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दोस्त की मदद

dost ki madad

अन्य

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किसी तालाब में एक कछुआ रहता था। तालाब के पास माँद में रहने वाली एक लोमड़ी से उसकी दोस्ती हो गई। एक दिन वे तालाब के किनारे गपशप कर रहे थे कि एक तेंदुआ वहाँ आया। लोमड़ी जान बचाकर भागी। धीरे चलने वाला बेचारा कछुआ तो भाग सका और ही कहीं छुप सका। तेंदुआ एक छलाँग में उस तक पहुँच गया। उसने कछुए को मुँह में पकड़ा और उसे खाने के लिए एक पेड़ के नीचे गया। लेकिन दाँतों और नाख़ूनों का पूरा ज़ोर लगाने पर भी कछुए के सख़्त खपड़े के खरोंच तक नहीं आई।

अपनी माँद से यह देखकर लोमड़ी ने कछुए को बचाने की तरकीब सोची। वह माँद से बाहर आई और अदब और मासूमियत से कहने लगी, “कछुए के खपड़े को तोड़ने का मैं आसान तरीक़ा बताती हूँ। इसे पानी में फेंक दो। थोड़ी देर में पानी से इसका खपड़ा नरम हो जाएगा। चाहो तो आज़माकर देख लो!”

मूर्ख तेंदुए ने कहा, “इसका क्या! अभी देख लेता हूँ!” यह कहकर उसने कछुए को पानी में फेंक दिया। इससे ज़्यादा कछुए को क्या चाहिए था!

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 159)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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