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रानी की कोख से पत्थर जन्मा

rani ki kokh se patthar janma

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बात बहुत पुरानी है। एक राजा था जिसकी चार रानियाँ थीं। राजा और चारों रानियों को यह दुख था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा इस विचार से अवसाद में डूबा रहता कि उत्तराधिकारी के अभाव में उसके बाद राज्य का भार कौन सँभालेगा? एक दिन राजा की सभा में एक आदमी आया और उसने बताया कि अमुक स्थान पर एक ओझा रहता है जो झाड़-फूँक, जादू-टोना जानता है और उसके मंत्रों के प्रभाव से कई बाँझ स्त्रियों को संतान सुख प्राप्त हो चुका है। राजा को उस आदमी की बातों पर विश्वास तो नहीं हुआ किंतु उसने सोचा कि उस ओझा से मिल लेने में कोई हानि भी तो नहीं है। यह विचार करके राजा अपने साथ कुछ सिपाहियों को लेकर ओझा से मिलने चल पड़ा।

सघन वन के मध्य ओझा की झोपड़ी थी। राजा ने ओझा के पास पहुँचकर उसे अपनी समस्या बताई।

‘राजन्! आपकी चारों रानियाँ संतान उत्पन्न करने योग्य नहीं हैं किंतु आपकी पाँचवी रानी से आपको एक पुत्र की प्राप्ति होगी। वह पुत्र शूरवीर होगा और आपके राज्य के लिए एक योग्य शासक सिद्ध होगा।’ ओझा ने कहा।

‘किंतु मेरी पाँचवीं रानी तो है ही नहीं।’ राजा ने कहा।

‘आपको अभी लौटते समय वन में एक अनाथ बैगा युवती मिलेगी। आप उससे विवाह करिएगा। वही बैगा युवती आपकी रानी बनकर आपको उत्तराधिकारी प्रदान करेगी।’ ओझा ने कहा।

राजा ने ओझा को प्रणाम किया और अपने महल की ओर लौट चला। रास्ते में उसे किसी युवती के रोने का स्वर सुनाई दिया।

‘पता करो कि ये कौन रो रहा है?’ राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया।

सिपाही ढूँढ़-खोज में लग गए। अंतत: उन्हें एक युवती दिखाई दी जो एक पेड़ के नीचे बैठी रो रही थी। सिपाही उसे पकड़कर राजा के सामने ले आए।

‘तुम कौन हो? यहाँ घने वन में क्यों रो रही हो?’ राजा ने उस युवती से पूछा।

‘मैं एक अनाथ हूँ। मैं अपने दूर के संबंधियों के साथ रहती थी किंतु आज उन लोगों ने मुझे यहाँ वन में लाकर छोड़ दिया। अब मेरा इस दुनिया में अपना कहने वाला कोई नहीं है।’ इतना कहकर वह युवती पुन: रोने लगी।

‘क्या तुम बैगा हो?’ राजा ने युवती से पूछा।

‘जी हाँ! किंतु आपने ये कैसे जाना?’ युवती को आश्चर्य हुआ।

‘तुम इतनी सुंदर हो। इतनी सुंदर तो कोई बैगा युवती ही हो सकती है। तुम घबराओ नहीं। यदि तुमको स्वीकार हो तो मैं तुमसे विवाह करके तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहता हूँ।’ राजा ने उस युवती से कहा। राजा समझ गया था कि ये वही युवती है जिसके बारे में ओझा ने बताया था।

युवती को भला क्या आपत्ति होती? हर युवती रानी बनना चाहती है, उस युवती ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी। राजा युवती को लेकर अपने महल लौट आया। उसी दिन उसने बैगा युवती से विवाह कर लिया और उसे अपनी पाँचवी रानी बना लिया। वह युवती बैगा रानी कहलाने लगी।

बैगा रानी के आने से शेष चारों रानियों को अच्छा नहीं लगा। वे बैगा रानी से चिढ़ने लगीं। जब रानियों को पता चला कि बैगा रानी गर्भवती है तो वे चिंतित हो उठीं। उन्हें लगा कि यदि बैगा रानी ने संतान को जन्म दिया तो उन सब की अपेक्षा बैगा रानी का महत्व बढ़ जाएगा। जबकि राजा को बैगा रानी के गर्भवती होने का समचार मिला तो वह फूला नहीं समाया। उसे लगा कि ओझा का कथन अक्षरश: सत्य हो रहा है। उसे अब अपना उत्तराधिकारी मिल जाएगा।

