साहूकार की कहानी
एक गाँव में एक साहूकार था। एक दिन गाँव के कुछ लोग उसके पास धान-रुपया,बैल आदि माँगने गए। उसने लोगों से कहा,तुम लोग मुझसे धान माँगने,बैल माँगने,रकम माँगने क्यों चले आते हो?
लोगों ने कहा,हमारे पास तो कुछ भी नहीं है। इसीलिए तुमसे माँगने आए हैं,नहीं दोगे तो हम भूखों मर जाएँगे।
साहूकार ने कहा,भूख कहाँ है? अच्छा ठहरो। मैं जाता हूँ उस भूख को खोजने। ऐसा कह कर वह ढेर सारे रुपए-पैसे लेकर घोड़े पर सवार हुआ और भूख की खोज में निकल पड़ा। चलते-चलते वह अपने इलाके से बहुत दूर आ गया। भूख लगने पर ढेरों रुपए ख़र्च कर कभी दोना भर चावल तो कभी दोना भर पेज ख़रीद कर भूख मिटाता आगे बढ़ता गया। कुछ ही दिनों में उसके सारे रुपए-पैसे ख़त्म हो गए। स्थिति ऐसी आ गई कि उसे अपने घोड़े के पैर तक काट कर बेचना पड़ा,तब जाकर उसे भोजन नसीब हुआ। पहले एक पाँव,फिर दूसरा और फिर तीसरा-चौथा भी। अंततः घोड़े का सारा शरीर ही बिक गया। अब क्या करें,यह सोच कर वह बड़ा परेशान हुआ,भूख तो भूख ही है। भूख लगी तो व्याकुल होने लगा,और कोई चारा नहीं था,सो उसे अपने स्वयं के हाथ-पाँव भी काट कर बचने पड़े। अब वह अपंग था। किसी तरह लुढ़कता हुआ छींद के पौधे तक जा पहुँचा वहाँ छींद के कीड़े थे। वह उन्हीं कीड़ों को खा कर अपनी भूख मिटा रहा था।
इसी बीच,एक दिन एक युवती छींद के कीड़े लेने वहाँ आई। उसने इस अपंग साहूकार को देखा तो द्रवित हो उठी। मानवता के नाते उसने उसे वहाँ से किसी तरह उठाया और अपने घर ले गई। वह युवती भी निपट अकेली थी। उसने पशु-पक्षियों से उस अपंग साहूकार की सहायता की याचना की। तब पशु-पक्षियों ने जंगल की लकड़ियाँ इकट्ठी कर उसमें आग लगा दी। उस जगह पर लौकी बोई गई। जब लौकी के फल लगे तो युवती ने उसे तोड़ा और सब्जी बनाने के इरादे से काटने लगी। तब उसमें से ढेर सारे सिक्के मिले। इस तरह अनायास ही वे दोनों धनवान हो गए।
एक दिन उस अपंग साहूकार ने अपनी रामकहानी उस युवती को सुनाई। फिर उसने अपने परिवार वालों से मिलने की इच्छा जाहिर की,किंतु उसने यह भी कहा कि सोने के इस विपुल भंडार को देख कर उसके परिवार वाले लालच में आ जाएँगे,इसीलिए सोने के उस भंडार को वहाँ ले जाना उचित नहीं होगा। इसी समय वहीं पर एक बांडा (पूँछ कटा) कुत्ता था। यह कुत्ता उसी अपंग साहूकार का था और उनकी सारी बातें छिप कर सुन रहा था।
उधर उस अपंग साहूकार का घर उजड़ चुका था। उसकी दो पलियाँ पहले से ही थीं। वे दोनों उस कुत्ते को साथ लेकर उसे खोजने निकली थीं। वे दोनों एक राजा के रनिवास में सेविका बनीं अपना गुज़र-बसर कर रही थीं और वह कुत्ता उसे खोजते-खोजते उस युवती के घर तक पहुँचा था। कुत्ते ने यह सब सुना तो जाकर उसने उस अपंग साहूकार की पत्नियों से सारी बातें कहीं।
इधर वह युवती उस साहूकार को घोड़े पर बिठा कर चली। भटकते हुए दोनों उसी नगर में आए,जहाँ उस साहूकार की पत्नियाँ रह रही थीं। कुत्ते ने उन्हें देखा तो पहचान उसने लिया। साहूकार के पास जाकर उसके घर की हालत बताई। यह सब सुन कर अपंग साहूकार बड़ा दुखी हुआ और कुत्ते को साथ लेकर अपनी पत्नियों से मिलने चल पड़ा। उसकी पत्नियों ने उसका स्वागत किया। यात्रा के कारण वह युवती ज्वर से पीड़ित थी। उसने उस साहूकार से कहा,बिना काम-धाम किए मुझे कब तक खिलाते रहोगे? तब साहूकार की दोनों पत्नियों ने उस युवती को षडयंत्र कर मार डाला और नदी में फेंक दिया।
- पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 74)
- संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
- संस्करण : 2013
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