Font by Mehr Nastaliq Web

मैथिली लोकगीत : अकेलि भवन नहिं जायब सजनि ये

maithili lokgit ha akeli bhawan nahin jayab sajani ye

अन्य

अन्य

रोचक तथ्य

संदर्भ—नवविवाहिता की भीति।

अकेलि भवन नहिं जायब सजनि ये,

हमर बयस थिक थोर।।1।।

काँपय हृदय एखन सुनु सजनि गे,

छाड़ि दिअ कर अब मोर।।2।।

सिखर तरुन चढ़ब जौं सजनि गे,

गहब पहुँक पद जोर।।3।।

तखन प्रयोजन अहुँ के सजनि गे,

अपनहि जायब ताहि कोर।।4।।

‘मेघदूत' कबि गाओल सजनि गे,

हेतु जनि करु सोर।।5।।

हे सजनी! मैं प्रिय के कक्ष में अकेली नहीं जाऊँगी, क्योंकि मेरी उम्र नाज़ुक हैं।।1।।

हे सखी! मेरा हृदय काँप रहा है, अब मेरा हाथ छोड़ दो मुझे प्रियतम के कक्ष तक पहुँचाने ले चलो।।2।।

हे सखी! जब मैं तरुणाई के शिखर पर चढूँगी तो स्वयं प्रिय के चरणों गहूँगी।।3।।

सजनी! उस समय तुम्हारा काम नहीं रहेगा, मैं स्वयं ही उनकी गोद में जा बैठूँगी।।4।।

‘मेघदूत' नामक कवि कहता है कि हे सखी! तुम इस हेतु शोर मत करो।।5।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 60)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए