पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' की कहानियाँ
उसकी माँ
दुपहर को ज़रा आराम करके उठा था। अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में खड़ा-खड़ा बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजे पुस्तकालय की ओर निहार रहा था। किसी महान लेखक की कोई महान कृति उनमें से निकलकर देखने की बात सोच रहा था। मगर, पुस्तकालय के एक सिरे से लेकर दूसरे तक मुझे महान-ही-महान
गंगा, गंगदत्त और गांगी
गंगा... महात्मा वेदव्यासजी ने महाभारत में लिखा है— गंगापुत्र भीष्म के पिता श्री शांतनु महाराज को देखते ही बूढ़ा प्राणी जवान हो जाता था। मगर, मैं भूल कर रहा हूँ। वह भीष्म के पिताजी नहीं, दादाजी थे, जिनमें उक्त गुणों का आरोप महाभारतकार ने किया है। एक
ख़ुदाराम
1 हमारे क़स्बे के इनायत अली कल तक नौमुसलिम थे। उनका परिवार केवल सात वर्षों से ख़ुदा के आगे घुटने टेक रहा था। इसके पहले उनके सिर पर भी चोटी थी, माथे पर तिलक था और घर में ठाकुरजी थे। हमारे समाज ने उनके निरपराध परिवार को ज़बर्दस्ती मंदिर से ढकेलकर मसजिद
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere