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अवधी लोकगीत : धोबिया तू मरि जइहै, चादर लीजै धोय

awadhi lokgit ha dhobiya tu mari jaihai, chadar lijai dhoy

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रोचक तथ्य

संदर्भ—सिखावन।

धोबिया तू मरि जइहै, चादर लीजै धोय।

चादर लीजै धोय, मैलिया बहुतै समानी।

चल सतगुरु के घाट, भरा जहँ निर्मल पानी।।1।।

सत संगत माँ बाइठि ग्यान कै साबुन लीजै।

सत कै सौदा लीजै, नाम की कलमै कीजै।।2।।

छूटै निर्गुन दाग, नाम जो मन में लावै।

चलिये चादर ओढि बहुरि भव जल ना आवै।।3।।

धोबिया तू मरि जइहै, चादर लीजै धोय।

पल्टू ऐसा कीजिए कि मन ना मैला होय।।4।।

एक सद्गुरु धोबी को समझाता है कि हे धोबी! एक दिन तू मर जाएगा, अतः तू अपनी मन रूपी चादर धो ले। इसमें बहुत मैल है। तू सद्गुरु के पास चल, जहाँ ज्ञान रूपी निर्मल पानी है।।1।।

तू सत्संगति में बैठकर ज्ञान रूपी साबुन ले, तू सत्य का सौदा ले और उससे नाम की क़लम लगा।।2।।

निर्गुण रूप दाग़ छूट जाएगा, यदि मन में राम-नाम लेगा। चादर ओढ़कर चले, जिससे पुनः भवसागर में आना पड़े।।3।।

हे धोबी तू मर जाएगा, तू अपनी मैली चादर धो ले। पल्टू दास जी कहते हैं कि ऐसा कुछ कीजिए कि मन मैला हो।।4।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 207)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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