Font by Mehr Nastaliq Web

डिगति उर्बि अति गुर्बि

Digati urbi ati gurbi

तुलसीदास

अन्य

अन्य

तुलसीदास

डिगति उर्बि अति गुर्बि

तुलसीदास

और अधिकतुलसीदास

    डिगति उर्बि अति गुर्बि, सर्व पव्वै समुद्र सर।

    व्याल बधिर तेहि काल, विकल दिगपाल चराचर॥

    दिग्गयंद लरखरत, परत दसकंठ मुक्खभर।

    सुर विमान हिमभानु, भानु संघटित परस्पर॥

    चौंके विरंचि संकर सहित, कोल कमठ अहि कलमल्यौ।

    ब्रह्मांड खंड कियो चंड धुनि, जबहिं राम शिव धनु दल्यौ॥

    ज्यों ही राम ने धनुष को तोड़ा, त्यों ही उसकी भयंकर आवाज़ ने ब्रह्मांड को विदीर्ण कर दिया। अत्यंत भारी पृथ्वी एवं पहाड़, समुद्र और तालाब हिलने लगे। उस समय शेषनाग बहरे हो गए। दिशाओं के रक्षक दिग्पाल और चर तथा अचर प्राणी व्याकुल हो गए, दिग्गज लड़खड़ाने लगे, रावण मुँह के बल गिर पड़ा। देवताओं के विमान, चंद्रमा और सूर्य आपस में टकराने लगे। ब्रह्मा शिव सहित चौंक उठे; वाराह, कच्छप और शेषनाग कुलबुलाने लगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 11)
    • संपादक : देवीनारायण द्विवेदी
    • रचनाकार : तुलसीदास
    • प्रकाशन : एस.बी.सिंह, काशी-पुस्तक-भंंडार, बनारस
    • संस्करण : 1999

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए