श्रीराम शर्मा 'राम' के रेखाचित्र
पीतांबर हकीम
अषाढ़ का महीना था। पहली बरखा के संपूर्ण लक्षण दिखाई पड़ने, लगे थे। पछवा का ज़ोर रुका और पुरवा का जीवन-स्रोत बह चला। तीतरपांखी बदली उठ रही थी, पर गाँव के किसानों के हृदयों में उमंग की हिलोर न उठी। प्रत्येक की आकृति पर वेदना की घटा छाई हुई थी। बात यह थी
वे कैसे जीते हैं?
युक्तप्रांत के एक प्रसिद्ध नगर में, एक दिन बयासी वर्ष के एक वृद्ध अपने डेढ़ वर्ष के पोते को लेकर द्वार पर बैठे थे। बच्चा हँस-हँस कर दादा की नाक और मूछें पकड़ने की कोशिश करता। प्रेम-विह्वल बूढ़े दादा अपने सिर को हिला-हिलाकर बच्चे की ओर ले जाते। जन्म और
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere