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कौरवी लोकगीत : कोठवा से उतरी रुकुमिनि

kaurwi lokgit ha kothwa se utri rukumini

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रोचक तथ्य

संदर्भ—यशोदा, रुक्मिणी और कृष्ण की चुहलबाजी।

कोठवा से उतरी रुकुमिनि, अँगनवा में ठाढ़ी भई,

अँगनवा में ठाढ़ी भई रे।

अरे-अरे मोरी बहुअरि, हँसि हँसि पूछे जसोमति,

काहे बाहू अनमनि रे।।1।।

काह कहौं मोरी सासू, कहत मोरे लाज लागइ रे।

अरे-अरे मोरी सासू, आज महल मोरे चोरी भई,

तिलरी चोराय गई रे।।2।।

निकारि डारौ हाँथे चुडिला गोड़े गोड़ाहर।

अरे-अरे मोरी बहुआ, ओढ़ि लेहु पीत पटुकवा,

मुरली चोराय लावउ रे।।3।।

निकारि डारे हाँथे चुड़िला, गोड़े गोड़ाहर।

ओढ़ि लिहिन पीत पटुकवा, मुरली चोराय लाई रे।।4।।

बाहेर से आये कन्हैया, अँगनवाँ में ठाढ़े भये,

अरे-अरे मोरे रामा, हँसि-हँसि पूछैं जसोमति,

काहे पूता अनमन रे।।5।।

काह कहौं मोरी माया, कहत मोरे लाज लागइ रे।

अरे-अरे मोरी माता, आज महल मोरे चोरी भई,

मुरली चोराय गई रे।।6।।

अस जिन जान्यो रुकुमिनि, मुरलिया बाँस कै है,

मुरली में बसैं मोरे प्रान, मुरलिया मोरी दै देउ रे।।7।।

अस जिन जान्यो राजा मोरे, तिलरिया लाह कै है,

अरे, तिलरी में बसैं मोरे प्रान, तिलरिया मोरी दै देउ रे।।8।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 395)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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