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बुंदेली लोकगीत : मोरे राजा किवरियाँ खोलो, रस की बूँदें परी

bundeli lokgit ha more raja kiwariyan kholo, ras ki bunden pari

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रोचक तथ्य

संदर्भ—कृषक पत्नी द्वारा वर्षा-वर्णन।

मोरे राजा किवरियाँ खोलो,

रस की बूँदें परी।।टेक।।

पहले आँधी बैहर आई,

दूजे बादर देत देखाई।

तीजे कठिन अँधेरी छाई,

उठी घटा घनघोर, रस की०।।1।।

पहली बूँद गिरी अरराई,

मोरे माथे आय जुढ़ाई।

मैंने चोली बहुत छिपाई,

मोरी देह भई सरबोर, रस की०।।2।।

असड़ा खेती करें किसान,

बोई तिली बिनौला धान।

जुण्डी हो गई दो दो पान,

सखियाँ करें मंगलाचार, रस की०।।3।।

भोरहें भर गए ताल तलैयाँ,

पानी पीवें बछिया गैयाँ।

सपरन जावें बहुएँ बिटियाँ,

लरिका खेलैं गली गैलार, रस की०।।4।।

जब से हो गई ज्वार सयानी,

बिलना भरन लगे सो जानी।

निकसीं बहुत भुट्टियाँ प्यारी,

उनमें दाने लगे हैं हजार, रस की०।।5।।

पक कैं ज्वार भई तैयार,

काटन जावैं सबई किसान।

गाड़ी भर भर धरैं खरियान,

गहबे को हो गई तैयार, रस की०।।6।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 345)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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