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अवधी लोकगीत : सहर चौकड़ी जिला जमुनपुर

awadhi lokgit ha sahar chaukDi jila jamunpur

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रोचक तथ्य

संदर्भ—ज्ञाना अहिरिन का पराक्रम।

सहर चौकड़ी जिला जमुनपुर, जहाँ गेना अहिरिन को घर।

गाय, भइँस जंगल माँ छोड़ै अपना बइठै बिरछा तर।।1।।

उइ जंगल से भालू निकरै, पहिले पहुँचै नद्दी पर।

पानी पीकै खड़ा कगारे, ख्याल गई मरदाने पर।।2।।

सौ मरदन का पकड़ि जौ पावै, चीरिन डारै करैं कर।

जब खूने कै चलै फुहारा, बहि गै धरती तीरै तर।।3।।

चेतई नाऊ देखै तमासा, खबर जनावै थाने पर।

थानेदार तहसिलिया साहेब, बन्दुकिअन माँ गोली भर।।4।।

हाथ जोरि कै गेंना बोली, अबै तो साहेब भे दुपहर।

सात दिना भालू से लड़बै, तब पीछे तुम लिहेउ खबर।।5।।

लड़तै-लड़तै भालू गिरिगा, मुँह की फेचकुर लाग चलन।

लादि-फाँदि कै चली है गेंना, जहाँ कचेहरी लागि जबर।।6।।

जेत्ते रहे डिप्टी कलट्टर, कलम दबावैं दाँते तर।

बहसी तार भेजै बिल्लायित, जल्दी आवै हमैं खबर।।7।।

सात कम्पनी, सात कचेहरी, कलम दबावैं दाँते तर।

अरे गेंना तुम्हें कही काउ, काम किहिउ मरदाने कै।

सात सै पावत है इनाम, मचिया बइठि कै झारै कान।।8।।

जनपद जौनपुर में एक उपनगर चौकड़ी है, जहाँ ज्ञाना अहिरिन का घर है। वह नित्य जानवर चराने जाती, गाय-भैंस को वह जंगल में छोड़ देती और स्वयं वृक्ष के नीचे बैठती।।1।।

एक दिन उस जंगल से एक भालू निकला और पहले नदी पर पहुँचा। जब वह पानी पीकर कगार पर खड़ा हुआ तो उसकी निगाह मरदाने पर गई।।2।।

वह भालू इतना शक्तिशाली था कि यदि सौ पुरुषों को पा जाता तो उन्हें दाँत से चीर कर मार डालता, किंतु ज्ञाना अहिरिन तो उससे भी अधिक शक्तिशालिनी थी। दोनों के युद्ध में रक्तपात भी हुआ, जिससे धरती भीग गई।।3।।

चेतई नाई यह कौतुक देख रहा था, उसने इसकी सूचना थाने पर दी। थानेदार और तहसीलदार ने अपनी बंदूक़ों में गोली भरी और उस स्थान पर जा पहुँचे।।4।।

गेना उनसे हाथ जोड़कर बोली—साहब! अभी तो दोपहर हुई है, मैं इस रीछ से सात दिनों तक लड़ूँगी, तब आप ख़बर लीजिएगा।।5।।

लड़ते-लड़ते भालू गिर गया, उसके मुँह से फेचकुर बहने लगा। गेना उसे

लाद-फाँद कर चली, जहाँ भारी कचहरी लगी थी।।6।।

वहाँ जितने भी डिप्टी कलक्टर थे, सब दाँतों तले उँगली दबाने लगे। उन्होंने विलायत तार भेजा कि तुरंत उसकी प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए।।7।।

सात कंपनियों और सात कचहरियों के लागों ने आश्चर्यचकित हो दाँतों के नीचे क़लम दबा ली और कहा—‘‘हे गेना! तुमने तो मर्दानगी का काम किया है।” वह सात सौ रूपये इनाम पाती है और मचिया पर बैठकर आराम से कान झारती है।।8।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 196)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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