उसने सामान चोरी हो जाने के बारे में गाँव के मुखिया से शिकायत की।

‘तुम्हें किसी पर संदेह है?’ मुखिया ने पूछा।

‘सेदेह? अरे, मैंने तो अपनी आँखों से उसे सामान चुराकर भागते देखा है।’ राहगीर ने कहा। इसके बाद उसने चोर का हुलिया बताया। हुलिया उन्हीं दोनों भाइयों से मिलता था। मुखिया ने जब बड़े भाई को बुलवाया तो उसने अपने बदले छोटे भाई को भेज दिया।

छोटा भाई मुखिया के पास पहुँचा। जब उस पर चोरी का आरोप लगाया गया तो उसने स्पष्ट शब्दों में स्वयं को निर्दोष ठहराया। तब मुखिया ने दोनों भाइयों को एक साथ बुलाया और उन्हें राहगीर के सामने खड़ा करके पूछा कि ‘बताओ इनमें से वह कौन है जिसने तुम्हारा सामान चुराया?’

दोनों भाई एक जैसे दिखते थे अतः राहगीर चकरा गया। वह बता नहीं पाया कि उनमें से किसने उसका सामन चुराया। दोनों भाई छोड़ दिए गए। राहगीर को ग्राम देवता से प्रार्थना की। राहगीर की प्रार्थना पर ग्राम देवता प्रकट हुए और उन्होंने बता दिया कि दोनों में से कौन बड़ा भाई है और बड़े भाई ने राहगीर का सामान चुराया था।

इसके बाद ग्राम देवता ने पहचान संबंधी प्रश्न का स्थाई हल निकालने के लिए कोरकुओं को सलाह दी कि वे अपने शरीर पर अलग-अलग प्रकार के गोदने गोदवाएँ जिससे उनकी अलग-अलग पहचान हो सके। ग्राम देवता की सलाह पर उस दिन कोरकू समाज में गोदना गोदवाने का चलन आरंभ हुआ।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 254)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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