Font by Mehr Nastaliq Web

बुंदेली लोकगीत : घरवा ते निकरी बँझिनिया

bundeli lokgit ha gharwa te nikri banjhiniya

अन्य

अन्य

रोचक तथ्य

संदर्भ—वंध्या-व्यथा।

घरवा ते निकरी बँझिनिया, उरई तरी ठाढ़ी हो।

उरई ते निकरी नगिनिया, बँझिनि डँसि लेतिउ हो।

बँझिनि! हम नहीं डँसबै, बँझिनि होइ जाबइ हो।।1।।

हुअऊँ ते चली रे बँझिनिया, बृन्दाबन आई हो।

बृन्दाबन केरी बघिनिया, बँझिनि खाइ लेतिउ हो।

बँझिनि, कइसे खाबइ, बँझिनि होइ जाबइ हो।।2।।

हुअऊँ ते चली रे बँझिनिया, गंगा तट पहुँची हो।

गंगा! एक लहरि मोहिं देतू, गुपुत होई जाइति हो।

जाहु तिरिया घर अपने पुतवा खेलाइउ हो।।3।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 324)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए