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अब नई लगत मायके नौनें

ab nai lagat mayke naunen

ईसुरी

अन्य

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ईसुरी

अब नई लगत मायके नौनें

ईसुरी

और अधिकईसुरी

    अब नइ लगत मायके नौनें!

    पिय के संगै सौनें!

    हमरे संग की दो दो बेरा, हो आई है गौनें॥

    उनकी हमरी एक उमर है, लरका लग गए हौनें॥

    लगवारन के मारे मोरे कैसे होत चलौनें॥

    ‘ईसुर’ मद भर रऔ जुबन पै, सर्राती हैं टौनें॥

    अब मुझे मायके में अच्छा नहीं लगता। मुझे तो प्रिय के साथ सोना है। मेरे संग की लड़कियाँ गौने के बाद दो-दो बार ससुराल हो आई हैं। हमारी उनकी एक सी ही उम्र है। उनके तो बच्चे तक होने लगे हैं। चुगलख़ोर दुश्मनों के मारे मेरी विदा नहीं हो पा रही है। अरे ईसुरी, अब मैं यौवन मद से चूर हो रही हूँ। मेरे उरोजों के अग्रमान तन रहे हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 102)
    • संपादक : घनश्याम कश्यप
    • प्रकाशन : शब्दपीठ
    • संस्करण : 1995

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