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अनकही कहानियाँ

anakhin kahaniyan

एक गोंड किसान ने खेत-खलिहान में हाथ बँटाने के लिए नौकर रखा। एक दिन नौकर को साथ लेकर वह बेटे और बहू से मिलने गया। वे काफ़ी दूर दूसरे गाँव में रहते थे। रास्ते में एक झोपड़ी में उन्होंने रातवास लिया। भोजन आदि से निवृत्त होकर नौकर ने उससे कोई कहानी सुनाने का आग्रह किया। पर गोंड थका हुआ था और सोना चाहता था। जल्द ही उसकी आँख लग गई। पर नौकर को नींद नहीं आई। वह यों ही लेटा रहा। उसे मालूम था कि उसके मालिक चार कहानियाँ जानते हैं, पर आलसवश सुनाते नहीं।

गोंड अगाढ़ नींद में डूब गया तो चारों कहानियाँ उसके पेट से बाहर आई और उसके शरीर पर बैठकर बतियाने लगीं। वे बहुत क्षुब्ध थीं, “ये गोंड हमें अपने बचपन से जानता है, पर ससुरा किसी से चर्चा तक नहीं करता। फिर हम इसके पेट में क्यों रहे! इस निकम्मे को मारकर दूसरा आश्रय ढूँढना चाहिए।”

नौकर नींद का बहाना किए निश्चल पड़ा रहा और ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा।

एक कहानी ने कहा, “जब यह खूसट बेटे के घर पहुँचेगा और खाना खाने बैठेगा तो मैं उसके निवाले को सूइयों में बदल दूँगी। उन्हें निगलते ही यह मर जाएगा।”

दूसरी कहानी ने कहा, “अगर यह इससे बच गया तो मैं रास्ते के पास विशाल पेड़ बनकर खड़ी हो जाऊँगी और ज्योंही यह उसके नीचे से गुज़रेगा मैं इस पर गिरकर इसे मार दूँगी।”

तीसरी कहने लगी, “तब भी अगर यह नहीं मरा तो मैं साँप बनकर इसे डस लूँगी।”

चौथी ने कहा, “फिर भी बात नहीं बनी तो नदी पार करते समय मैं बड़ी लहर बनकर इसे डूबो दूँगी”

अगले दिन सवेरे वे गोंड बेटे के यहाँ पहुँचे। बेटा पिता को देखकर बहुत ख़ुश हुआ। बहू ने उछाह से खाना बनाया और ससुर को परोसा। गोंड पहला कौर मुँह में डाल ही रहा था कि नौकर ने यह कहते हुए उसका कौर गिरा दिया कि उसमें कीड़ा है। सबने देखा कि उस कौर के चावल सूइयाँ बन गए हैं।

अगले दिन गोंड उसका नौकर वापस चल पड़े। रास्ते पर झूके हुए एक जंगी पेड़ को देखकर नौकर ने कहा, “आओ, इस पेड़ के पास दौड़ते हुए निकलें!” वे दौड़ते हुए उस पेड़ के पास से निकले ही थे कि पेड़ चरड़-धम्म की ज़ोरदार आवाज़ करता हुआ धरती पर गिरा। वे बाल-बाल बचे। उससे थोड़ा ही आगे उन्हें एक साँप दिखा। गोंड के नौकर ने फुर्ती से साँप को लाठी से मार दिया। उसके बाद वे नदी पर पहुँचे। वे उसे पार करने लगे तो एक विकट लहर लपकते हुए आई। लेकिन मौकर ने मालिक को एक तरफ़ खींचकर बचा लिया।

नदी पार करके वे सुस्ताने लगे। गोंड ने कहा, “तुमने चार बार मेरी जान बचाई। तुम ज़रूर कोई ऐसी बात जानते हो जो मैं नहीं जानता। तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि क्या होने वाला है?”

नौकर ने कहा, “यह मैं नहीं बता सकता। नहीं तो मैं पत्थर बन जाऊँगा।”

गोंड ने कहा, “कैसी बात करते हो! आदमी पत्थर कैसे बन सकता है! फ़िजूल का डर छोड़ो और मुझे पूरी बात बताओ!”

आख़िर नौकर को मानना पड़ा, “अच्छी बात है, बताता हूँ। लेकिन जब मैं पत्थर बन जाऊँ तो अपने पोते को लाना और मेरी तरफ़ फेंकना। इससे मैं वापस ज़िंदा हो जाऊँगा।”

फिर नैकर ने सारा क़िस्सा ब्यौरेवार बताया। बताते ही वह पाषाण बन गया। गोंड उसे उसी हाल में छोड़कर घर चला गया। कुछ दिन बाद गोंड की बहू को इसका पता चला। वह अपने बेटे को गोद में लेकर आई और उसे पाषाण की तरफ़ फेंका। नौकर में प्राणों का संचार हुआ। वह अंगड़ाई लेकर उठ बैठा।

गोंड ने उसे वापस काम पर रखने से मना कर दिया इसीलिए यहाँ के लोग किसी गोंड पर भरोसा नहीं करते। वे कहते हैं, “गोंड, स्त्री और सपने का क्या विश्वास!”

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 2)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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