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वढ़ अणँ लोअर पत्त तत्त

waDh anan loar patt tatt

तिल्लोपा

अन्य

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तिल्लोपा

वढ़ अणँ लोअर पत्त तत्त

तिल्लोपा

और अधिकतिल्लोपा

    वढ़ अणँ लोअर पत्त तत्त पंडित लोअ अगम्म।

    जो गुरूपाआ पसण तँहि कि चित्त अगम्म॥

    जो तत्व, जो सत्य मूढ़जनों के लिए अगोचर है वह पंडितों के लिए भी अगम्य है; (क्योंकि वे शास्त्राध्ययन में उलझे रहते हैं) सत्य का साक्षात्कार तो उसी पुण्यवान व्यक्ति को होता है, जिस पर सद्गुरु प्रसन्न होते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत-सुधा-सार (पृष्ठ 9)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : तिल्लोपा
    • प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन
    • संस्करण : 1953

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