कोसारानी
एक किसी गाँव में सात सहोदर भाई रहते थे। सातों भाई अविवाहित थे। माँ-बाप तो पहले ही ईश्वर को प्यारे हो चुके थे। उन्हें छोड़ कर घर में और कोई नहीं था। खेती-किसानी करते और जीविका चलाते थे। कभी ख़ुद धान कूट लेते और कभी किसी अनाथ विधवा से कुटवा लेते थे। लकड़ी के लिए जंगल जाते। जंगल से जलाऊ लाकर कुटिया के एक कमरे में जमा कर देते थे।
एक बार की बात है। जंगल गए और जलाऊ लेकर लौटे। जलाऊ ला कर कमरे में भर दिया। बड़े भाई के लाए जलाऊ के साथ एक कोसा भी आ गया था। उस कोसे के भीतर थी एक डायन। उसे किसी ने किसी पेड़ की डाल पर स्थापित कर दिया था। एक रात डायन कोसे के भीतर से निकली। एक सुन्दर नारी के रूप में। सब सोए थे। चुपके से साग-भात रांध लिया और एक-एक कर सातों भाइयों के मुँह में ठूँसती चली गई। किसी को पता ही नहीं चला। इसी प्रकार रोज़ चलता रहा।
एक रात छोटा भाई सोने के बहाने से जागता रहा। वह उम्र की दृष्टि से सब में छोटा था किंतु अक़्ल में सबसे तेज़ था। कोसारानी ने ज्यों ही उसके मुँह में भात-साग ठूँसना चाहा,उसने फुर्ती से उसकी कलाई पकड़ ली और सब को जगा लिया। छोटे भाई ने सबसे बड़े भाई से कहा,भाई! आप सब में बड़े हैं इसीलिए आप ही इससे विवाह कर लें। हमें ख़ुशी होगी।
इस पर बड़े भाई ने कोसारानी को अपनी पत्नी बना लिया और उसके साथ आराम से गृहस्थी चलाने लगा। बाकी भाइयों को भी आराम मिलने लगा। रसोई बनाने की झँझट से उन्हें छुट्टी मिल गई थी। समय बीतता गया। एक दिन कोसारानी अपनी माँ के घर जाने को तैयार हुई। उसने अपने पति को भी साथ चलने को तैयार कर लिया। घर से दोनों निकल पड़े। जाते-जाते रास्ते में एक जंगल मिला। कोसारानी अपने पति से बोली,मैं पान-दतौन तोड़ कर आती हूँ। आप चलते रहें। आगे तालाब है। आप वहीं रुकें। मैं अभी आई। और इस तरह दोनों अलग-अलग दिशाओं में चल पड़े। कोसारानी का पति तालाब के किनारे बैठा रहा।
कुछ ही देर में अचानक चारों ओर अँधेरा छा गया। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था। सामने से एक बाघ दहाड़ता चला आ रहा था। बाघ आया और उसे खा गया। उसकी एक छिंगुनी को उसने वहीं छोड़ दिया। इसी तरह वह छहों भाइयों को खाती गई। बच गया छोटा भाई, वह बड़ा चालाक था। वह उन्हें हर बार यह बताती रही थी कि उनके भाई धान मिंडाई के काम में व्यस्त हैं। इसलिए वे ही चल कर उनसे मिल आएँ। वह उन्हें खा-खा कर उन सभी की छिंगुनियां छोड़ती गई थी। एक दिन छोटा भाई भी उसके साथ रवाना हुआ। तालाब के पास आम का एक बड़ा-सा पेड़ था। प्राण बचाने के लिए वह उसी पेड़ के ऊपर चढ़ गया। पेड़ पर आम फले थे। कोसारानी का वह देवर पेड़ के ऊपर पत्तों की आड़ में छिप गया, लेकिन उस पर बाघ की नज़र पड़ ही गई। इतने में उसने भगवान का नाम लिया तो भगवान ने उसे एक पके आम के भीतर छिपा लिया। बाघ क्या करता! खिसिया कर रह गया। कोसारानी ही वह बाघ थी। हवा चली और ऊपर से वह पका आम नीचे टपक पड़ा। एक कौए ने देखा और उसे उठा ले गया। कौए को लगी थी प्यास। तालाब के किनारे आम को छोड़ कर वह पानी पीने लगा। हवा का एक झोंका आया और आम लुढ़क कर तालाब के पानी जा गिरा। तालाब की एक बड़ी मछली उस आम को निगल गई। कोसारानी सब-कुछ ताड़ कर वहाँ से चली गई और सीधे राजी के बगीचे में ठहर गई। राजा जब बगिया में हवा खाने गया तो कोसारानी ने उसे पटा लिया। कोसारानी को राजा ने अपनी रानी बना ली। राजा-रानी प्रेम से समय बिताने लगे। एक दिन कोसारानी राजा से बोली कि उसे मछली खाने की साध लगी है। उसकी साध पूरी की जाए। फिर क्या था! राजा का हुकुम हुआ। मछुआरे सब भिड़ गए जाल, पेलना, झारी,ढूटी ले-लेकर मछली पकड़ने। उस तालाब में भी बड़ी-बड़ी मछलियां थीं। वहाँ भी गए लोग। वह मछली,जिसके पेट में आम था,कीचड़ में छिप गई। लेकिन उसे एक केवट ने पकड़ ही लिया। पकड़ कर उसे घर ले गया। वह उसे काटना ही चाहता था कि मछली के पेट से आवाज आई,ओ धर्मात्मा! मछली को धीरे से काटना। भीतर में मैं हूँ।
केवट और उसकी पत्नी अचरज में पड़ गए कि यह किसकी आवाज़ है? धीरे-धीरे काटा। मछली को काटने पर लड़का बाहर आ गया। केवट निःसंतान था। सामने एक सुंदर-से बालक को देख कर दोनों के मन में उस बालक के प्रति ममता उमड़ आई। वे उसे बड़े ही प्यार से पालने लगे।
उधर कोसारानी को इस बात से निराशा हुई कि उसकी साध पूरी नहीं हुई। वह परेतिन थी, इसीलिए उसे मालूम हो गया था कि सात भाइयों में से सब से छोटा भाई केवट के घर पल रहा है। तब कोसारानी ने एक दिन राजा से कहा,सुनते हैं कि अमुक केवट के घर कबाड़ी रखने लायक एक अच्छा लड़का है। उसे बुला लिया जाए।
यह सुन कर राजा ने सिपाही भेज कर लड़के को बुला लिया। कबाड़ी होने के लिए लड़का और केवट दोनों राजी पड़ गए। लड़का राजा के घर कबाड़ी रह गया,बंधक मज़दूर।
एक रात सब सोए थे। लड़का अपने कमरे में जाग रहा था। इतने में वहाँ एक बाघ आया। बाघ को देखते ही लड़के ने भगवान का सुमरन किया। सुमिरन करते ही वह एक मक्खी बन कर दीवार पर बैठ गया। वहाँ एक गंडासा रखा था। तब वह मक्खी से पुनः आदमी बन गया और गंडासा हाथ में उठा लिया। फिर उसने बाघ का सिर धड़ से अलग कर दिया। कोसारानी मर गई। उसके शरीर का आधा भाग बाघ का और आधा भाग स्त्री का था।
सुबह राजा सो कर उठा तब लड़के ने राजा को सब-कुछ सच-सच बता दिया। उसने अपने छहों भाइयों की कटी उँगलियाँ भी दिखाईं। राजा को उस पर विश्वास हो गया। राजा ने सोचा कि वह एक-न-एक दिन उसे भी खा ही जाती। लड़के ने उसकी जान बचाई थी। लड़के पर वह इतना ख़ुश हो गया कि उसे उसने आधा राज्य ही दे डाला। केवट और उसकी पत्नी के भाग जागे। वैसे ही सब के जागे। अच्छा हुआ,मरी कोसारानी।
- पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 125)
- संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
- संस्करण : 2013
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