Font by Mehr Nastaliq Web

अवधी लोकगीत : चलौ, चली अटरिया भागि पिया

awadhi lokgit ha chalau, chali atariya bhagi piya

अन्य

अन्य

रोचक तथ्य

संदर्भ—वर्षा और दांपत्य जीवन।

चलौ, चली अटरिया भागि पिया,

बरसै लागी कारी बादरिया।।टेक।।

डेबिया भीजै तौ भीजन देउ।

कजरा लै चल बचाय पिया, बरसै०।।1।।

सेंटुरा भीजै तौ भीजन देउ।

बेंदिया लै चल बचाय पिया, बरसै०।।2।।

लहँगा भीजै तौ भीजन देउ।

चोलिया लै चल बचाय पिया, बरसै०।।3।।

एक स्त्री अपने पति से कहती है कि चलो हम लोग अटारी पर भाग चलें, क्योंकि काली बदली पानी बरसाने लगी।।टेक।।

यदि डिबिया भीगती है तो उसे भीगने दीजिए, किंतु उसमें रखे हुए काजल को बचाकर ले चलिए।।1।।

यदि सिंदूर भीगता है तो भीगने दीजिए, किंतु बिंदी बचाकर ले चलिए।।2।।

यदि लहँगा भीगता है तो भीगने दीजिए, किंतु चोली बचाकर ले चलिए।।3।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 172)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY