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लकड़ी का हाथी

lakDi ka hathi

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एक राजा था। उसकी दो रानियाँ थीं किंतु कोई संतान नहीं थी। उसी राज्य में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था जिसकी एक सुंदर कन्या थी जिसका नाम था कनका। एक दिन राजा ने मंदिर जाते समय कनका को देखा तो उससे विवाह करने की इच्छा राजा के मन में उत्पन्न हुई। राजा ने ब्राह्मण से अनुमति लेकर कनका के साथ विवाह कर लिया।

कुछ समय बाद राजा को युद्ध में जाना पड़ा। उसी दौरान कनका ने एक पुत्र को जन्म दिया। शेष दोनों रानियों को लगा कि कनका द्वारा राज्य का उत्तराधिकारी देने पर उन दोनों का महत्व घट जाएगा। वे ईर्ष्या से भर उठीं। अत: उन्होंने नवजात शिशु को अपनी नौकरानी से फिंकवा दिया और उसकी जगह ईंट रखकर राजा के पास सूचना भिजवा दी कि कनका ने बच्चे की जगह ईंट को जन्म दिया है। राजा जब लौटा तो उसने क्रोध में आकर कनका को बंदीगृह में बंदी बना दिया।

उधर बच्चे को एक पुजारी ने देखा तो वह उसे उठाकर अपने घर ले गया। पुजारी ने उसका नाम रखा कांतिरवा। पुजारी त्रिकालदर्शी था। उसे कांतिरवा के जन्म की घटना का पता चल चुका था। अत: जब कांतिरवा युवा हुआ तो उसने कांतिरवा को उसके जन्म की घटना के बारे में सब कुछ सच-सच बता दिया। साथ ही उसे लकड़ी का एक हाथी देते हुए कहा कि यही तुम्हारा भाग्य बदलेगा। कांतिरवा ने दोनों रानियों को सबक सिखाने का निर्णय लिया।

कांतिरवा लकड़ी का हाथी लेकर महल के उद्यान में पहुँचा और उसने उद्यान के कुंड से हाथी को पानी पिलाना चाहा। उस समय उद्यान में राजा अपनी दोनों रानियों के साथ आनंद ले रहा था। रानियों ने कांतिरवा को लकड़ी के हाथी को पानी पिलाते देखकर उसका उपहास करते हुए कहा, ‘कहीं लकड़ी का हाथी भी पानी पी सकता है?’

‘क्यों नहीं? जब कनका रानी ईंट को जन्म दे सकती है तो लकड़ी का हाथी पानी क्यों नहीं पी सकता है?’ कांतिरवा ने तत्काल उत्तर दिया।

यह सुनकर रानियाँ सकते में गईं और राजा आश्चर्य में पड़ गया। उन लोगों ने इस बात को सबसे छिपाकर रखा था।

‘तुम्हें यह किसने बताया?’ राजा ने कांतिरवा से पूछा।

‘मैं स्वयं जानता हूँ क्योंकि मैं ही आपका वह पुत्र हूँ जिन्होंने आपकी इन दोनों रानियों ने महल से बाहर फिंकवा दिया था और मेरे स्थान पर ईंट रख दी थी।’ कांतिरवा ने कहा।

‘इस बात का क्या साक्ष्य है कि तुम सच कह रहे हो?’ राजा ने पूछा।

‘सबसे बड़ा साक्ष्य तो ये दोनों रानियाँ हैं। इनसे आप पूछिए कि जो मैं कह रहा हूँ वह सच है या नहीं और जो ये दोनों झूठ बोलें तो उस दाई से पूछ लीजिए जिसे इन दोनों ने मेरी माँ के साथ बंदीगृह में बंदी बना रखा है।’ कांतिरवा ने कहा।

राजा ने बंदीगृह से कनका और दाई को तत्काल बुलवाया। अपनी सच्चाई सामने आते देखकर दोनों रानियों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। राजा ने कनका से क्षमा माँगी और उसे पुन: रानी का अधिकार दिया। राजा ने अपने पुत्र कांतिरवा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

‘तुम लोगों ने कांतिरवा के बदले ईंट रख दी थी अत: अब तुम दोनों जीवन भर ईंटें ढोओगी।’ यह कहते हुए राजा ने अपनी दोनों रानियों को राजगीर के हवालेकर दिया जो भवन बनाने का काम करता था। इस प्रकार लकड़ी के हाथी के द्वारा राजकुमार ने अपना भाग्य बदल लिया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 342)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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