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धर्म और धन

dharm aur dhan

एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत ग़रीब था। उसकी ग़रीबी का कारण थी उसकी आलसी और धर्म से विमुख पत्नी। ब्राह्मण की पत्नी तो सुबह उठकर पूजा-पाठ करती और मंदिर जाती। यहाँ तक कि वह घर-आँगन में झाड़ू भी नहीं लगाती। गंदे, मलिन घर में लक्ष्मी कभी नहीं आती है अतः ब्राह्मण के घर भी लक्ष्मी आने का सवाल नहीं था।

उस ब्राह्मण की एक बेटी थी जिसका नाम था सुवर्णा। वह अपनी माँ से विपरीत थी। वह प्रतिदिन सुबह पूजा-पाठ करती और इसके बाद अन्य स्त्रियों के साथ मंदिर भी जाती। जब सुवर्णा तनिक बड़ी हुई तो अकेली मंदिर जाने लगी। जब से वह अकेली जाने लगी तब से एक विचित्र घटना घटी। सुवर्णा की आदत थी कि वह मंदिर जाते समय रास्ते के किनारे जौ के दाने डालती जाती थी। जब वह लौटती तो वे दाने सोने के दानों में बदल जाते। सुवर्णा उन्हें समेट लाती।

एक दिन सुवर्णा जौ के दाने एक सूपे में रखकर ले गई। दाने समाप्त होने पर सूपा वहीं रास्ते के किनारे छोड़कर सुवर्णा मंदिर चली गई। मंदिर से लौटते समय सुवर्णा ने देखा कि सूपा भी सोने का बन गया है। उसने सूपा उठाया और उसी में सोने के दाने बटोरे और घर लौट आई।

घर लौटकर वह अपने आँगन में बैठी सोने के सूपे में सोने के जो फटक रही थी कि उधर एक राजकुमार निकला। राजकुमार अपने लिए दुल्हन की ख़ोज में निकला था। उसने सुवर्णा को देखा तो मोहित हो गया। राजमहल लौटकर राजकुमार ने अपने पिता को सुवर्णा के घर का पता बताया और उस घर की कन्या से विवाह की इच्छा प्रकट की। राजा राजकुमार के विवाह को लेकर बहुत दिन से परेशान था। उसे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि राजकुमार ने कोई लड़की पसंद कर ली है। उसने तत्काल मंत्री को सुवर्णा के घर भेजा। मंत्री ने ब्राह्मण से बात की। ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ।

सुवर्णा विवाह के उपरांत राजमहल चली गई। उसके जाते ही ब्राह्मण के घर में दरिद्रता का प्रकोप बढ़ गया। जब सुवर्णा को इस बात का पता चला को उसने अपनी माँ को बुलाकर समझाया, ‘माँ, जहाँ धर्म हो वहाँ धन स्वयं जाता है। आप मुझे देखिए, मैं आपकी बेटी हूँ लेकिन आज रानी बन गई हूँ। मैं चाहू तो आपको ढेर सारा धन दे सकती हूँ लेकिन मैं चाहती हूँ कि आप अपने धर्म-कर्म से धन पाएँ।’

बेटी की बात सुनकर माँ की आँखें खुल गईं। उस दिन से सुवर्णा की माँ ने भी आलस्य का त्याग करके धर्म के प्रति ध्यान देना शुरू कर दिया। इस धर्म में घर की स्वच्छता भी शामिल थी। जब घर स्वच्छ रहने लगा तो लक्ष्मी की कृपा उस पर भी होने लगी और ब्राह्मण और उसकी पत्नी सुखपूर्वक रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 292)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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