चारों रानियों ने तय किया कि बैगा रानी की संतान को जीवित ही नहीं रहने देंगी और इस बात की भनक राजा को भी नहीं लगने देंगी कि बैगा रानी ने संतान को जन्म दिया है। षड्यंत्र रचकर चारों रानियाँ बैगा रानी की देखभाल का नाटक करने लगीं। संतान के जन्म का समय आया तो पहली रानी राजा के पास पहुँची।

‘महाराज! अब वो शुभ घड़ी गई है जब इस राज्य को भावी राजा मिलेगा।

ऐसे शुभ अवसर पर आपको महल से बाहर जाकर दीन-दुखियों को दान-दक्षिणा देनी चाहिए।’ पहली रानी ने कहा।

‘तुम ठीक कहती हो!’ राजा को अपनी पहली रानी की बात उचित लगी। उसने अपने सेवकों को बुलाया और दान-दक्षिणा देने महल से बाहर चला गया।

चारों रानियाँ यही तो चाहती थीं कि बैगा रानी जब संतान को जन्म दे, उस समय राजा महल में रहे। राजा के जाने के बाद दूसरी रानी बैगा रानी के पास पहुँची।

‘बहन, हम चाहती हैं कि तुम्हारी संतान को जन्म लेते समय कोई कष्ट हो इसलिए तुम ऐसा करो कि धान के कोठे के छेद में अपना सिर डालकर बैठ जाओ। इससे तुम्हारी संतान स्वस्थ रहेगी।’ दूसरी रानी ने बैगा रानी से कहा।

बैगा रानी थी भोली और फिर भला कौन-सी माँ ऐसी होगी जो अपनी संतान का भला चाहेगी? बैगा रानी ने दूसरी रानी की बात मान ली और धान के कोठे के छेद में अपना सिर डालकर बैठ गई। जैसे ही बैगा रानी बैठी वैसे ही उसकी कोख में हलचल हुई और संतान का जन्म हो गया। तीसरी रानी पहले से ही तैयार खड़ी थी। उसने बैगा रानी की संतान को जो कि एक सुंदर पुत्र था, उठाकर चौथी रानी को सौंप दिया और पुत्र के स्थान पर एक गोल पत्थर रख दिया। चौथी रानी ने बैगा रानी के पुत्र को अपनी दासी को दिया कि वह उसे ले जाकर वन में भूमि में गाड़ आए।

दासी के जाते ही चारों रानियों ने बैगा रानी का सिर धान के कोठे से निकाला और विलाप करने लगीं कि बैगा रानी ने तो पुत्र को नहीं बल्कि पत्थर को जन्म दिया है। तत्काल राजा को बुलवा लिया। राजा ने पुत्र के स्थान पर पत्थर देखा तो वह आगबबूला हो उठा। उसे लगा कि ओझा ने उसे मूर्ख बनाया और किसी डायन या चुड़ैल को उसके मत्थे मढ़ दिया है अन्यथा कभी कोई स्त्री किसी पत्थर को जन्म कैसे दे सकती है?

राजा ने बैगा रानी को महल से निकाल दिया और वापस वन में भेज दिया। बैगा रानी के पास पुत्र के पैदा होने का कोई साक्ष्य नहीं था अत: वह क्या कर सकती थी?

उसने भी राजा की आज्ञा को चुपचाप स्वीकार कर लिया और दुखी मन से वन में चली गई। इसके बाद चारों रानियों ने राजा को समझाया कि हमें प्रजा को यह नहीं बताना चाहिए कि उसने एक पत्थर को जन्म दिया था अन्यथा प्रजा के मन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। हमें यह घोषित कर देना चाहिए कि बैगा रानी बच्चे को जन्म देते समय मर गई और उसका बच्चा भी नहीं बचा।

‘लेकिन हम बैगा रानी के शव के बदले किसका अंतिम संस्कार करेंगे? राजा ने पूछा।

‘बैगा रानी के शव के बदले मैं अपनी दासी का शव रख दूँगी।’ चौथी रानी ने कहा। चारों रानियाँ षड्यंत्र में सहायता देने वाली उस दासी को भी जीवित नहीं छोड़ना चाहती थीं ताकि वास्तविक बात किसी को कभी भी पता चल सके।

चारों रानियों ने ऐसा ही किया। बैगा रानी के शव के बदले दासी का शव रख दिया और धूम-धाम से उसका अंतिम संस्कार करा दिया।

उधर, जब दासी बैगा रानी के पुत्र को भूमि में गाड़ रही थी तो उसका यह कृत्य एक शेरनी ने देख लिया था। दासी के जाने के बाद शेरनी ने भूमि से बैगा रानी के पुत्र को निकाला और अपने साथ अपनी गुफ़ा में ले गई।

‘लो, मैं तुम लोगों के लिए एक छोटा भाई लाई हूँ।’ शेरनी ने अपने शावकों से कहा।

शेरनी के चार शावक थे। चारों अपने छोटे भाई के रूप में बैगा राजकुमार को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। शेरनी भी अपने शावकों के साथ बैगा राजकुमार का लालन-पालन करने लगी। धीरे-धीरे बैगा राजकुमार और शावक बड़े हो गए। बैगा राजकुमार एक सुंदर युवक बन गया और शावक बलशाली शेरों के रूप में विकसित हो गए।

एक दिन बैगा राजकुमार ने अपनी शेरनी माँ से कहा कि मुझे एक धनुष-बाण दिला दो जिससे मैं पूरे परिवार के लिए शिकार किया करूँगा। शेरनी बैगा राजकुमार के लिए धनुष-बाण बनवाने लोहार के पास पहुँची। लोहार ने एक बहुत बड़ा और भारी-भरकम धनुष-बाण बना दिया। शेरनी ने धनुष-बाण बैगा राजकुमार को दे दिया। उस दिन से बैगा राजकुमार अपने पूरे परिवार के लिए शिकार करने लगा।

एक दिन राजा का एक सिपाही भटकता हुआ वन में पहुँचा। उसने बैगा राजकुमार को धनुष-बाण से शिकार करते देखा। इतना बड़ा धनुष-बाण उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसने विचार किया कि यदि यह धनुष-बाण मैं अपने राजा को भेंट करूँ तो वह मुझे बहुत सारा ईनाम देगा। इस लोभ में पड़कर सिपाही ने बैगा राजकुमार का पीछा किया। शिकार करते-करते जब बैगा राजकुमार थककर सुस्ताने बैठ गया और उसे झपकी लग गई तो सिपाही ने चुपके से उसका धनुष-बाण अपनी पीठ पर लादा और भाग खड़ा हुआ। जब बैगा राजकुमार की आँख खुली तो उसे अपना धनुष-बाण नहीं दिखा। उसने बहुत ढूँढ़ा किंतु उसे नहीं मिला। वह दुखी मन से अपनी गुफ़ा में लौट आया।

उधर, सिपाही ने धनुष-बाण ले जाकर राजा को भेंट किया।

‘जब धनुष-बाण इतना बड़ा और भारी है तो इसे चलाने वाला भी बहुत बड़ा होगा।’ राजा ने सिपाही से पूछा

‘नहीं, महाराज वह तो एक सुकोमल युवक था।’ सिपाही के मुख से असली बात निकल गई।

यह सुनकर राजा को सिपाही पर बहुत क्रोध आया कि वह उसे चोरी का समान भेंट कर रहा है। साथ ही उसे यह जिज्ञासा हुई कि वह युवक कौन है, देखने में कैसा है? जिसका यह धनुष-बाण है। राजा ने विचार किया कि यह धनुष-वाण उस युवक को वापस कर देना चाहिए और जब वह युवक इसे लेने आएगा तो उसे वे देख भी लेंगे।

राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि एक घनुष-बाण उसे मिला है, जिसका भी हो वह आकर उसे ले जाए। किंतु असली मालिक की पहचान के लिए उसे चलाकर दिखाना होगा।

यह समाचार पक्षियों के द्वारा शेरनी के पास पहुँचा। चारो शेरों ने भी सुना। वे अपने छोटे भाई का धनुष-बाण वापस लाने को उद्यत हो उठे। किंतु शेरनी ने उन्हें समझाया कि उनका मनुष्यों के बीच जाना उचित नहीं है। बैगा राजकुमार को ही जाना होगा। इसके बाद बैगा राजकुमार राजा से मिलने अकेले चल पड़ा। राजा के महल के पास पहुँचकर उसे प्यास लग आई। बैगा राजकुमार महल के पास स्थित पोखर में पानी पीने को रुका। जिस समय वह पानी पी रहा था, उसी समय महल की अटारी से राजा की चारों रानियों ने झाँककर नीचे देखा। उन्हें बैगा राजकुमार दिखाई दे गया। चारों रानियों को बैगा राजकुमार की वेश-भूषा बड़ी विचित्र लगी। वे बैगा राजकुमार का उपहास करने लगीं।

‘देखो-देखो, हमारे महल के पास ये कैसा पशु आया है?’ एक रानी ने बैगा राजकुमार का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।

‘हाँ, मुझे तो यह पशु बड़ा विचित्र दिखाई पड़ता है। दूसरी रानी हाँ में हाँ मिलाती हुई बोली।

‘इसे तो राजा से कहकर किसी पिंजरे में बंद करवा देना चाहिए।’ तीसरी रानी ने हँसते हुए कहा।

‘नहीं-नहीं, इसे तो वापस जंगल में भगा देना चाहिए।’ चौथी रानी खिलखिलाती हुई बोली।

रानियों के ताने सुनकर बैगा राजकुमार ने अपना सिर उठाकर रानियों की ओर देखा फिर मुस्कुराते हुए बोला, ‘मैं पशु की तरह भले ही दिख रहा हूँ किंतु उन रानियों से तो अच्छा हूँ जिन्होंने अपनी पाँचवीं रानी की संतान को पत्थर का बता दिया था।’

इतना कहकर बैगा राजकुमार महल के द्वार की ओर बढ़ गया किंतु उसकी यह बात सुनकर चारों रानियों सन्न रह गईं।

‘हमने तो यह बात सबसे छिपाई थी। राजाजी ने भी किसी को नहीं बताया। हमने अपनी उस दासी को भी मरवा दिया था जो यह भेद जानती थी। फिर इस युवक को कैसे यह भेद मालूम है?’ पहली रानी चिंतित होकर बोली।

‘हाँ, यह तो बड़े संकट का विषय है। हमें इस युवक की गतिविधियों पर ध्यान देना होगा।’ दूसरी रानी ने कहा। इसके बाद चारों रानियों ने अपनी विश्वस्त दासी को राजकुमार के पीछे लगा दिया।

कुछ देर बाद दासी ने आकर रानियों बताया कि वह युवक धनुष-बाण चलाने आया है। रानियों ने यह सुना तो उन्होंने योजना बनाई कि वह युवक चाहे धनुष-बाण चला पाए या चला पाए किंतु इस परीक्षा के बाद उसे मरवा देना होगा ताकि रानियों का भेद वह किसी और को बता सके। बैगा राजकुमार को मरवाने के लिए रानियों ने दो सिपाही उस स्थान पर भेज दिए जहाँ बैगा राजकुमार को धनुष-बाण की परीक्षा देनी थी। उन्हें निर्देश दे दिया कि जैसे ही बैगा राजकुमार बाण चलाकर धनुष नीचे टिकाए वैसे ही वे दोनों उसे मार डालें। रानियाँ बैगा राजकुमार को अपने सामने मरता हुआ देखने के उद्देश्य से परीक्षा-स्थल पर जा पहुँची।

‘युवक! धनुष पर बाण चढ़ाकर चलाओ। यदि तुम ऐसा कर सके तो हमें विश्वास हो जाएगा कि यह धनुष-बाण तुम्हारा है। हम तुम्हें तुम्हारा धनुष-बाण ही नहीं देंगे अपितु ढेर सारा ईनाम भी देंगे!’ राजा ने बैगा राजकुमार से कहा।

‘महाराज! यह धनुष-बाण मेरा ही है! मैं अभी इसे चलाकर यह बात सिद्ध कर दूँगा किंतु मुझे किसी ईनाम की लालसा नहीं है। यदि आप मुझे ईनाम के रूप में कुछ देना ही चाहते हों तो मुझे न्याय दीजिएगा।’ बैगा राजकुमार ने कहा।

‘न्याय? यह कैसा ईनाम माँग रहे हो युवक?’ राजा ने चकित होकर कहा।

‘पहले आप मेरा धनुष-बाण चलाना देख लें फिर मैं अपनी बात स्पष्ट कर दूँगा।’

बैगा राजकुमार ने कहा और धनुष पर बाण चढ़ाकर प्रत्यंचा खींच कर बाण चला दिया। बाण गर्जन-ध्वनि करता हुआ आकाश की ओर उठा और फिर बादलों को भेदता हुआ वापस आकर उन दोनों सिपाहियों के सिरों को भेदता हुआ निकल गया जो बैगा राजकुमार को मारने वाले थे।

यह दृश्य देखकर चारों रानियाँ डर गईं। जबकि राजा बैगा राजकुमार का कौशल देखकर अभीभूत हो उठा।

‘माँगो युवक! जो भी माँगना चाहते हो, वह माँगो!’ राजा ने बैगा राजकुमार से कहा।

‘महाराज! मुझे अपनी माँ के लिए न्याय चाहिए’ बैगा राजकुमार ने कहा।

‘न्याय अवश्य मिलेगा, युवक! तुम्हारी माँ कहाँ है? मैं स्वयं उस माता का सम्मान करना चाहूँगा जिसने तुम जैसी वीर संतान को जन्म दिया।’ राजा ने कहा।

‘महाराज! यही तो न्याय और अन्याय की बात है कि मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया किंतु आपकी चारों रानियों ने आपसे यह कह दिया कि मेरी माँ ने एक पत्थर को जन्म दिया है।’ बैगा राजकुमार ने कहा।

‘क्या?’ राजा ने चकित होकर रानियों की ओर देखा। रानियाँ समझ गई कि अब उनका भेद छिपा नहीं रह सकता है। उसी समय शेरनी अपने शेर पुत्रों के साथ वहाँ गई और उन्होंने रानियों को घेर लिया। भय से थरथर काँपती रानियों ने राजा के सामने सच्चाई उगल दी। राजा ने अपनी चारों रानियों की करतूत के बारे में सुना तो वह अवाक् रह गया।

‘इन चारों रानियों के सिर मुंडाकर इन्हें हमारे राज्य से बाहर निकाल दो!’ राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया। सिपाहियों ने रानियों को बंदी बना लिया और उनके सिर मूँड़कर उन्हें राज्य से बाहर कर आए। इसके बाद राजा ने अपनी पाँचवी रानी अर्थात् बैगा राजकुमार की माँ की खोज में सिपाही दौड़ा दिए। दूसरे दिन पाँचवी रानी एक घने जंगल में मिल गई जहाँ वह झोपड़ी बनाकर रह रही थी।

‘पुत्र! मैंने अपनी रानियों के बहकावे में आकर तुम्हारी माँ के साथ घोर अन्याय किया। अतः एक अन्यायी राजा को राजा बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। आज से मैं तुम्हें राजा घोषित करता हूँ!’ राजा ने बैगा राजकुमार को अपनी राजसिंहासन सौंपते हुए कहा।

इस प्रकार बैगा राजकुमार बैगा राजा बन गया। एक दिन राजा ने बैगा राजा ने पूछा कि यह सच्चाई उसे कैसे पता चली थी? इस पर बैगा राजा ने बताया कि यह बात उसे उसकी शेरनी माँ ने बताई थी किंतु यह भी समझाया था कि उचित समय आने पर ही मैं इस बात को प्रकट करूँ जिससे आपको विश्वास हो सके। यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने शेरनी और उसके पुत्रों को धन्यवाद दिया। बैगा राजा ने भी अपनी शेरनी माँ और शेर भाइयों की सुरक्षा के लिए उस जंगल में शिकार करने की मनाही करा दी जहाँ वे लोग रहते थे। इसके बाद बैगा राजा न्यायपूर्वक राज्य करने लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 176)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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