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परिहार की बलि

parihar ki bali

परमात्मा ने परिहार नामक पुरुष और बरमनी नामक स्त्री को बनाया। इस मानव जोड़े को बनाकर पृथ्वी पर भेजा। उस समय पृथ्वी जल में तैरती रहती थी। परिहार और बरमनी के चलने-फिरने से पृथ्वी और अधिक डोलने लगी तथा डूबने-उतराने लगी। उनका पृथ्वी पर चलना-फिरना कठिन हो गया। वे गिर-गिर पड़ते। तब उन्होंने परमात्मा से गुहार लगाई।

‘प्रभु हम तो कुछ भी नहीं कर सकते हैं जब तक कि आप पृथ्वी को स्थिर नहीं कर देते।’ परिहार और बरमनी ने परमात्मा से कहा।

‘यदि तुम अपनी बलि देने को तैयार हो जाओ तो पृथ्वी स्थिर हो सकती है अन्यथा यह ऐसी ही रहेगी।’ परमात्मा ने परिहार से कहा।

यह सुनकर बरमनी व्याकुल हो उठी किंतु परिहार ने उसे समझाया और अपनी बलि देने को प्रस्तुत हो गया। तब परमात्मा ने एक बाघ और बाघिन बनाए तथा उन्हें पृथ्वी पर भेज दिया। बाघ और बाघिन ने परमात्मा के निर्देशानुसार परिहार को मारकर उसकी बलि दी तथा उसकी रक्तरंजित देह को उठाकर पृथ्वी के चारों कोनों तक घूमे। जिससे परिहार का एक-एक अंग अलग-अलग स्थान पर गिरा। जहाँ उसकी अस्थियाँ गिरीं वहाँ पहाड़ बन गए। जहाँ टाँगें गिरीं वहाँ ऊँचे गगनचुंबी वृक्ष उग आए। जहाँ उसकी भुजाएँ गिरीं वहाँ छोटे पेड़-पौधे उग आए। ऊँगलियों से झाड़ियाँ बन गईं और बालों से घास बन गई। सिर से सूर्य बन गया और हृदय से चंद्रमा।

इस प्रकार परिहार के शरीर के विभिन्न हिस्सों से संसार की रचना हुई।

संसार की रचना हो जाने पर बरमनी ने परमात्मा से कहा कि ऐसे संसार का क्या लाभ जहाँ एक स्त्री को अकेली रहना पड़े। परमातमा को बरमनी की बात सच लगी और उन्होंने परिहार को पुनर्जीवित कर दिया।

पुनर्जीवित होने के बाद परिहार और बरमनी ने सात बेटों और सात बेटियों को जन्म दिया। इन बेटे और बेटियों ने परस्पर संसर्ग करके संसार में मनुष्यों की संख्या का विकास किया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 326)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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