जो मणगोअर आला-जाला

jo mangoar aala jala

कण्हपा

कण्हपा

जो मणगोअर आला-जाला

कण्हपा

जो मणगोअर आला-जाला।

आगमपोथी इष्टा-माला॥

भण कइसें सहज बोलवा जाअ।

काअ वाक् चिंअ जसु समाअ॥

आले गुरु उएसइ सीस।

वाक्पथातीत काहिब कीस॥

जेत बोली तेत वि टाल।

गुरु बोब से सीसा काल॥

भणइ कान्ह जिण रअण विकइसा।

काले बोब संबोहिअ जइसा॥

आगम, पोथी, मंत्रजाप और जो कुछ भी मन और इंद्रियों के लिए ग्रहणीय हैं, वह आगम-निर्गमशील है। इसलिए बताओ कि काय-वाक्-चित्त में जिसका प्रवेश नहीं है, उससे सहजरूपी (अनुत्तर ज्ञान) भला किस प्रकार कहा जाय? गुरु व्यर्थ ही शिष्य को उपदेश देते हैं। क्योंकि वाक्पथ से जो परे है, वह सहजधर्म कैसे सिखाया जाए? जो ऐसा कहते हैं, वे सहजधर्म को भूलकर असत् को स्थापित करते हैं। गुरु गूँगे हैं; इसलिए उनका शिष्य भी बहरा है। कन्ह कहते हैं— जिनरत्न विकसित हो रहा है। गूँगा जिस तरह संकेत द्वारा बहरे व्यक्ति को संबोधित करता है, सदगुरु भी उसी प्रकार अपनी शक्ति के प्रभाव से शिष्य को सहज महासुख में दीक्षित करते हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : सहज सिद्ध : चर्यागीति विमर्श (पृष्ठ 180)
  • संपादक : रणजीत साहा
  • रचनाकार : कण्हपा
  • प्रकाशन : यश पब्लिकेशन्स
  • संस्करण : 2010

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