रात्रिकालीन संसद यह विशिष्ट ध्वनि-तरंगें पात्रों के रूप में राष्ट्रीय उथल-पुथल की साक्षी बनती हैं, असह्य वेदना महसूस करती हैं और महाक्रांति का आह्वान करने को तत्पर भी होती हैं। अपने आप में एक नए ढंग का अद्भुत उपन्यास है—‘रात्रिकालीन संसद्’।.
हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली
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