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पहाड़ की ऊँचाई

pahaD ki uunchai

अन्य

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दो चिड़ियाँ थीं। दोनों सुंदर और मधुर स्वर वाली थीं। वे जयंतिया पहाड़ियों के बीच उड़ती रहतीं और गाने गातीं। वे अलग-अलग पहाड़ों पर रहती थीं।

एक दिन दोनों चिड़ियों में कोई चर्चा चल रही थी कि अचानक एक चिड़िया ने दूसरी चिड़िया से कहा कि ‘तुम मेरे पहाड़ पर रहने जाओ। मैं तुम्हें अपने पेड़ पर जगह दे दूँगी। वहीं तुम अपना घोंसला बना लेना।’

‘मैं क्यों आऊँ? मैं अपने पहाड़ पर ठीक हूँ। यदि तुम्हें मेरे पहाड़ पर रहने के लिए आना हो तो तुम्हारा स्वागत है।’ दूसरी चिड़िया ने कहा।

‘अरे नहीं, मुझे नहीं आना है। वैसे भी तुम्हारा पहाड़ मेरे पहाड़ से छोटा है इसलिए कह रही हूँ।’ पहली चिड़िया ने कहा।

‘मेरा पहाड़ छोटा नहीं है।’ दूसरी चिड़िया ने प्रतिवाद किया। दोनों अपने-अपने पहाड़ को लेकर विवाद करने लगीं।

जब बहुत देर हो गई तो एक कठफोड़वे से उन लोगों ने निवेदन किया कि वह उनका विवाद सुलझा दे और बता दे कि किसका पहाड़ ऊँचा है।

‘यह तो बहुत आसान काम है।’ कठफोड़वे ने कहा। उसने चिड़ियों को समझाया तुम लोग अपने-अपने पहाड़ों की छायाओं को नाप लो। बड़े पहाड़ की बड़ी छाया बनेगी और छोटे की छोटी छाया बनेगी। अत: छाया से ही पता चल जाएगा कि किसका पहाड़ा बड़ा और ऊँचा है।

चिड़ियों ने कठफोड़वे की सलाह मानते हुए अपने-अपने पहाड़ की छाया को नाप लिया। जब दोनों नापों को मिलाकर देखा तो दोनों एक ही ऊँचाई निकली। यह देखकर दोनों चिड़ियाँ बहुत ख़ुश हुई और आपस में हिल-मिलकर रहने लगीं।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 341)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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