पूँछकटा सियार

punchhakata siyar

अज्ञात

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पूँछकटा सियार

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    एक गाँव में एक बूढ़ी विधवा रहती थी। उसका एक ही लड़का था। उसका नाम कुना था। वे बहुत ग़रीब थे। किसी तरह उनका काम चल जाता था। गाँव के पास में स्थित जंगल में पोड़चाष (जंगल को जलाकर उस जगह पर खेती करना) करते। कुना अलस्सुबह हल लेकर खेत पर जाता। बूढ़ी घर का काम ख़त्म करके उसके लिए परनाल (माँड़ वाला भात) लेकर खेत पर जाती। रास्ते में झाड़-झंखाड़ से भरे जंगल से एक सियार निकलता और बूढ़ी से कहता,

    “कुना माँ खींचकर पकड़ पूँछ मेरी

    मैं खाऊँ भात सारा कुना पिए माँड़ पानी।”

    बूढ़ी डरकर परनाल सियार के आगे रख देती और उसकी पूँछ पकड़ लेती। सियार भात खा जाता। बूढ़ी माँड़ लेकर बेटे के पास पहुँचती। प्रतिदिन सिर्फ़ माँड़ लेकर आने पर कुना ने एक दिन माँ से इसका कारण पूछा। बूढ़ी ने सबकुछ सच-सच बता दिया। कुना को सियार के ऊपर ग़ुस्सा गया। वह बूढ़ी से बोला, “माँ तू कल सुबह खेत पर जाना। मैं तुम्हारा कपड़ा पहनकर परनाल लेकर आऊँगा।”

    दूसरे दिन कुना साड़ी पहनकर बूढ़ी का रूप धरकर परनाल लेकर चला। सियार को तो लालच चुका था। झाड़-झंखाड़ से निकलकर वही गीत दुहराया। कुना ने परनाल रख दिया और सियार की पूँछ पकड़ ली। सियार ने खाना शुरू किया तो कुना ने कमर से छुरा निकालकर उसकी पूँछ काट दी। सियार दर्द से चीख़ता हुआ जंगल की तरफ़ चला गया। उसे भागते देख कुना को अपनी हँसी रोकना मुश्किल हो गया। उसको हँसता देखकर सियार पीछे मुड़कर बोला, “ठहर जा छोकरे! तेरे हल-जुआ में अगर मैंने विष्ठा नहीं पोत दी तो मेरा नाम नहीं।”

    कुना ने उस दिन अपने हल-जुआ में धारदार उस्तरा बाँध दिया। रात में सियार जब हल-जुआ में विष्ठा पोतने लगा तो उस्तरे से उसका पैर कट गया। वह दर्द से कराह उठा। कुना ओट में छुपकर सियार का यह हाल देखकर हँस पड़ा। सियार झेंप गया और ग़ुस्से में आकर बोला, “ठहर जा छोकरे, तेरी सारी मुर्ग़ियों को अगर खा लूँ तो कहना।”

    कुना उस दिन मुर्ग़ियों के दरबे में हँसिया लेकर बैठ गया। उस रात सियार ने मुर्ग़ी पकड़ने के लिए जैसे ही सिर अंदर किया, कुना ने हँसिए से उसे दो-तीन बार चोट पहुँचाई। सियार ने सोचा शायद बड़े-बड़े मुर्ग़े हैं जो चोंच मार रहे हैं। ऐसा सोचकर उसने गरदन और अंदर घुसाई। अब कुना ने ज़ोर से उसके सिर पर वार किया। सियार दर्द से चीख़ पड़ा। कुना हँसते-हँसते लोट-पोट हो गया। सियार की बात समझ में आई तो जाते हुए बोला, “ठहर जा रे छोकरे, तेरी सारी भेड़ों को मैं ज़रूर खा जाऊँगा।”

    कुना भेड़ के तबेले में एक कुल्हाड़ी लेकर बैठ गया। सियार ने आकर जैसे ही सिर अंदर घुसाया, कुना ने उसके सिर पर धीरे से वार किया। भेड़ का सिर तो सख़्त होता है और फिर यह शायद बड़ी भेड़ है जो सिर से वार कर रही है, ऐसा सोचकर सियार ने फिर अपना सिर घुसाया। अब की कुना ने ज़ोर से सिर पर वार किया। सियार की हालत का क्या कहना। चित वहीं लोट गया। जब उठा तो उसे कुना की हँसी सुनाई दी। ग़ुस्से से भरकर सियार बोला, “ठहर जा रे छोकरे, तेरी शुद्धि क्रिया का भोजन खाया तो कहना।”

    कुना ने सियार का ज़ोर-ज़बर देखकर उसे उचित सीख देने की ठानी। कुछ दिन बीतने पर कुना ने अपनी माँ से कहा, “माँ तू जंगल में जा और रोते-रोते पेड़ से पत्ते तोड़। तेरा रोना सुनकर सियार ज़रूर आएगा। उसे कहना मेरा बेटा मर गया, शुद्धि क्रिया होगी और उसे भोजन के लिए निमंत्रण देना।”

    बूढ़ी बेटे की बात मानकर जंगल गई और रोते-रोते पत्ते तोड़ने लगी। बूढ़ी का रोना सुनकर पूँछकटा सियार उसके पास पहुँचा और उसके रोने का कारण पूछा। बूढ़ी ने उसे सारी बातें बताईं। सारे सियारों को शुद्धि भोज खाने के लिए आमंत्रित किया। पूँछकटे सियार की ख़ुशी का क्या कहना। उसने सारे सियारों से कहकर बूढ़ी के लिए पत्ते तुड़वा दिए। बूढ़ी ने घर लौटकर कुना को सारी बातें बताईं। माँ-बेटे दोनों ने मिलकर सियारों को उचित सबक़ सिखाने की एक योजना बनाई।

    उन्होंने घर के सामने कुछ खंभे गाड़ दिए। सारे सियार भोज खाने पहुँचे तो बूढ़ी सबके गले में रस्सी डालकर खंभे से बाँधने लगी। सियारों ने इसका कारण पूछा तो बूढ़ी बोली, “बेटो, तुम सब ठहरे पशु। खाने के समय में एक-दूसरे को काटने लगोगे। जितना खाओगे उससे ज़्यादा नुक़सान करोगे। बूढ़ी ने सबको पतली रस्सी से बाँधा और बाँधने के बाद रोते-रोते बोली,

    “निकलना रे कुना बाबू

    सारे सियारों को एक-एक लाठी मारना

    पूँछ कटे को मार देना।”

    सियारों ने इसका कारण पूछा तो बूढ़ी बोली, “श्राद्ध में पूजा से पहले ऐसे ही रोना होता है।”

    कुना तो छुपा हुआ था। बूढ़ी का रुदन सुनकर बाहर निकला और सियारों को पीटने लगा। सभी रस्सी तोड़कर भाग गए, पर पूँछकटा सियार भाग नहीं सका। कुना ने उसे पीट-पीटकर मार डाला।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 49)
    • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2017
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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