जुबना सदा रए हैं की के

jubna sada re hain ki ke

ईसुरी

ईसुरी

जुबना सदा रए हैं की के

ईसुरी

जुबना सदा रए हैं की के!

हमें बता दो जी के!

इनकौ गरब करै सो नाहक, जे ना भए किसी के॥

ऐसे बिला जात हैं जैसें, बलबूजा पानी के॥

‘ईसुर’ मजा लूट लो ईसें, अपने मनमानी के॥

जुबना सदा किसके बने रहते हैं? जिसके रहे हों सो हमें बताओ। इनका कोई घमंड करे तो व्यर्थ है। ये किसी के साथी नहीं। पानी के बुलबुलों की तरह लुप्त हो जाते हैं। ईसुरी कहता है कि इसी से अभी मनचाहे मज़े लूट लो।

स्रोत :
  • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 212)
  • संपादक : घनश्याम कश्यप
  • प्रकाशन : शब्दपीठ
  • संस्करण : 1995

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