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भोजपुरी लोकगीत : आजु सदासिव होरी मचाई

bhojapuri lokgit ha aaju sadasiw hori machai

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रोचक तथ्य

संदर्भ-शिवजी का होली खेलना।

आजु सदासिव होरी मचाई।।टेक।।

हाथ त्रिशूल ललाट चन्द्रमा, गले नाग लपटाई।

बिष के घूँट पिये सिवसंकर, डिमडिम डमरू बजाई।।

भूतन के नाच नचाई।।1।।

राजा हिमंचल के आँगन में, सभ सखि होरी मचाई।

कोऊ रंग पिचकारिन मारति, कोऊ अबीर लै धाई।।

भोला के मुख में लगाई।।2।।

हँसि बोले महदेव दिगम्बर, यह रंग मोहि भाई।

भाँग धतूर सेत संकिया, गोला भंग घोराई।।

ओहि सदासिव लेत चढ़ाई।।3।।

जाताना सखी होरी खेलन आई, सभ को भंग पिलाई।

बिस्वनाथ अलमस्त फिरैं, सभ भंग के रंग चढ़ाई।।

सभन के मति बौराई।।4।।

आज शिवजी होली खेल रहे हैं।।टेक।।

उनके हाथ में त्रिशूल, ललाट पर चंद्रमा और गले में सर्प लिपटे हुए हैं। शिवजी ने ‘डिमडिम’ डमरू बजाते हुए विष पी लिया और साथ में भूतों को भी नचाया।।1।।

राजा हिमाचल के आँगन में सब सखियाँ होली खेल रही हैं। कोई पिचकारियों में रंग भरकर मारती है और कोई अबीर लेकर दौड़ते हुए शिव के मुख पर लगाती हैं।।2।।

दिगंबर महादेव जी हँसकर बोले कि यह रंग मुझे अच्छा नहीं लगता। तब लोगों ने भाँग, धतूरा तथा सफ़ेद संखिया और भाँग का गोला पानी में घुलाया। उसे शिवजी ने बड़े प्रेम से पी लिया।।3।।

जितनी सखियाँ होली खेलने आई थीं, सबको शिवजी ने भाँग पिलाई। ‘विश्वनाथ' कहते हैं कि ऐसी दशा में भाँग पिए हुए सब रंगीली हो गईं। सभी की बुद्धि बावली हो गई।।4।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 100)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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