लोमड़ी और बाघ
लोमड़ और लोमड़ी के दो बच्चे थे। एक दिन वर्षा होने लगी। यह देख कर लोमड़ी बोली, देखिये तो, पानी आने को है। हम अब कहाँ रहेंगे?
तब लोमड़ बोला, कहीं भी रहेंगे। मैं ले चलूँगा। तुम्हें किस बात की चिंता है? ऐसा होते-होते थोड़ी ही देर में अचानक काले बादल छा गए। आकाश काला दिखाई पड़ने लगा। तब लोमड़ी डर गई, 'अब कहाँ रहेंगे? ले चलूँगा तो, कहा लोमड़ ने और अब तक कोई दूसरा डेरा खोजा ही नहीं है। तब क्या करें, अब कहाँ जाएँगे? न घर, न पहाड़ी, न पहाड़। अब हम किस जगह जाएँगे?' इसी समय बादल गरजे तब वे सभी डर गए। अब तो मर गए! अब तो बचना मुश्किल हो गया। अब कहाँ जाएँगे?
तब लोमड़ सोचने लगा, कुछ ही दूरी पर पहाड़ी दिख रही है,वहीं चलेंगे। इस तरह सोचता लोमड़ अपना दिमाग़ लगा कर ले गया। वहाँ ले गया और देखा गुफ़ा को। हाँ,यह गुफ़ा किसी की भी हो,चाहे बाघ की हो चाहे भालू की हो। मृत्यु सिर पर आ जाने की स्थिति! अब वहीं चलें,ऐसा कहते वे वहाँ चले गए। वह गुफ़ा खाली थी। वहाँ का राजा यानी बाघ वहाँ नहीं था। वह अपने भोजन की तलाश में गया हुआ था। उधर उसे भी पानी ने घेर लिया। वह बहुत दूर गया था। इधर लोमड़-लोमड़ी और उनके दोनों बच्चे गुफ़ा के भीतर घुस गए। पानी इतने ज़ोरों से बरस रहा था कि चेहरा ऊपर उठा कर भी नहीं देखा जा सकता था, तो इस तरह बहुत पानी गिरा।
ऐसे ही समय में बरसते पानी में बाघ उधर से लौटा। वह अब अपने डेरे में पहुँचे कि तब पहुँचे,ऐसा सोचता दौड़ा चला आ रहा था। पानी ज़ोरों से बरस रहा था। वह बड़ी मुश्किल से अपने डेरे तक पहुँचा लोमड़ गुफ़ा के मुख के पास ही था और लोमड़ी के उसके पीछे तथा दोनों बच्चे भीतर। तो लोमड़ ने सबसे पहले बाघ को देखा। अब तो यह हमें नहीं छोड़ेगा, वह सोचने लगा। तो अब क्या करें,ऐसा सोचते हुए लोमड़ ने लोमड़ी से कहा, देखो लोमड़ी,अब तुम्हें वही करना पड़ेगा जो मैं कहूँगा।
हाँ,हाँ कहिए। जैसा आप कहेंगे मैं वैसा ही करूँगी। लोमड़ी ने कहा।
तो तुम बच्चों को ज़ोर से चिकोटी काटो। बच्चे ज़ोर से रोएँ। लोमड़ ने कहा।
हाँ,ठीक है। लोमड़ी बोली।
तब मैं तुमसे पूछूँगा कि तुम बच्चों को क्यों रुला रही हो तब तुम कहना कि बच्चे बाघ का माँस खाने के लिए रो रहे हैं,भला बताइए मैं कहाँ से लाऊँ? इतने में मैं ज़ोर से कहूँगा कि कहीं से भी आएगा बाघ। मैं तो देख रहा हूँ,आने पर उसे यहीं भर देंगे। कहीं से भी भगवान उसे लाएँगे तो हम उसे खा लेंगे। लोमड़ ने कहा।
तब उनकी बातचीत का अंतिम अंश बाघ ने सुना और सोचने लगा कि मेरी गुफ़ा में यह इस तरह की बातें करने वाले कौन हैं? वे चुप हो गए। इतने में बाघ अपनी गुफ़ा की ओर दो क़दम बढ़ने की सोचने लगा कि तभी लोमड़ी ने बच्चों को चिकोटी काट दी। दोनों बच्चे रोने लगे। तब लोमड़ बड़ी ज़ोर से पूछने लगा,क्यों जी लोमड़ी,तुम बच्चों को क्यों रुला रही हो?
यह सुन कर लोमड़ी बोली,ये लोग बाघ का माँस खाएँगे कह रहे हैं। इस बरसते पानी में मैं इनके लिए कहाँ से बाघ का माँस लेकर आऊँ?
लोमड़ी के ऐसा कहने पर लोमड़ बोला,नहीं,नहीं ऐसी बात नहीं है। भगवान स्वयं ही बाघ को लेकर आएँगे।
यह सुन कर बाघ और डर गया। यह कौन सा जीव है? यह तो मुझे खा जाएगा। बचाएगा नहीं,ऐसा कहते उसने सोचा कि यहाँ रहना तो ख़तरे से खाली नहीं और दो क़दम पीछे हट गया। उसी समय लोमड़ी ने फिर से बच्चों को चिकोटी काटी। तब दोनों बच्चे फिर से रोने लगे। उस समय लोमड़ ने दुबारा पूछा,क्यों जी लोमड़ी, बच्चों को चुप क्यों नहीं करातीं?
यह सुन कर लोमड़ी बोली,ये बच्चे तो मेरे प्राण लेकर रहेंगे। मैं इनके लिए बाघ का माँस कहाँ से लाऊँ?
लोमड़ बोला,ठहरो तो अभी आएगा। कैसे नहीं आएगा भला!
इतना सुनना था कि बाघ वहाँ से पीछे हटते-हटते वापस हो गया और थोड़ी दूर जाकर वहाँ से पीठ दिखा कर बगटुट भागा। अभी वह भागता चला जा रहा था कि रास्ते में उसे बंदर मिल गया। वह भी पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। पानी ज़ोरों से बरस रहा था। तब बंदर बाघ से पूछने लगा,ठहरिए,ठहरिए। कहाँ भागे चले जा रहे हैं?
बाघ बोला,क्या बताऊँ, मेरे घर में पता नहीं कौन सा जीव आ गया है और मुझे खाएगा, ऐसा कह रहा है।
बंदर बोला,आप इतने बड़े जंगल के राजा हैं और आपको कौन खाएगा भला? चलिए तो सही,मैं साथ हूँ।
बाघ बोला,नहीं भाई,जंगल का राजा होने भर से ही क्या कर लूँगा? कभी-कभी तो हिम्मत भी नहीं होती।
बंदर बोला,वह बात आप जाने दें। मैं तो हूँ साथ में। ऐसा कहते बंदर बाघ के साथ वापस गया। बाघ ने सोचा कि चलो ठीक है, इसकी बात भी मान ली जाए। फिर दोनों गुफ़ा की ओर वापस हुए। बंदर सामने चल रहा था और बाघ उसके पीछे। दोनों आगे-पीछे चलते हुए वहाँ पहुँचे। पास पहुँच कर बाघ कहने लगा,मैं यहीं तक आया था और वे लोग इस तरह की बातें कर रहे थे।
तब बंदर बोला,लेकिन अभी कैसे कुछ नहीं बोल रहे हैं?
तब उन दोनों की बातें सुनी लोमड़ ने और लोमड़ी के कान में धीमे से बोला कि अब तो बाघ फिर से आ गया है बंदर को साथ लेकर। इस तरह दोनों ने फुसफुसाते हुए बातें कीं और एक़दम धीमे स्वर में लोमड़ी से बोला,तुम फिर से बच्चों को रुलाओ।
ऐसा कहने पर लोमड़ी ने दोनों बच्चों को फिर से चिकोटी काटी। चिकोटी काटने पर दोनों बच्चे बहुत ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे। लोमड़ बोला,क्यों जी लोमड़ी, बच्चे फिर से क्यों रो रहे हैं?
लोमड़ी बोली, बाघ का माँस खाए बिना हमारे प्राण नहीं बचेंगे,कह रहे हैं बच्चे। बताइए मैं कहाँ से लेकर आऊँ?
लोमड़ बोला,मेरा एक दोस्त है, वह अभी लेकर आएगा। मैंने उसे बाघ को लाने के लिए भेजा है। मेरा साथी है बंदर। वह किसी भी तरीके से बाघ को लेकर आएगा ही। वह उसकी गर्दन पकड़ कर भी लाएगा।
यह सुन कर बाघ ने सोचा कि यह बंदर भी इन्हीं जीवों का साथी है।
नहीं जी,मैं इनका साथी नहीं हूँ। बंदर कहने लगा,आप मत डरें। मैं तो हूँ। दोनों की पूँछें आपस में जोड़ लें। बंदर ने कहा।
तब ठीक है कहते हुए बाघ और बंदर ने एक-दूसरे की पूँछें आपस में जोड़ लीं। फिर उन दोनों ने गुफ़ा की ओर दो क़दम बढ़ाए। यह देख कर लोमड़ी फिर से बच्चों को चिकोटी काटने लगी। इस पर लोमड़ बड़ी ज़ोर से बोला,ठीक है। अब मेरा साथी बंदर किसी भी तरह बाघ को बाँध कर लाएगा ही। अब तो बाघ का माँस मिलेगा ही। लोमड़ की बातें सुन कर बाघ समझ गया कि यह बंदर भी इन्हीं का साथी है और ऐसा सोच कर वह बंदर को घसीटते हुए वहाँ से भागा। बंदर उलटता-पलटता घिसटता रहा। बाघ ने सोचा कि अब तो दूसरे जंगल में डेरा बनाना पड़ेगा।
अब बंदर के प्राण जाने की बारी थी। तब बंदर बोला,ठहरिए,ठहरिए किंतु बाघ को भला वहाँ कहाँ ठहरना था। वह तो भागा चला जा रहा था। इस प्रकार बंदर की आधी जान निकल गई। कुछ दूर जाने के बाद बाघ ने विश्राम करने की सोची। थोड़ी देर विश्राम किया और फिर वहाँ से आगे बढ़ गया। इसके बाद वह अपनी उस गुफ़ा में वापस नहीं हुआ,दूसरी जगह डेरा बना लिया।
- पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 149)
- संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
- संस्करण : 2013
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