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चिड़िया, कौआ और बिल्ली

chiDiya, kaua aur billi

एक चिड़िया, एक कौआ और एक बिल्ली में घनिष्ठ मित्रता थी। तीनों मिलजुलकर खाना ढूँढ़ते और उसे मिलजुलकर खाते। एक दिन उन्हें दूध, शक्कर और चावल मिल गया। तीनों मित्रों ने खीर पकाने का विचार किया। तीनों खीर बनाने बैठ गए। कुछ ही देर में खीर बनकर तैयार हो गई।

‘अब चलो इस खीर को खाएँ।’ चिड़िया ने कहा।

‘खीर पकाते-पकाते मेरा सिर दुखने लगा है अतः तुम लोग खा लो, मैं बाद में खाऊँगी।’ बिल्ली ने कहा।

‘हम हमेशा साथ खाते हैं इसलिए जब तुम्हारा सिर दर्द ठीक हो जाएगा तब हम खाएँगे।’ कौवे ने कहा।

इसके बाद बिल्ली आँख मूँदकर सो गई और चिड़िया और कौआ अपने-अपने काम पर निकल गए।

शाम को जब वे लौटकर आए तो उन्होंने देखा कि बर्तन ख़ाली पड़ा है और बिल्ली सो रही है। उन्होंने बिल्ली को जगाया और उससे खीर के बारे में पूछा।

‘मैं क्या जानूँ? मैं तो सो रही थी।’ बिल्ली मुकर गई जबकि उसी ने खीर खाई थी और खीर खाने के लिए ही सिरदर्द का नाटक किया था।

‘ठीक है, इसका फ़ैसला अभी हो जाएगा।’ चिड़िया ने कहा और कुएँ पर कच्चे सूत का एक झूला बाँधा। फिर चिड़िया ने कहा, अब इस झूले में हम बारी-बारी से झूलेंगे। जिसके झूलने से झूला टूट जाएगा वही दोषी कहलाएगा।’

सबसे पहले चिड़िया झूली। झूला नहीं टूटा।

फिर कौआ झूला। झूला नहीं टूटा।

बिल्ली के झूले पर बैठते ही झूला टूट गया और बिल्ली कुएँ में जा गिरी।

‘लो हो गया फैसला।’ चिड़िया ने कहा।

तब तक बिल्ली सहायता के लिए गुहार लगाने लगी। उसने अपनी ग़लती भी स्वीकार कर ली। इस पर कौवे और चिड़िया ने एक लता कुएँ में डालकर उसे बाहर तो निकाल लिया लेकिन उस दिन से उन दोनों ने बिल्ली से मित्रता समाप्त कर दी। फिर वे कभी मित्र नहीं बने।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 317)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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