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भोजपुरी लोकगीत : असों के सावन सइयाँ घरे रहु

bhojapuri lokgit ha ason ke sawan saiyan ghare rahu

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रोचक तथ्य

संदर्भ—परदेश जाने के लिए उत्सुक पति से प्रार्थना।

असों के सावन सइयाँ घरे रहु, घरे रहु ननदी के भाइ।।टेक।।

साँप छोड़ेला आपन केचुलि, गंगा छोड़ेली अरारि।

तूहूँ सइयाँ तेजेल आपन घरवा, धनिया अनारि।।1।।

घोड़वा के देबी घोड़सारिया, हथिया के देबो हथिसार।

तूहूँ प्रभु देबों अटरिया, रहबो नैना हुजूर।।2।।

घोडवा के देबहु महेलवा, हथिया के लवंग कपूर।

तोहरा के देवि घीव खीचड़ कर जोरि रहबो हजूर।।3।।

हे ननद के बीर! आप इस वर्ष सावन में घर पर रहो।।टेक।।

साँप ने अपनी केंचुल छोड़ दी है, गंगा अपना किनारा छोड़ रही है। आपकी पत्नी अनाड़ी है, मतिमंद है, हे स्वामी! आप उसे घर पर अकेली छोड़ रहे हो।।1।।

मैं आपके घोड़े को घुड़साल दूँगी और हाथी को हस्तिशाला में रखूँगी। हे

स्वामी! मैं आपको अट्टालिका पर रखूँगी एवं आपके नेत्रों के सामने बनी

मैं घोड़े को महेला दूँगी और हाथी को लौंग-कपूर दूँगी। हे प्रियतम! आपके लिए मैं घृतयुक्त खिचड़ी खाने को दूँगी और आपके सामने हाथ जोड़े हुए उपस्थित रहूँगी (आप परदेश जाइए)।।3।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 117)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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