रवींद्रनाथ टैगोर के पत्र
रूस के पत्र (पाँच)
बर्लिन, जर्मनी मॉस्को से तुम्हें मैं एक बड़ी चिट्ठी में रूस के बारे में अपनी धारणा लिख चुका हूँ। वह चिट्ठी अगर तुम्हें मिल गई होगी, तो रूस के बारे में कुछ बातें तुम्हें मालूम हो गई होंगी। यहाँ किसानों की सर्वांगीण उन्नति के लिए जितना काम किया जा रहा
रूस के पत्र (चार)
मॉस्को से सोवियत व्यवस्था के बारे में दो बड़ी-बड़ी चिट्ठियाँ लिखी थीं। वे कब मिलेंगी और मिलेंगी भी या नहीं, मालूम नहीं। बर्लिन आ कर एक साथ तुम्हारी दो चिट्ठियाँ मिलीं। घोर वर्षा की चिट्ठी है ये, शांति निकेतन के आकाश में शाल वन के ऊपर मेघ की छाया और
रूस के पत्र (तीन)
मॉस्को बहुत दिन हुए तुम दोनों को पत्र लिखे। तुम दोनों की सम्मिलित चुप्पी से अनुमान होता है कि वे युगल पत्र मुक्ति को प्राप्त हो चुके हैं। ऐसी विनष्टि भारतीय डाकखानों में आजकल हुआ ही करती है, इसीलिए शंका होती है। इसी वजह से आजकल चिट्ठी लिखने को जी नहीं
रूस के पत्र (दो)
मॉस्को स्थान रूस! दृश्य, मॉस्को की उपनगरी का एक प्रासाद भवन। जंगल में से देख रहा हूँ—दिगंत तक फैली हुई अरण्यभूमि, सब्ज़ रंग की लहरें उठ रही हैं, कहीं स्याह-सब्ज़, कहीं फीका बैंगनी मिलमा सब्ज़, कहीं पीले-सब्ज़ की हिलोरें-सी नज़र आ रही हैं। वन की सीमा
रूस के पत्र (अध्याय-1)
मॉस्को आख़िर रूस आ ही पहुँचा। जो देखता हूँ, आश्चर्य होता है। अन्य किसी देश से इसकी तुलना नहीं हो सकती। बिल्कुल जड़ से प्रभेद है। आदि से अंत तक सभी आदमियों को इन लोगों ने समान रूप से जगा दिया है। हमेशा से देखा गया है कि मनुष्य की सभ्यता में अप्रसिद्ध
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere