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बाप-बेटा

baap beta

एक ब्राह्मण था। उसका एक ही लड़का था। बाप और बेटा किसी तरह अपना गुज़ारा करते थे। एक दिन बेटे ने बाप से कहा कि यहाँ तो हमारा गुज़ारा ढंग से हो नहीं पाता है अतः हमें किसी दूसरे शहर में जाकर कोई काम-धंधा देखने चाहिए। बाप को अपने बेटे का विचार पसंद आया। दोनों दूसरे शहर के लिए चल पड़े।

रास्ते में एक घना जंगल पड़ा। जंगल में चलते-चलते उन्हें प्यास लग आई और उनका गला सूखने लगा। तभी उन्हें एक तालाब दिखाई दिया। वे तालाब के किनारे पहुँचे और जी भरकर पानी पिया। तालाब के किनारे एक मंदिर बना हुआ था। उन्होंने सोचा कि मंदिर में भगवान के दर्शन कर लें फिर आगे बढ़ें। वे मंदिर में प्रविष्ट हुए। उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि मंदिर में घी, दूध, चावल और मेवे रखे हुए थे।

इस सूने, घने जंगल में इस जीर्ण-शीर्ण मंदिर में यह सामग्री किसने रखी होगी? वे सोचने लगे। पहले तो उन्होंने आवाज़ लगाई किंतु जब कोई नहीं आया और ही दिखा तो उन्होंने उस सामग्री से खीर पकाई और खाली। अभी वे खीर खाकर उठे ही थे कि एक राक्षस गया। राक्षस को आता देखकर बाप-बेटा मंदिर में ही एक कमरे में छिप गए। राक्षस ने देखा कि उसकी खीर की सामग्री ग़ायब है तो उसे बहुत ग़ुस्सा आया। साथ ही उसे डर भी लगा कि इस जंगल में सभी उससे डरते हैं अतः यहाँ का वासी तो ये दुस्साहस कर नहीं सकता है अतः यह अवश्य किसी बाहरी राक्षस का काम होगा, जो मुझसे अधिक बलशाली होगा। यह विचार कर राक्षस मंदिर से बाहर की ओर भागा।

बाहर एक लोमड़ी चली रही थी। उसने राक्षस से पूछा कि वह कहाँ भागा जा रहा है? तो राक्षस ने बताया कि मंदिर में महाराक्षस छिपा है। लोमड़ी ने कहा कि चिंता मत करो, मैं उसे भगा दूँगी।

लोमड़ी मंदिर के अंदर गई। बेटे ने देखा तो उसने कमरे में रखा घड़ा लोमड़ी के सिर में फँसा दिया। लोमड़ी को समझ में नहीं आया कि क्या हुआ। वह घबरा कर बाहर भागी तो देख पाने के कारण सीढ़ियों पर फिसल गई और गिरती पड़ती बाहर पहुँची। राक्षस ने लोमड़ी की यह दशा देखी तो वह और अधिक डर गया। अब राक्षस और लोमड़ी दोनों भागने लगे। रास्ते में उन्हें एक शेर मिला। उसने भागने का कारण तो दोनों ने एक साथ उत्तर दिया कि मंदिर में महाराक्षस छिपा है। यह सुनकर शेर ने कहा, ‘डरो मत! मैं उस महाराक्षस को अभी भगा दूँगा।’

शेर मंदिर के अंदर प्रविष्ट हुआ। बेटे ने शेर को अंदर आते देखा तो उसने वहीं रखा फसल समेटने का दाँतेदार फावड़ा उठाया और उससे शेर की पीठ को खरोंच दिया। शेर तिमिला उठा। किंतु उसे लगा कि जब महाराक्षस का पंजा इतना शक्तिशाली है तो वह पूरा तो बहुत अधिक शक्तिशाली होगा।

शेर लहूलुहान होता हुआ मंदिर से बाहर की ओर भागा। राक्षस और लोमड़ी ने शेर की दशा देखी तो वे भी भाग खड़े हुए और फिर उन्होंने मंदिर की ओर रुख़ नहीं किया।

इसके बाद बाप-बेटा मंदिर से निकले और निश्चिंत भाव से दूसरे शहर की ओर चल पड़े।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 275)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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