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सात जोड़े

saat joDe

पहले पृथ्वी पर महासागर के अतिरिक्त कुछ नहीं था। चारों ओर जल ही जल था। ईश्वर ने सोचा कि चारों ओर जल ही जल दिखाई देता है जिससे एकरसता उत्पन्न होती है। अतः उसने भूमि का निर्माण करने का विचार किया। उसी समय महासागर से मिट्टी का एक ऊँचा ढेर बाहर आया। उस ढेर की ऊँचाई थी लगभग चौदह पुरुष। गीली मिट्टी का यह ढेर फैल गया और कीचड़ युक्त तट बन गया। इस तट पर एक पुरुष और एक स्त्री का जन्म हुआ। उनके नाम थे परिहार और बरमनी। पानी पर तैरती कीचड़ से निर्मित भूमि परिहार और बरमनी के चलने-फिरने से काँपने लगती। वे गिर-गिर पड़ते। ईश्वर ने यह देखा तो वे समझ गए कि मनुष्य अस्थिर भूमि पर निवास नहीं कर सकते हैं। अतः उन्होंने पुनः विचार किया।

बहुत सोच-विचार के बाद ईश्वर ने एक राई बाघ और एक राई बाघिन की मिट्टी की मूर्ति का सृजन किया और उन मूर्तियों में प्राण फूँक कर उन्हें पृथ्वी पर भेज दिया।

‘जाओ, मनुष्य के जोड़े को मार डालो और उनका रक्त और माँस चारों कोनों पर डाल दो। ताकि पृथ्वी स्थिर हो जाए।’ ईश्वर ने राई बाघ और राई बाघिन को आदेश दिया।

ईश्वर के आदेशानुसार राई बाघ ने पुरुष को और राई बाघिन ने स्त्री को मार डाला। दोनों का रक्त और माँस पृथ्वी के चारों कोनों पर डाल दिया। रक्त और माँस बिखरते ही भूमि स्थिर हो गई। तब पुरुष (परिहार) की सात अस्थियों से सात चट्टानें बनीं, उसके पैरों से विशाल पेड़ बन गए, हाथों से छोटे पेड़ बने, अन्य अस्थियों से तरह-तरह की चट्टानें और पत्थर बने, उसका सिर सूर्य बन गया और उसका सीना चंद्रमा बन गया। इस प्रकार पृथ्वी पर एक सुंदर संसार रच गया। ईश्वर ने अपनी इस सृष्टि को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ।

अब ईश्वर को लगा कि पृथ्वी मनुष्यों के रहने योग्य हो गई है। अतः उसने स्त्री-पुरुष का एक और जोड़ा बनाया और उसे पृथ्वी पर भेज दिया। कई वर्ष तक वह जोड़ा पृथ्वी पर निवास करता रहा। धीरे-धीरे उसे एकरसता का बोध होने लगा। उस जोड़े को लगने लगा कि उनके जैसे और मनुष्य होने चाहिए।

‘हे ईश्वर! आपके पास इतना समय नहीं है कि आप हमारे लिए मनुष्यों के अन्य जोड़े बनाकर भेज सकें अतः आप हमें वह शक्ति दें जिससे हम अपने जैसे अन्य जोड़ों का सृजन कर सकें।’ पुरुष ने ईश्वर से कहा।

‘ठीक है। मैं तुम्हें अधिकार देता हूँ। तुम दोनों परस्पर संसर्ग द्वारा नवीन जोड़ों का सृजन करो और इस पृथ्वी को रहने योग्य बनाओ।’ ईश्वर ने पुरुष से कहा।

ईश्वर से अनुमति मिलने पर स्त्री और पुरुष ने परस्पर संसर्ग किया जिसमें उन्हें बहुत आनंद आया। संसर्ग के उपरांत स्त्री ने गर्भ धारण किया और इसी प्रकार कालांतर में एक-एक करके सात जोड़ों को जन्म दिया। इन्हीं सात जोड़ों से पृथ्वी पर मानव जाति का विकास हुआ तथा इस पृथ्वी के सभी मनुष्य उन्हीं के वंशज के रूप में उत्पन्न हुए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 245)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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