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अवधी लोकगीत : सइयाँ छायो है परदेसवा में सुधि बिसरी

awadhi lokgit ha saiyan chhayo hai pardeswa mein sudhi bisri

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रोचक तथ्य

संदर्भ—ईश विस्मृति।

सइयाँ छायो है परदेसवा में सुधि बिसरी।।टेक।।

जइसे भाँगि धर्यो कूँड़ा माँ, लै सोंटा रगरी।

बाइसै रगर करौ साहब से, कउनिउ ख़ूँट परी।।1।।

नित उठि कामिनि भरै कूप जल, सो नित हइँचि करै रसरी।

वइसै हइँचि करौ साहब से, खुलै सभदि कोठरी।।2।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 215)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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