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सोने की मछली

sone ki machhli

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भंज वंश के एक राजा घुमसुर में शासन कर रहे थे। वह प्रजा को अपनी संतान की तरह पालते थे। प्रजा की सुख-सुविधा के लिए हमेशा चिंतित रहते। उस राज्य में ज़्यादातर लोग कंध जाति के थे।

एक दिन राजा कंधों के गाँव देखने के लिए निकले। गरमी का दिन था। कई गाँव घूमने के बाद वह थक गए। उन्हें प्यास भी ख़ूब लगी थी। राजा काट्रामाला गाँव में पहुँचे और थककर एक मकान के बरामदे में बैठ गए। पीने के लिए पानी माँगने पर घर वाला उन्हें पीने के लिए अच्छा पानी दे नहीं पाया। पूरे गाँव में कहीं भी राजा को पानी नहीं मिला। वहाँ के लोगों के अभाव और असुविधा के बारे में उन्हें पता चल गया। उसी गाँव से वह राजमहल वापस लौट आए और दूसरे दिन मंत्री को बुलाकर काट्रामाल गाँव में लोगों के नहाने के लिए एक तालाब और पीने के पानी के लिए एक कुआँ खुदवाने का आदेश दिया।

राजा के आदेश पर तालाब खुदवाया गया। उस तालाब में जो पानी निकला, उसे देखकर सभी अचंभित हो गए। तालाब का पानी काँच की तरह निर्मल था। बहुत कम दिनो में ही दो आदमी की ऊँचाई तक पानी उस तालाब में भर गया। इतना पानी होने के बावजूद तालाब के अंदर स्थित बालू, कंकड़, पत्थर सब साफ़ नज़र आता। यह बात राजा को बताई गई।

उस तालाब में राजा ने मछली छोड़ने का आदेश दिया। राजा को पानी में तैरती मछलियों को देखना बहुत अच्छा लगता था। उन्होंने मंत्री को बुलाकर आदेश दिया, “मंत्री! तालाब में मछली छोड़ने के तुरंत बाद मुझे ख़बर देना।” तालाब में मछलियाँ छोड़ी गईं। राजा रानी को साथ लेकर तालाब देखने चल पड़े। घोड़े पर बैठते समय रानी बोलीं, “राजन, मेरी दाहिनी आँख बार-बार फड़क रही है। किसी अमंगल की सूचना है यह।”

राजा बोले, “रानी! इतने सैन्य-सामंत होते हुए भला तुम्हें कोई तकलीफ़ हो सकती है?”

वे सब घोड़े पर चढ़कर तालाब के किनारे पहुँचे। ऐसा तालाब उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। कितनी सुंदर साज-सज्जा! रानी तालाब का पानी देखकर चकित रह गईं। वाह! काँच की तरह स्वच्छ निर्मल पानी। तालाब के अंदर के कंकड़, पत्थर, बालू भी साफ़ नज़र आते। मछलियाँ सारी साक्षात सोने की मछली की तरह झक-झक कर रही हैं। अपनी आँखों पर रानी को विश्वास नहीं हो रहा था। राजा भी विस्मित सब देख रहे थे।

रानी के मन में लोभ आया। उन्होंने सोचा कि मछलियाँ इतनी सुंदर हैं तो उन्हें पकाकर खाने पर ज़रूर काफ़ी स्वादिष्ट होंगी। अपने लोभ पर क़ाबू कर पाकर रानी ने मछली पकड़ने के लिए सीढ़ी पर पाँव रखा।

ठीक उसी समय आकाशवाणी सुनाई दी, “हे रानी! ख़बरदार। मछलियों को छूने की भी कोशिश मत करना। तुम अपनी प्रजा के हित के बारे में भूल रही हो। मछलियों को मारकर खाने के लिए तुम्हारे मन में लालच बढ़ गया है। याद रखो मछलियाँ निरीह जीव हैं। वे किसी को भी नुक़सान नहीं पहुँचाती हैं। उनका सुंदर रूप देखकर तुम्हें ख़ुशी मिलती है। प्रजा को भी यह आनंद लेने दो। तुम लोग इंसान हो। एक दिन तुम सब भी मरोगे। प्रजा को सुख से रखोगे तो यही मछलियाँ आने वाले दिनों में तुम सब की कहानी सुनाएँगी। तुम सब अमर हो जाओगे।”

यह बात सुनने के बाद भी रानी मछली पकड़ने के लिए एक सीढ़ी नीचे उतरी और मछली पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। फिर से आकाशवाणी सुनाई पड़ी, “हे रानी! मेरी बातों को नहीं मानोगी तो तुम्हारा अमंगल होगा। मछलियों को पकड़ने पर तुम ख़ुद मछली बन जाओगी।” तब भी रानी आगे बढ़ने लगी।

फिर आकाशवाणी हुई, “हे रानी! मेरी बात को मानने पर तुम्हारा अमंगल होगा। मछलियों को पकड़ने पर तुम ख़ुद मछली बन जाओगी।”

यह सुनकर राजा डर से काँपने लगे। रानी से बोले, “देव वाणी कभी झूठी नहीं होगी। रानी तुम लौट आओ।”

रानी ने किसी की भी बात पर विश्वास नहीं किया और तालाब की मछली को हाथ से छू दिया। रानी तुरंत मछली बनकर तालाब के अंदर चली गईं। राजा दुःख से टूट गए। मायूस होकर राजमहल लौट गए।

वह राजा अब नहीं है। तालाब अभी भी काट्रामाला गाँव में है। तालाब में पानी भरा हुआ है। अब पानी पहले की तरह निर्मल नहीं है, पर पानी बहुत मीठा है। सोने की मछलियाँ अब वहाँ नहीं हैं। पर लोगों में यह विश्वास अब भी क़ायम है कि रानी मछली उसी तालाब में है। उस तालाब से कोई भी मछली पकड़ने का साहस नहीं करता।

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 94)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017

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