Font by Mehr Nastaliq Web

मैथिली लोकगीत : मोहि तेजि पिय मोर गेलाह विदेश

maithilii lokagiit : mohi teji piy mor gelaah videsh

अन्य

अन्य

रोचक तथ्य

संदर्भ—विरहिणी कथन सखी से।

मोहि तेजि पिय मोर गेलाह विदेश।

कवन बिधि बितत सखी बारि बयस।।1।।

नयन सरोवर काजर नीर।

ढरकि खसल सखि धनिक सरीर।।2।।

सेज भेल परिमल फूल लेल बास।

कओन देस पिय मोर पड़ल उपास।।3।।

मेरे प्रिय मुझे छोड़कर विदेश चले गए। हे सखी! मेरी यह बारी उम्र किस प्रकार बीतेगी?।।1।।

मेरे नेत्र सरोवर हो गए हैं और काजल नीर बन गया है। हे सखी!

ये प्रेम के विरह में दरक रहे हैं।।2।।

मेरी सेज परिमल हो गई है और उसमें फूलों ने अपना वास बना लिया है। पता नहीं मेरे प्रिय किस देश में उपवास कर रहे होंगे।।3।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 55)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए