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बड़बोली चिड़िया

baDboli chiDiya

एक चिड़िया थी जो बहुत बड़बोली थी। वह स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए बिना सोचे-विचारे कुछ भी कहने लगती थी। उसकी इसी आदत से तंग आकर पक्षी समुदाय ने उसका बहिष्कार कर रखा था। किंतु बड़बोली चिड़िया को इससे कोई अंतर नहीं पड़ा था। वह तो यही सोचती थी कि सभी उसकी बुद्धिमत्ता से जलते हैं इसलिए उससे अलग हो गए हैं।

उस चिड़िया ने राजा के महल के पास एक पेड़ पर अपना घोंसला बनाया। पेड़ राजा के महल से भी ऊँचा था और जो शाखा महल की अटारी के ऊपर आती थी उसी पर चिड़िया को घोंसला था।

एक दिन चिड़िया को कहीं से दाल के दो दाने मिल जाते हैं। बड़बोली चिड़िया चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगती है कि ‘जितना धन मेरे पास है उतना तो राजा के पास नहीं है।’

जब यह बात राजा के कानों तक पहुँचती है तो उसे बहुत क्रोध आता है। उसे लगता है कि यह बात लोगों को पता चलेगी तो लोगों पर उसका प्रभाव नहीं रहेगा। अतः वह अपने सिपाहियों को बुलाता है।

‘जाओ, जाकर चिड़िया का घोंसला देखो। उसमें जो कुछ भी हो वह राजसात कर लो।’ राजा सिपाहियों को आदेश देता है।

चिड़िया जब शाम को अपने घोंसले में लौटती है तो उसे अपना घोंसला ख़ाली मिलता है। दाल के दाने वहाँ नहीं थे। चिड़िया ने आस-पास पूछा तो पता चला कि राजा के सिपाही उसके दान के दाने ले गए हैं। इस पर चिड़िया को बहुत ग़ुस्सा आया।

‘राजा भुखमरा है, उसने मेरे दाल के दाने चुरा लिए।’ चिड़िया चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगी।

यह बात राजा तक पहुँची तो उसने चिड़िया के दाल के दाने लौटा दिए। अपने दाल के दाने पाकर चिड़िया बहुत प्रसन्न हुई। किंतु यदि वह शांत बैठ जाती तो भला बड़बोली कैसे कहलाती?

‘राजा मुझसे डरता है इसलिए उसने मेरा धन मुझे लौटा दिया। राजा डरपोक है। राजा डरपोक है।’ चिड़िया ने चिल्लाना शुरू किया।

जब यह बात राजा के कानों तक पहुँची तो उसे बहुत क्रोध आया। उसने सिपाहियों को भेज कर चिड़िया को मरवा दिया और उसका घोंसला जलवा दिया। इस तरह चिड़िया को बड़बोलेपन की कठोर सज़ा मिल गई।

इसीलिए कहा जाता है कि व्यक्ति को कभी बड़े बोल नहीं बोलने चाहिए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 273)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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