Font by Mehr Nastaliq Web

गीदड़ की धूर्तता

gidaD ki dhurtata

अन्य

अन्य

एक जंगल में एक बाघ रहता था। वह प्रतिदिन अनेक जानवरों को मारकर खा जाता था। सभी जानवर उससे परेशान थे, संत्रस्त थे। वह कब किसको मारकर खा जाता, इस बात का कोई ठिकाना नहीं था। इससे सबका जीवन कष्टकर हो गया था।

एक दिन जंगल के सभी जानवर इकट्ठा हुए और आपस में विचार-विमर्श किया, “इस तरह से जीवन कैसे बीतेगा? यह जीवन बहुत कष्टकर हो गया है। इसलिए प्रत्येक परिवार से प्रतिदिन एक-एक सदस्य को बाघ के पास भेज दिया जाए। इससे कोई एक सदस्य की ही मृत्यु होगी और बाक़ी सब निश्चित रहेंगे, नहीं तो हम सब पर आफ़त बनी रहेगी।” बात पक्की हो गई और इसकी सूचना बाघ को दे दी गई। वह भी मान गया कि बिना कोई मेहनत किए शिकार मेरे पास चलकर आएगा। लेकिन उसने यह शर्त रखी कि जिसकी बारी होगी वह यदि नहीं आएगा अथवा उसके आने में विलंब होगा तो फिर मैं एक ही दिन में कई जानवरों का शिकार करना शुरू कर दूँगा।

अब सब जानवरों ने मिलकर प्रत्येक परिवार से किसकी बारी आएगी और कौन जाएगा— इस बात का निश्चय कर दिया। अब बाघ को बिना कोई मेहनत किए अपना आहार मिलने लगा। जानवर भी अब निश्चित रहने लगे।

एक दिन एक गीदड़ की बारी आई, बाघ के पास जाने की। उसने जान-बूझकर देर कर दी कि मृत्यु तो निश्चित है ही चाहे जल्दी जाऊँ या देर से। इसलिए उसने जाने में देर कर दी। जब बाघ को ख़ूब ज़ोर की भूख लगी तो उसने दहाड़ मारी। उसकी दहाड़ से सारा जंगल दहल उठा। सब जानवर यह पता लगाने लगे कि आज किसकी बारी थी और वह क्यों नहीं गया? पता चला गीदड़ की बारी थी बाघ के पास जाने की। लेकिन गीदड़ तो सुबह से ही अपने परिवार से फ़रार है और वह कह कर गया था कि अपनी बारी पूरी करने जा रहा हूँ। सभी निश्चित हो गए।

इसी बीच बाघ ने दूसरी बार दहाड़ा। अब सबने यह समझ लिया कि ज़रूर अब कोई अनहोनी होने वाली है। सब जानवर डर के मारे बाघ की ख़बर लेने चल दिए।

सभी जानवरों के पहुँचने से पहले ही गीदड़ वहाँ पहुँचा हुआ था। उसने बाघ से कहा, “सरकार! मैं गया हूँ। आज मेरी ही बारी है।”

इस पर बाघ ने दहाड़ते हुए कहा, “पापी! तुम भाग जाओ। अब मैं एक नहीं अनेक जानवरों का शिकार करूँगा। तुमने मुझे इतनी देर तक भूखे रखा। अब शर्त टूट गई है।”

इतना सुनते ही गीदड़ ने बोला, “सरकार! मैं क्या कहूँ, मैं तो घर से बिलकुल सुबह ही निकला था। रास्ते में एक बाघ मिल गया। वह मुझे आने नहीं दे रहा था और मुझे खा जाना चाहता था। उसी के साथ बकझक करने में देर हो गई। उससे किसी तरह जान बचाकर भागा आया हूँ।”

बाघ को लगा कि मेरे रहते और कौन दूसरा इस जंगल में गया है और मेरे शिकार पर हाथ फेरना चाहता है। उसने गीदड़ से कहा, “तुम झूठे हो। दिखाओ तो वह कौन है जिसने तुम्हें आने से रोका?”

गीदड़ बाघ को अपने साथ एक कुएँ पर ले गया। उसने बाघ से कहा कि सरकार वह बाघ इसी में रहता है। बाघ लहरा कर कूदा तो पानी में परछाईं दिखाई दी। उसे लगा कि सचमुच में इसमें एक बाघ है। उसने ख़ूब ज़ोर से दहाड़ मारी। उसने जितना बड़ा मुँह करके दहाड़ा था, वैसी ही दहाड़ बाघ की परछाई की थी जो कुएँ के पानी में दिखाई दी।

अब बाघ को यह विश्वास हो गया कि गीदड़ सही कह रहा था। इस गीदड़ को मेरे प्रतिद्वंद्वी ने अवश्य रोक लिया होगा। यह सोचकर उसने और जोर से दहाड़ मारी और उससे लड़ने के लिए कुएँ में कूद गया और पानी में डूबकर मर गया।

गीदड़ ने बाघ को मार दिया, यह ख़बर जंगल में आग की तरह फैल गई। सब तरफ़ ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ। जो जहाँ था, वहीं ख़ुशी के मारे झूमने नाचने लगा। आख़िर सबकी जान जो बच गई थी।

अब जो जानवर समय पर पहुँचने के कारण गीदड़ को गाली दे रहे थे, वही अब उसकी प्रशंसा के पुल बाँध रहे थे।

स्रोत :
  • पुस्तक : बिहार की लोककथाएँ (पृष्ठ 127)
  • संपादक : रणविजय राव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2019

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए