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मैथिली लोकगीत : जमुना तीर बसयि बृन्दाबन

maithili lokgit ha jamuna teer basayi brindaban

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रोचक तथ्य

संदर्भ—श्रीकृष्ण की बाललीला।

जमुना तीर बसयि बृन्दाबन,

संगहि गेलौं नहाय।

के एहनि कालन्हि अन्याय,

बंशी लेलन्हि चोराय।।1।।

बाँसक पोर तकर एक बंसी,

बंसी लेलन्हि चोराय।

कतय गेलौं किय भेलौं जसुदा,

बंसी दिय ने छोड़ाय।।2।।

हम नई जानी हम नई सुनली,

बंसी गेलो हेराय।

पुछिऔहि अपना हित प्रीति सँ,

बंसी देथु छोड़ाय।।3।।

यमुना-तट पर वृंदावन बसा है। श्री कृष्ण अपनी माँ यशोदा से कहते हैं—मैं साथियों के साथ नहाने गया था। पता नहीं किसने मेरे साथ अन्याय किया और वंशी चुराली।।1।।

बाँस के पोर होते हैं, उनके बीच की बाँसुरी है, उस वंशी को किसी ने चुरा लिया। माँ यशोदा कहाँ गई, क्या हुआ? मैया, मेरी वंशी छुड़ा दो।।2।।

यशोदा जी कृष्ण से कहती हैं—मैं नहीं जानती, मैंने नहीं सुना कि तुम्हारी वंशी खो गई है? अपने हितैषी एवं प्रेमियों से पुछवाओ, वे बाँसुरी छुड़ा देंगे।।3।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 59)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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